Gyanwapi-  तो क्‍या पन्ने का बना है वजूखाने में मिला शिवलिंग? इतिहास के पन्नों में है इसका जिक्र

ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया जा रहा है, बताया जा रहा है ये पन्‍ना पत्‍थर का बना है । इतिहास में भी एक ऐसे शिवलिंग का जिक्र है ।

New Delhi, May 18: ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे पूरा हो चुका है, लेकिन डेटा ज्‍यादा होने के कारण कोर्ट में इसे पेश नहीं किया जा सका है । कोर्ट ने 2 दिन का और समय दिया है । लेकिन इस बीच सर्वे पूरा होने के बाद हिंदू पक्ष ने मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया है । बताया गाया है कि यह पन्‍ना का है, हालांकि इसे लेकर कोई पुष्टि नहीं हुई है लेकिन आपको बता दें इतिहास के पन्‍नों में ऐसे ही एक शिवलिंग का जिक्र है।

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पन्‍ने का शिवलिंग
ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिला शिवलिंग पन्ने का है या नहीं, इसके बारे में अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता । लेकिन दावा है कि लगभग इसी आकार के पन्ना के शिवलिंग का जिक्र इतिहास में कई स्थानों पर मिलता है । मीडिया की कुछ रिपोर्अ में इसके बारे में बताया गया है कि, चार सौ ईस्वी में आए चीनी यात्री फाहियान से लेकर 19वीं शताब्दी में काशी के राजा मोतीचंद की लिखी पुस्तक ‘काशी के इतिहास’ में पन्ने से निर्मित 18 बालिस्त ऊंचे शिवलिंग का उल्लेख है। इस बारे में बीएचयू के वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. एके. सिंह के हवाले से लाइव हिंदुस्‍तान के आर्टिकल में बताया गाया है कि, चौथी शताब्दी में फाहियान नामक बौद्ध भिक्षु अपने तीन भिक्षु-साथियों के साथ भारत आया। चूंकि बौद्ध धर्म भारत से ही चीन गया था, अत: फाहियान का यहां आने का प्रमुख उद्देश्य बौद्ध धर्म के आधारभूत ग्रन्थ ‘त्रिपिटक’ में एक ‘विनय पिटक’ को ढूंढ़ना था।

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फाहियान पहला ऐसा चीनी यात्री था, जिसने अपने यात्रा-वृत्तांत को लिपिबद्ध किया। चाइनीज भाषा में फाहियान के लिखे रोचक संस्मरणों का हिंदी अनुवाद जगन्मोहन वर्मा ने किया था। इसका पहला संस्करण सन् 1918 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने प्रकाशित किया। इस पुस्तक में जिक्र है कि फाहियान संस्कृत का अध्ययन करने के लिए काशी आया था। तब उसने राजा विक्रमादित्य द्वारा काशी में बनवाए गए आदि विश्वेश्वर देखा था जिसमें पन्ने का शिवलिंग स्थापित था।

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‘काशी का इतिहास’ बुक में भी है उल्लेख
इसके साथ ही इस आर्टिकल में बताया गाया है कि, पन्‍ने के शिवलिंग का उल्‍लेख आधुनिक इतिहासकार राजा मोतीचंद के ‘काशी का इतिहास’ नामकी किताब में भी है । जिसमें बताया गया है कि वर्ष 1569 में जब अकबर के निर्देश पर उनके मंत्री टोडरमल ने विश्वेश्वर मंदिर का पुन: निर्माण कराया तब भी वहां पन्ने का शिवलिंग ही स्थापित किया था । आपको बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद मामले में उ जिस मुकदमे के दायर होने के बाद सर्वे हुआ है, उसकी पिटिशन रिपोर्ट में भी उल्लेख किया गया है कि मस्जिद के तहखाने में हरे पत्थर का शिवलिंग है।

इसके साथ ही, साल 1994 में ‘राष्ट्र का जागरूक प्रहरी वंदेमातरम्’ के काशीविश्वनाथ विशेषांक के एक अध्याय में 18 बालिश्त ऊंचे पन्ने के शिवलिंग का विवरण दिया गया है । इस विशेषांक के लिए सामग्री का संग्रह उस वक्त रामनगर स्थित अमेरिकन इंस्टीट्यूट की लाइब्रेरी से किया गया था। वंदेमातरम की टीम ने छह महीने तक लाइब्रेरी में मुगल इतिहासकारों से लेकर ब्रिटिश अधिकारी जेम्स प्रिसेप की पुस्तकों का अध्ययन किया था।