पापा ने बंद कर दिया था पैसे देना, तो ऐसे चलाया खर्च, दिलचस्प है इस IAS की लव स्टोरी

यूपीएससी पाठशाला के अनुसार ग्रेजुएशन के बाद दीपक रावत के जीवन में तब बड़ा मोड़ आया, जब वो बिहार के कुछ छात्रों से मिले, जो यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे।

New Delhi, Aug 25 : हर साल लाखों छात्र यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा का फॉर्म भरते हैं, लेकिन उनमें से चंद को ही सफलता मिल पाती है, यूपीएससी परीक्षा में सभी उम्मीदवारों की अपनी अलग रणनीति होती है, कम ही लोगों को पहले ही प्रयास में सफलता मिल जाती है, आज आपको एक ऐसे छात्र की ही कहानी बताएंगे, जिन्होने दो असफल प्रयास के बाद तीसरे में सफलता हासिल की है।

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सोशल मीडिया पर हिट
ऐसा कहा जाता है कि कोई नहीं जानता कि जीवन आपको कहां ले जाएगा, ये कहानी आईएएस दीपक रावत की है, जिनकी फेसबुक पर जबरदस्त फैन फॉलोइंग है, यू-ट्यूब पर 4 मिलियन से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं, उत्तराखंड में पले-बढे दीपक रावत लाखों लोगों को प्रेरित कर रहे हैं।

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मसूरी में जन्म
24 सितंबर 1977 को जन्मे दीपक रावत मूल रुप से उत्तराखंड के मसूरी के बरलोगंज के रहने वाले हैं, उन्होने सेंट जॉर्ज कॉलेज, मसूरी से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की, फिर डीयू के हंसराज कॉलेज से ग्रेजुएशन किया, इसके बाद पॉलिटिकल साइंस में पीजी किया, जेएनयू से एमफिल किया है। जब दीपक 24 साल के थे, तो पिता ने उन्हें खुद ही पैसे कमाने को कहा और पॉकेट मनी बंद कर दी, जेएनयू में एमफिल करने वाले दीपक रावत 2005 में जेआरएफ के लिये चुने गये, जहां उन्हें 8 हजार रुपये प्रति माह मिलते थे, जिससे उनकी रोजमर्रा की जरुरतें पूरी होती है।

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तीसरे प्रयास में सफलता
यूपीएससी पाठशाला के अनुसार ग्रेजुएशन के बाद दीपक रावत के जीवन में तब बड़ा मोड़ आया, जब वो बिहार के कुछ छात्रों से मिले, जो यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे, दीपक ने भी इस क्षेत्र के बारे में जानने की कोशिश की, फिर तैयारी शुरु कर दी, लेकिन पहले दो प्रयास में असफलता मिली, हालांकि उन्होने हार नहीं मानी, कड़ी मेहनत और दृढ संकल्प के साथ उन्होने तीसरे प्रयास में सफलता हासिल की, हालांकि वो तब आईआरएस अधिकारी के रुप में चुने गये, उन्होने फिर से तैयारी की, फिर आईएएस की वो पोजीशन हासिल की, जो हमेशा से चाहते थे। 2007 में वो उत्तराखंड कैडर के आईएएस अधिकारी चुने गये।

कबाड़ीवाला बनना चाहते थे
दीपक जब 11वीं-12वीं में थे, तो ज्यादातर स्टूडेंट्स इंजीनियरिंग या फिर डिफेंस की लिये तैयारी कर रहे थे, लेकिन उन्हें डिब्बे, खाली टूथपेस्ट ट्यूब, आदि जैसी चीजों में बड़ी दिलचस्पी थी, दीपक ने एक इंटरव्यू में कहा था जब लोगों ने उनसे पूछा कि IAS सिविल सेवा नहीं तो करियर के रुप में क्या चुनते, तो उन्होने कहा कबाड़ीवाला, दीपक रावत को लगा कि कबाड़ीवाला बनने से उन्हें अलग-अलग चीजें तलाशने का मौका मिलेगा।

कॉलेज में प्यार
दीपक रावत ने विजेता सिंह से शादी की है, जो न्यायिक सेवाओं की अधिकारी है, दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट रह चुकी हैं, हंसराज कॉलेज में पढाई के दौरान उनकी मुलाकात हुई, दोनों को प्यार हो गया, फिर शादी कर ली, दोनों के दो बच्चे हैं।