IIT कॉलेज से गूगल के CEO तक, दिलचस्प है सामान्य परिवार में जन्मे सुंदर पिचाई की कहानी
सुंदर पिचाई का पूरा नाम पिचाई सुंदरराजन है, उनका जन्म तमिलनाडु के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ, बचपन में उनके पास आज जितनी सुख-सुविधाएं नहीं थी, उन्होने कड़ी मेहनत की और ये मुकाम हासिल किया।
New Delhi, Jun 10 : गूगल के पहले भारतीय सीईओ सुंदर पिचाई आज अपना 50वां जन्मदिन मना रहे हैं, तमिलनाडु में जन्मे सुंदर पिचाई 2015 में दुनिया की दिग्गज आईटी कंपनी गूगल के सीईओ बने, वो पहले भारतीय मूल के नागरिक थे, जिन्हें गूगल में सबसे बड़ी जिम्मेदारी मिली।
मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म
सुंदर पिचाई का पूरा नाम पिचाई सुंदरराजन है, उनका जन्म तमिलनाडु के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ, बचपन में उनके पास आज जितनी सुख-सुविधाएं नहीं थी, उन्होने कड़ी मेहनत की और ये मुकाम हासिल किया, पिचाई की सफलता का सफर इतना ही आसान नहीं रहा है, उनका सफर बेहद प्रेरणादायक है, आइये उनसे जुड़ी और बातें जानते हैं।
स्कॉलरशिप पर की विदेश में पढाई
सुंदर पिचाई के पिता इलेक्ट्रिक इंजीनियर थे, लेकिन वो इतने भी सक्षम नहीं थे कि उन्हें महंगी शिक्षा दिला सकें, सुंदर पिचाई ने 1993 में आईआईटी खड़गपुर से बीटेक किया, इसके बाद स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमएस तथा व्हार्टन स्कूल से एमबीए किया, व्हार्टन स्कूल में पढाई के दौरान उन्हें दो स्कॉलरशिप मिली।
2015 में बने गूगल सीईओ
2004 में सुंदर पिचाई ने गूगल ज्वाइन किया, जहां उन्होने गूगल टूलबार और क्रोम को विकसित करने में बड़ी भूमिका निभाई, कुछ ही सालों में गूगल क्रोम दुनिया का सबसे पॉपुलर इंटरनेट ब्राउजर बन गया, 2014 में उन्हें गूगल के सभी प्रोडक्ट और प्लेटफॉर्म से जुड़ी अबम जिम्मेदारी सौंपी गई। इस दौरान उनके पास कई लोकप्रिय प्रोडक्ट्स जैसे गूगल टूलबार, क्रोम, डेस्कटॉप सर्च, गैजेट्स, गूगल पैक, गूगल गियर्स, फायरफॉक्स एक्सटेंशन आदि चार्ज रहा, 2015 में वो वक्त या, जब उन्हें गूगल का सीईओ बनाया गया।
पिता की 1 साल की सैलरी से खरीदा था टिकट
2020 में यूट्यूब डियर क्लास वर्चुअल सेरेमनी में सुंदर पिचाई ने कहा था 10 साल की उम्र तक मुझे टेलीफोन नहीं मिला, अमेरिका आने तक मुझे नियमित रुप से कंप्यूटर पर काम करने का मौका नहीं मिला, वहीं टीवी पर हमें सिर्फ एक ही चैनल देखने को मिलता था, अपने पुराने दिनों को याद करते हुए सुंदर पिचाई ने एक बार कहा था कि अमेरिका आने के लिये मुझे अपने पिता की एक साल की सैलरी खर्च करनी पड़ी, तब जाकर मैं स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी पहुंच सका, जब मैं पहली बार प्लेन में बैठा था, अमेरिका बहुत महंगा था, भारत में घर पर फोन लगाने के लिये 1 मिनट का 2 अमेरिकी डॉलर से ज्यादा देना पड़ता था।