खाटू श्याम कौन हैं, जानिये उनकी कहानी, कैसे बनें भगवान?

बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है, ये पांडुपुत्र भीम के पौत्र थे।

New Delhi, Sep 22 : खाटू श्याम जी को भगवान कृष्ण का कलयुगी अवतार माना जाता है, ऐसा कहे जाने के पूछे एक पौराणिक कथा है, राजस्थान के सीकर जिले में उनका भव्य मंदिर स्थित है, जहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, लोगों का विश्वास है कि बाबा खाटू श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं, रंक को भी राजा बना सकते हैं।

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कौन हैं बाबा खाटू श्याम
बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है, ये पांडुपुत्र भीम के पौत्र थे, ऐसी कथा है कि खाटू श्याम की अपार शक्ति और क्षमता से प्रभावित श्रीकृष्ण ने उन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था।

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क्या है कथा
लाक्षागृह की घटना में प्राण बचाकर वन-वन भटकते पांडवों की मुलाकात हिडिंबा नाम की राक्षसी से हुआ, ये भीम से शादी करना चाहती थी, माता कुंती की आज्ञा से भीम और हिडिंबा की शादी हुई, जिससे घटोत्कच का जन्म हुआ, घटोत्कच का बेटा बर्बरीक हुआ, जो अपने पिता से भी शक्तिशाली और मायाबी था। बर्बरीक देवी का उपासक था, देवी के वरदान से उसे 3 दिव्य बाण प्राप्त हुए थे, जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे, उनकी वजह से बर्बरीक अजेय हो गया था। महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक युद्ध देखने के इरादे से कुरुक्षेत्र आ रही था, कृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हुआ, तो परिणाम पांडवों के खिलाफ होगा, बर्बरीक को रोकने के लिये कृष्ण गरीब ब्राह्मण बनकर उनके सामने आये, अनजान बनते हुए कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि तुम कौन हो और क्यों कुरुक्षेत्र जा रहे हो, जवाब में बर्बरीक ने बताया कि वो एक दानी योद्धा है, जो अपने एक बाण से ही महाभारत के युद्ध का फैसला कर सकता है, कृष्ण ने उनकी परीक्षा लेनी चाही, तो उसने एक बाण चलाया, जिससे पीपल के पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया, एक पत्ता कृष्ण के पैर के नीचे था, इसलिये बाण पैर के ऊपर ठहर गया। कृष्ण बर्बरीक की क्षमता से हैरान थे, किसी भी तरह उसे युद्ध में जाने से रोकना चाहते थे, इसलिये कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम तो बड़े पराक्रमी हो, मुझे गरीब को कुछ दान नहीं दोगे, बर्बरीक ने जब दान मांगने को कहा कि कृष्ण ने उनका शीश मांग लिया, बर्बरीक समझ गया कि ये कोई गरीब ब्राह्मण नहीं बल्कि कोई और है, वास्तविक परिचय देने को कहा, कृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया, जिसके बाद बर्बरीक ने खुशी-खुशी शीश दान देना स्वीकार कर लिया। रात-भर भजन-पूजन के बाद फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी को स्नान पूजा करके बर्बरीक ने अपने हाथ से अपना शीश कृष्ण को दान कर दिया, शीश दान से पहले बर्बरीक ने कृष्ण से युद्ध देखने की इच्छा जताई थी, इसलिये कृष्ण ने बर्बरीक के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिये एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया।

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युद्ध का श्रेय
युज्झ में विजय मिलने के बाद पांडव श्रेय लेने हेतू वाद-विवाद कर रहे थे, तब कृष्ण ने कहा कि उसका फैसला बर्बरीक का शीश कर सकता है, बर्बरीक के शीष ने कहा कि युद्ध में कृष्ण का सुदर्शन चक्र चल रहा था, जिससे कटे हुए वृक्ष की तरह योद्धा रणभूमि में गिर रहे थे, द्रौपदी महाकाली के रुप में रक्तपान कर रही थी। कृष्ण ने खुश होकर बर्बरीक के उस कटे सिर को वरदान दिया, कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगे, तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा, धर्म, अर्थ, काम मोक्ष की प्राप्ति होगी। हर साल होली के दौरान खाटू श्यामजी का मेला लगता है, इस मेले में देश-विदेश से भक्तजन बाबा खाटू श्याम के दर्शन के लिये आते हैं, इस मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है, बाबा श्याम हारे का सहारा, ऐसा कहा जाता है कि इनके दर्शन से पुण्य की प्राप्ति होती है।