10वीं थर्ड डिवीजन, 12वीं फेल, पढने के लिये भिखारियों संग सोये, प्रेमिका ने दिया साथ, बन गये IPS

मनोज शर्मा कहते हैं कि एसडीएम के उस निर्णय का मेरे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा, मैंने सोचा इतना पावरफुल आदमी कौन है, बस उसी समय मैंने भी ठान लिया कि मुझे एसडीएम बनना है।

New Delhi, Oct 01 : एक किताब है, जिसका शीर्षक है, 12वीं फेल, हारा वही जो लड़ा नहीं, ये किताब एक वास्तविक कहानी पर है, जो महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस अधिकारी मनोज शर्मा पर लिखी गई है, इस किताब के लेखक मनोज के दोस्त अनुराग पाठक हैं, वर्ल्ड बुक डे के दिन आइये इस बारे में आपको बताते हैं।

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2005 बैच के आईपीएस
मनोज शर्मा 2005 बैच के महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस हैं, फिलहाल वो मुंबई में एडिशनल कमिश्नर ऑफ वेस्ट रीजन के पद पर हैं, उनका जन्म अविभाजित मध्य प्रदेश के मुरैना में हुआ था, मनोज 9वीं, 10वीं और 11वीं में थर्ड डिविजन में पास हुए, इस किताब में मनोज कहते हैं कि वो 11वीं में नकल करके पास हुए, 12वीं में इसलिये फेल हो गये, क्योंकि नकल नहीं हुई, उन दिनों वो सोचते थे कि 12वीं नकल मारकर पास करवे के बाद टाइपिंग सीखकर कहीं ना कहीं नौकरी करने लगेंगे, लेकिन इलाके के एसडीएम के सख्त रवैये की वजह से नकल नहीं हो सका और वो 12वीं में फेल हो गये।

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पावरफुल आदमी
मनोज शर्मा कहते हैं कि एसडीएम के उस निर्णय का मेरे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा, मैंने सोचा इतना पावरफुल आदमी कौन है, बस उसी समय मैंने भी ठान लिया कि मुझे एसडीएम बनना है। 12वीं में फेल होने के बाद रोजी-रोटी के लिये मनोज अपने भाई के साथ टैंपो चलाते थे, एक बार उनका टैंपो पकड़ा गया, उन्हें लगा कि एसडीएम उसे छुड़ा सकते हैं, मैं एसडीएम के पास टैंपो छुड़ाने के लिये गया, लेकिन मैं उनसे उनकी तैयारी के बारे में बात करने लगा, उनकी बात सुनने के बाद मैंने तय कर लिया, कि अब यही करना है।

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भिखारियों के पास सोते थे
मनोज ने बताया मैं घर से थैला लेकर ग्वालियर आ गया, पैसे नहीं थे, इसलिये भिखारियों के पास सोता था, खाने को कुछ नहीं था, किस्मत ने साथ दिया, लाइब्रेरियन कम चपरासी की नौकरी मिल गई, यहां मैंने गोर्की और अब्राहम लिंकन को पढा, मुक्तिबोध को जाना, फिर तैयारी शुरु की, वो कहते हैं कि 12वीं फेल का ठप्पा मेरे ऊपर से मिटने का नाम नहीं ले रहा था, मैं जिस लड़की से प्यार करता था, उससे भी सिर्फ इसलिये दिल की बात नहीं कर पाता था, क्योंकि मैं फेलियर था।

दिल्ली आ गये
मनोज इसके बाद दिल्ली आ गये, यहां वो लोगों के घरों के कुत्तों को टहलाने का काम करते थे, 400 रुपये प्रति महीना मिलता था, इस बीच उन्हें एक टीचर ने बिना किसी फीस के ट्यूशन पढाना शुरु कर दिया, पहले ही प्रयास में प्रीलिम्स पास कर गया, लेकिन मेन्स में अंग्रेजी ठीक नहीं होने के कारण नहीं हो पाया, मैं जिस लड़की से प्यार करता था, उससे कहा कि तुम साथ दो, तो दुनिया पलट दूंगा, इस तरह मोहब्बत में जीत के बाद मैंने पढाई शुरु की, चौथे प्रयास में आईपीएस बन गया।