सिद्दारमैया- कर्नाटक की सियासत का वो जादूगर, जिसने खरगे के आगे से गायब कर दी थी सीएम की कुर्सी

कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले मल्लिकार्जुन खरगे 2013 विधानसभा चुनाव के बाद कर्नाटक में सीएम बनने वाले थे, लेकिन तब बात 7 साल पहले एचडी देवेगौड़ा की पार्टी से निकाले गये सिद्दारमैया ने उनके आगे से सीएम की कुर्सी गायब करते हुए खुद मुख्यमंत्री बन गये थे।

New Delhi, May 18 : आपको 90 के दशक में रिलीज फिल्म का वो गाना जरुर सुना होगा, जिसके बोल थे, वो सिकंदर ही कहलाता है, हारी बाजी को जीतना जिसे आता है, ये लाइनें कर्नाटक के सीएम पद के रेस में डीके शिवकुमार पर भारी पड़े सिद्दारमैया पर एकदम सटीक बैठती है, जो अपने सियासी हुनर से एक बार फिर से सीएम बनने जा रहे हैं, सिद्दारमैया को कर्नाटक की राजनीति का जादूगर यूं ही नहीं कहा जाता, आज उनकी सियासत से जुड़ा बड़ा किस्सा आपको बताते हैं, जब वो वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पर भारी पड़े थे।

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कर्नाटक की सियासत के जागदूर
जैसे अशोक गहलोत को राजस्थान की सियासत का जादूगर कहा जाता है, कुछ वैसी ही काबिलियत तथा हैसियत सिद्धारमैया भी कर्नाटक में रखते हैं, लोकदल के टिकट से चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले सिद्दारमैया कर्नाटक की राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं, सही शॉट लगाने में उनकी टाइमिंग जबरदस्त होती है, उम्र के इस पड़ाव पर भी वो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तथा हाईकमान के सबसे भरोसेमंद तथा पार्टी के सबसे रईस नेता डीके शिवकुमार पर भारी पड़ गये हैं।

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सिद्दारमैया का सियासी सफर
सिद्दारमैया अपने टारगेट सीएम पद हासिल करने से पहले रुके नहीं, पहले लोकदल, फिर जनता दल, फिर जेडीएस उसके बाद कांग्रेस हर दल में रहते हुए सिद्दारमैया अच्छे-अच्छों पर भारी पड़े, जो भी उनकी राह में आया, उसे उन्होने किनारे लगा दिया, सिद्दारमैया का कद ऐसे कैसे बढ गया, कि वो एक-एक करके अपने विरोधियों को समेटते गये, सिद्दारमैया अकेले अपने दम पर पूरी कांग्रेस पार्टी पर तब भारी पड़े, जब कर्नाटक कांग्रेस में उनके पास कोई पद भी नहीं था।

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खरगे के साथ कर दिया था खेल
कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले मल्लिकार्जुन खरगे 2013 विधानसभा चुनाव के बाद कर्नाटक में सीएम बनने वाले थे, लेकिन तब बात 7 साल पहले एचडी देवेगौड़ा की पार्टी से निकाले गये सिद्दारमैया ने उनके आगे से सीएम की कुर्सी गायब करते हुए खुद मुख्यमंत्री बन गये थे, तब कांग्रेस में सीएम के दो बड़े दावेदार थे, सबसे बड़ी दावेदारी मल्लिकार्जुन खरगे की थी, जो तत्कालीन मनमोहन सरकार में मंत्री थे, वहीं दूसरे दावेदार सिद्दारमैया थे, हालांकि रेस में एम वीरप्पा मोइली तथा तत्कालीन कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष जी परमेश्वर का भी नाम शामिल था, लेकिन बाजी सिद्दारमैया के नाम पर रही। कांग्रेस हाईकमान ने एके एंटनी, मधुसूदन मिस्त्री, लुईजिन्हो फ्लेरियो, तथा जितेन्द्र सिंह को पर्यवेक्षक बनाकर कर्नाटक भेजा था, जिन्होने जीते हुए 121 विधायकों से बात की, फिर सीक्रेट वोटिंग हुई, इसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने सिद्दारमैया का नाम तय किया, उन्हें खरगे तथा बाकी दूसरे नेताओं के मुकाबले ज्यादा विधायकों का समर्थन मिला था। जिसके बाद उनकी ताजपोशी की गई।