BSF की ओर से खेलते थे फुटबॉल, पुश्तैनी जमीन बेच शुरु किया अखबार, मणिपुर सीएम एन बीरेन सिंह की कहानी

2017 में जब बीजेपी पहली बार मणिपुर में सत्ता में आई, तो पार्टी ने एन बीरेन सिंह का नाम सीएम के लिये प्रस्तावित करके सबको चौंका दिया था, 1 जनवरी 1961 को जन्म बीरेन सिंह फुटबॉलर रहे हैं, लंबे समय तक बीएसएफ की ओर से खेले हैं।

New Delhi, Jun 17: मणिपुर जबरदस्त चर्चा में हैं, ताजा घटनाक्रम में विद्रोहियों ने राज्य के मंत्री आरके रंजन के घर में आग लगा दी है, एक दिन पहले ही विद्रोहियों के हमले में 9 लोगों की मौत हो गई थी, पिछले 2 महीने से जारी इस हिंसा के बीच मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह पर भी सवाल उठ रहे हैं, उन पर कुकी विद्रोहियों से मिलीभगत का भी आरोप लग रहा है।

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दिग्गज फुटबॉलर रहे हैं मणिपुर सीएम
2017 में जब बीजेपी पहली बार मणिपुर में सत्ता में आई, तो पार्टी ने एन बीरेन सिंह का नाम सीएम के लिये प्रस्तावित करके सबको चौंका दिया था, 1 जनवरी 1961 को जन्म बीरेन सिंह फुटबॉलर रहे हैं, लंबे समय तक बीएसएफ की ओर से खेले हैं, बीएसएफ की टीम में शामिल होने का किस्सा भी दिलचस्प है, 1979 के आस-पास बीरेन सिंह फुटबॉल टीम में अपनी जगह बनाने की जद्दोजहद कर रहे थे, एक दिन बीएसएफ जालंधर टीम के कोच की नजर उन पर पड़ी, कोच उनके खेल से खासे प्रभावित हुए, और उन्हें टीम में शामिल कर लिया, अगले 5 सालों तक वो बीएसएफ की ओर से खेलते रहे, 1991 में डूरंड कप का फाइनल मुकाबला भी खेला। एन बीरेन सिंह का फुटबॉल के प्रति लगाव इस बात से भी समझा जा सकता है, कि उन्होने अपने 3 बच्चों में सबसे छोटे बेटे का नाम ब्राजील के स्टार फुटबॉलर जीको के नाम पर रखा है, घर पर सब उन्हें प्यार से पेले के नाम से बुलाते हैं।

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पुश्तैनी जमीन बेच शुरु किया था अखबार
फुटबॉल की दुनिया को अलविदा कहने के बाद बीरेन सिंह वापस मणिपुर लौटे, तो बतौर पत्रकार अपना करियर शुरु किया, अखबार निकालने का फैसला लिया, लेकिन आर्थिक तंगी रोड़ा बन रही थी, तो उन्होने पिता की 2 एकड़ जमीन बेच दी, थोडन के नाम से अखबार शुरु किया, देखते ही देखते ये अखबार मणिपुर में चर्चित हो गया। बीरेन सिंह का ज्यादा समय पत्रकारिता में मन नहीं लगा, 2011 में सिर्फ 2 लाख रुपये में अखबार बेच दिया, फिर राजनीति में आ गये, 2002 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे, इंडियन एक्सप्रेस को दिये पुराने इंटरव्यू में उन्होने कहा था कि भारतीय सेना के प्रति मणिपुर के लोगों के बढते गुस्से ने उन्हें राजनीति में आने के लिये प्रेरित किया था।

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ओकराम इबोबी सिंह से दोस्ती और दुश्मनी की कहानी
फुटबॉल तथा पत्रकारिता के बाद सियासत में भी बीरेन सिंह हिट रहे, पहला ही चुनाव जीत गये, ये वही दौर था जब कांग्रेस के दिग्गज नेता तथा प्रदेश के सीएम ओकराम इबोबी सिंह की बीरेन सिंह पर नजर पड़ी, बीरेन ने कांग्रेस सरकार को बाहर से समर्थन दिया, फिर बाद में कांग्रेस में शामिल हो गये, 2007 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, दोबारा विधायक बने, इस बार उन्हें सिंचाई व बाढ तथा खेल मंत्रालय जैसा भारी-भरतम पोर्टफोलियो मिला। 2007 में चुनाव जीतने के बाद बीरेन सिंह एक तरह से सीएम इबोबी के दाहिने हाथ हो गये थे, सीएम के सामने जहां भी मुश्किल आती, बीरेन सिंह मामले को हैंडल करते, कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि उन दिनों सीएम इबोबी ज्यादातर फैसले बीरेन सिंह के सुझाव पर ही लिया करते थे।

2012 के बाद टर्निंग प्वाइंट
2012 आते-आते इबोबी और बीरेन सिंह के रिश्तों में खटास आ गई, 2012 चुनाव में कांग्रेस सत्ता में लौटी, लेकिन बीरेन सिंह को मंत्री नहीं बनाया गया, कांग्रेस के उनके एक पूर्व साथी बताते हैं कि उस समय तक एन बीरेन सिंह की सीएम बनने की कोई इच्छा नहीं थी, लेकिन उन्होने सीएम के लिये जितना काम किया था, इसके बावजूद उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया, ये बात उन्हें अखरी थी। 2016 आते-आते वो बगावत पर उतारु हो गये, 20 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ने की धमकी दी, उस समय इबोबी ने किसी तरह मामले को संभाला, कैबिनेट में बदलाव किया, बीरेन सिंह को पार्टी उपाध्यक्ष तथा प्रवक्ता बनाया गया, हालांकि वो इससे संतुष्ट नहीं थे, आखिरकार साल 2017 विधानसभा चुनाव के पहले उन्होने कांग्रेस छोड़ बीजेपी की सदस्यता ले ली। कांग्रेस छोड़ते समय उन्होने पार्टी पर वंशवाद की राजनीति का आरोप लगाया था, सीएम इबोबी का उदाहरण देते हुए कहा था कि उनकी पत्नी और बेटे दोनों को टिकट मिला, अब एन बीरेन सिंह सीएम हैं, तो उनकी पत्नी तथा दामाद दोनों विधायक हैं, उनके दामाद आरके इमो मणिपुर के पावर सेंटर कहे जाते हैं।