भारत की ताकत देख कांपेंगे चीन और पाकिस्तान! वायुसेना के बेड़े में शामिल होंगे 233 लड़ाकू विमान

डिफेंस मिनिस्ट्री के मुताबिक 83 तेजस हल्के लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है, ये विमान एचएएल द्वारा निर्मित किये जाने हैं।

New Delhi, Oct 07 : भारतीय वायुसेना के बेड़े में अगलो 10 सालों के भीतर 233 अत्याधुनिक लड़ाकू विमान शामिल होंगे, नये विमानों की खरीद के लिये आरंभिक प्रक्रिया शुरु की जा चुकी है, सरकार की योजना है कि ज्यादातर लड़ाकू विमानों का निर्माण देश में ही किया जाए, इससे एक ओर जहां वायुसेना के लिये पुराने मिग विमानों को हटाने का रास्ता साफ होगा, वहीं देश में लड़ाकू विमानों के निर्माण से आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी गति मिलेगी।

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तेजस विमान
डिफेंस मिनिस्ट्री के मुताबिक 83 तेजस हल्के लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है, ये विमान एचएएल द्वारा निर्मित किये जाने हैं, इसके साथ ही अत्याधुनिक संस्करण एलसीए-1ए की खरीद वायुसेना के लिये की जाएगी, kabul airstrike (1) हालांकि उसके आरंभिक संस्करण के 22 विमान वायुसेना पहले ही खरीद चुकी है, रक्षा मंत्रालय ने इसके लिये 38 हजार करोड़ भी स्वीकृत किये हैं, एलसीए का ये संस्करण अत्याधुनिक हथियारों से लैस होगा।

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वीआर चौधरी ने क्या कहा
1 दिन पहले ही वायसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने कहा, कि 114 मल्टी रोल फाइटर, एयरक्राफ्ट की खरीद के लिये आरंभिक प्रक्रिया शुरु की जा रही है, इसके लिये प्रस्ताव आमंत्रित किये गये थे, air-chief (1) जिनका अध्ययन करने के बाद निर्णय लिया जाएगा, इन विमानों का निर्माण भी देश में ही होगा, जिस कंपनी को भी इसकी आपूर्ति का ठेका मिलेगा, उसे देश में ही इनका निर्माण करना होगा, इसके पीछे भी सरकार का मकसद मेक इन इंडिया को बढावा देना है।

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पुराने विमानों को फेज आउट करना चुनौती
इस बीच वायुसेना के समक्ष चुनौती ये है कि उसे पुराने विमानों को फेज आउट करना है, इनके मिग के 4 स्क्वाड्रन है, जिनमें करीब 65 विमान बाकी बचे हैं, वायुसेना प्रमुख ने अगले 3-4 सालों के भीतर इन्हें सेवा से हटाने की बात कही है, जगुआर, मिराज विमान भी पुराने पड़ रहे हैं, उन्हें अपग्रेड कराने का खर्च नये विमान खरीदने से कुछ ही कम होता है, इसलिये चुनौती ये भी है कि नये विमान आने के बावजूद पुराने विमान घटने से स्क्वाड्रन की संख्या 35 से ज्यादा नहीं हो पाएगी, जबकि 2001-02 के दौरान वायुसेना की स्क्वाड्रन 42 की पहुंच चुकी थीं।