योगी आदित्यनाथ- दुकानदार से झगड़े के बाद राजनीति में आये, सीएम बनने की पूरी कहानी
अब तक के 21 मुख्यमंत्री में एक सीएम ऐसे हैं, जिनकी राजनीतिक एंट्री और मुख्यमंत्री बनने के पीछे दो दिलचस्प घटनाएं हैं, आइये आपको योगी आदित्यनाथ की वो कहानी बताते हैं।
New Delhi, Mar 03 : कुछ ही दिनों में यूपी का 22वां मुख्यमंत्री चुना जाएगा, अब तक के 21 मुख्यमंत्री में एक सीएम ऐसे हैं, जिनकी राजनीतिक एंट्री और मुख्यमंत्री बनने के पीछे दो दिलचस्प घटनाएं हैं, आइये आपको योगी आदित्यनाथ की वो कहानी बताते हैं, जो ज्यादा लोगों को पता नहीं होगा।
27 साल पहले कपड़े की दुकान पर झगड़ा
मार्च 1994 में गोरखपुर के गोलघर बाजार, गोरखनाथ मंदिर ट्रस्ट के एमपी इंटर कॉलेज के कुछ छात्र कपड़े की दुकान पर मोल-भाव कर रहे थे, पैसे पर बात नहीं बनी, झगड़ा हो गया, विवाद इतना बढा कि दुकानदार ने रिवाल्वर निकालकर दो राउंड फायरिंग कर दी। लड़के भाग गये, अगले दिन पुलिस छात्रों को पकड़ने के लिये गोरखनाथ मंदिर ट्रस्ट के प्रताप हॉस्टल पहुंचे, लेकिन वो वहां नहीं मिले, पुलिस दोबारा आने की धमकी देकर वहां से चली गई, डरे छात्र अगली सुबह 10 बजे गोरखनाथ ट्रस्ट पहुंचे, अपनी बात बताई, ट्रस्ट ने छात्रों को परेशानी से निकालने का जिम्मा एक 22 साल के संन्यासी को दे दिया। अगले दिन युवा संन्यासी के नेतृत्व में 50 से ज्यादा लड़कों ने पूरे गोरखपुर में प्रदर्शन शुरु किया, मांग थी कि उस दुकानदार को गिरफ्तार किया जाए, प्रदर्शन करते-करते छात्र गोरखपुर एसएसपी आवास के पास पहुंचे, वहां पुलिस ने उन्हें खदेड़ने की कोशिश की, तभी एक भगवाधारी एसएसपी आवास की दीवार पर चढ गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उस युवा संन्यासी की हिम्मत देख लोग दंग थे, उसका नाम पूछ रहे थे, किसी ने बताया आदित्यनाथ योगी, उसी दिन से लोग किसी भी परेशानी में उनसे मदद मांगने आने लगे।
तत्काल एक्शन के लिये मशहूर योगी
छात्रों की मदद करते-करते योगी इतने मशहूर हो गये, कि गोरखपुर यूनिवर्सिटी के छात्र नेता उनसे मिलने-जुलने लगे, वो पहले से ही गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी थे, मंदिर तथा जनता दोनों जगहों पर पैठ बढती गई, 4 साल बाद 1998 में महंत अवैधनाथ ने उन्हें अपना राजनीति उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। असल में अवैधनाथ गोरखपुर लोकसभा सीट से सांसद थे, उनके राजनीति से बाहर होते ही बीजेपी ने उनके शिष्य आदित्यनाथ को उसी सीट से टिकट दे दिया, 26 साल के योगी 12वीं लोकसभा के सबसे युवा सांसद थे, पहला चुनाव 26 हजार वोटों से जीते, फिर 1999, 2004, 2009 और 2014 में सांसद बने।
सीएम बनने की कहानी
आइये अब योगी के यूपी के सीएम बनने की कहानी की ओर ले चलते हैं, इस घटना में यूपी के दो बड़े नेता, 1 केन्द्र के मंत्री लगे थे, लेकिन योगी ने पासा पलट दिया, इस कहानी के 4 किरदार है, पहले तत्कालीन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य, दूसरे गाजीपुर से सांसद मनोज सिन्हा, तीसरे तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और चौथे गोरखपुर सांसद योगी आदित्यनाथ, इसकी शुरुआत दिसंबर 2016 से हुई, दिल्ली की सदी में यूपी सदन के एक कमरे में यूपी बीजेपी अध्यक्ष केशव मौर्य को एक फोन आया, सामने वाले शख्स ने एक सर्वे के बारे में बताया, जो किसी न्यूज चैनल का था, उसमें था कि अगर यूपी में बीजेपी की सरकार बनी, तो किन नेताओं को जनता सीएम देखना चाहेगी। सर्वे में 36 फीसदी वोट के साथ केशव दूसरे स्थान पर थे, उन्हें समझ नहीं आया, उनसे आगे कौन निकल गया, कुछ समय बाद पता चला कि पहले स्थान पर योगी आदित्यनाथ हैं, जिन्हें 48 फीसदी जनता पसंद करती है, केशव के समझ से ये परे था कि योगी तो कहीं सीन में हैं नहीं, तो उनका नाम सर्वे में क्यों रखा गया। सर्वे में 11 फीसदी वोट के साथ राजनाथ सिंह तीसरे नंबर और 4 फीसदी वोट के साथ चौथे स्थान पर मनोज सिन्हा थे, अगली सुबह केशव बीजेपी ऑफिस पहुंचे, तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मीडिया से कहा कि वो यूपी के सीएम नहीं बनेंगे। बीजेपी ने प्रचार किया, कि चुनाव बाद मुख्यमंत्री तय होगा, लेकिन मार्च 2017 में जब बीजेपी का घोषणा पत्र आया, तो उसमें योगी की तस्वीर नहीं लगाई गई, फ्रंट पेज पर राजनाथ सिंह और केशव प्रसाद मौर्य को रखा गया, योगी साइलेंटली इन चीजों को देख रहे थे, 27 फरवरी 2017 की सुबह योगी फील्ड में प्रचार के लिये निकलने की तैयारी में थे, तभी फोन आया, उस तरफ से तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज थी, उन्होने कहा योगी जी आपको पार्लियामेंट्री डेलीगेशन का हिस्सा बनकर विदेश जाना है, योगी ने कहा 6 मार्च तक यूपी में चुनाव प्रचार करना है, अभी नहीं जा सकता, सुषमा स्वराज ने कहा 6 मार्च के बाद ही जाना है। योगी मान गये, 8 मार्च 2017 को वो दिल्ली पहुंचे, उनका पासपोर्ट पहले ही पहुंच चुका था, लेकिन 10 मार्च को उन्हें पासपोर्ट वापस कर दिया गया, अब उन्हें बाहर नहीं जाना था, वजह किसी को पता नहीं चली, 11 मार्च 2017 को यूपी विधानसभा चुनाव का नतीजा आया, बीजेपी ने 312 सीटें जीती, एनडीए 325 पर पहुंच गया, पार्टी ने 15 साल बाद यूपी में वापसी की।
मनोज सिन्हा के समर्थकों ने मिठाई बांट दी
दिल्ली और लखनऊ की भागमभाग शुरु हुई, इसी भागमभाग में किसी ने मनोज सिन्हा के समर्थकों से कह दिया कि पंडितजी को हरी झंडी मिल गई है, समर्थकों ने मिठाइयां भी बांट दी, दूसरी ओर दिल्ली से विदेश जाने के बजाय योगी गोरखपुर लौट गये, 16 मार्च की पार्लियामेंट्री बैठक में शामिल हुए, फिर गोरखपुर लौट गये, 18 मार्च को उन्हें स्पेशल चार्टर प्लेन भिजवा कर दिल्ली बुलाया गया। 18 मार्च की सुबह दिल्ली एयरपोर्ट पर बीजेपी के दो सीएम उम्मीदवार उड़ान भरने को तैयार थे, पहले केशव मौर्या जिनके साथ प्रदेश प्रभारी ओम माथुर और संगठन मंत्री सुनील बंसल थे, दूसरे थे योगी आदित्यनाथ, उनके पास चार्टर्ड प्लेन था, साथ में बस एक सहयोगी, योगी और केशव की मुलाकात हुई, तो योगी ने सभी को चार्टर्ड प्लेन से साथ चलने को कहा, सब लखनऊ एयरपोर्ट पहुंच गये। केशव जब एयरपोर्ट से बाहर निकले, तो उनके लिये करीब 1000 कार्यकर्ताओं की भीड़ लगी थी, पूरा यूपी डोला था, केशव-केशव बोला था के नारे लगने लगे, दूसरी ओर योगी अपने 6-7 समर्थकों के साथ चुपचाप गाड़ी में बैठकर वीवीआईपी गेस्ट हाउस निकल गये। फिर 18 मार्च की शाम करीब साढे 5 बजे विधायक दल की बैठक के लिये मंच सजा, एनडीए के 325 विधायक समेत सभी बड़े नेता लोकभवन पहुंचे, केशव मौर्या भी थे, सबसे आखिर में योगी की एंट्री हुई, विधायकों के बीच एक सांसद का होना कुछ लोगों को चौंका रहा था, मीटिंग खत्म हुई, दिसंबर 2016 में केशव ने जो सर्वे देखा था, वो सच हो गया, उन्हें नंबर 2 पर रखा गया, योगी यूपी के मुख्यमंत्री बन गये, 19 मार्च को उन्होने यूपी के सीएम पद की शपथ ली। उस दिन तो योगी ने बाजी मार ली, अब 5 साल बीत चुके हैं, फिर वही मंच सजा है, लेकिन एक फैक्ट है, यूपी में 1985 के बाद से कोई सीएम अगला चुनाव जीतकर तुरंत कुर्सी पर नहीं बैठ पाया है, योगी से पहले सिर्फ बीजेपी के तीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह में से कल्याण सिंह ऐसे हैं, जो दो बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन लगातार नहीं, क्या योगी इस इतिहास को बदल पाएंगे, ये तो 10 मार्च को ही पता चलेगा।