दाऊद से भी बड़ा डॉन कहलाता था ठेले पर सब्जी बेचने वाला शख्स, आधी रात पुलिस ने किया था एनकाउंटर
तब शायद ये किसी ने नहीं सोचा था कि अमर नाइक आगे चलकर मुंबई अंडरवर्ल्ड का बेताज बादशाह बन जाएगा, शुरु में गरीब दुकानदारों से रंगदारी वसूले जाने के खिलाफ लड़ने के लिये अमर नाईक ने अपने कुछ भरोसेमंदों की एक टोली बनाई।
New Delhi, May 04 : अंडरवर्ल्ड का नाम आते ही अपराध की दुनिया में दाऊद इब्राहिम की चर्चा होती है, भारत समेत कई मुल्कों की पुलिस अपराधी से आतंकी बने दाऊद को तलाश रही है, हालांकि आज हम यहां बात दाऊद की नहीं बल्कि उस गैंग्स्टर की कर रहे हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि वो कभी मुंबई में दाऊद से भी बड़ा डॉन हुआ करता था।
सब्जी का ठेला लगाता था
सालों पहले एक शख्स मुंबई की सड़कों पर सब्जी का ठेला लगाता था, उस समय भी वहां सड़क छाप गुंडों का आतंक था, एक दिन ठेले पर सब्जी बेच रहे इस शख्स की कुछ बदमाशों ने पिटाई शुरु कर दी, ये देख उस शख्स के भाई ने चाकू उठा लिया, फिर 5 लोगों से अकेले ही भिड़ गया, उसने बदमाशों को वहां से भगा दिया, इस तरह अमर नाईक उस इलाके में सब्जी बेचने वालों के लिये एक बड़ा नाम बन गया।
मुंबई का डॉन
हालांकि तब शायद ये किसी ने नहीं सोचा था कि अमर नाइक आगे चलकर मुंबई अंडरवर्ल्ड का बेताज बादशाह बन जाएगा, शुरु में गरीब दुकानदारों से रंगदारी वसूले जाने के खिलाफ लड़ने के लिये अमर नाईक ने अपने कुछ भरोसेमंदों की एक टोली बनाई, हालांकि कुछ ही दिनों बाद अमर नाइक के छोटे भाई अश्विन को बदमाशों ने किडनैप कर लिया, अश्विन किसी तरह किडनैपर्स के चंगुल से छूटकर भाग गया, और वहां से शुरु हुई अरुण गवली और अमर नाइक गैंर के बीच अदावत की कहानी।
हथियार नहीं थे
बताया जाता है कि अमर नाइक के पास गैंग तो था, लेकिन उसके पास उस समय के गैंगस्टर अरुण गवली से लड़ने के लिये हथियार नहीं थे, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अमर नाइक ने रामभट नाम के एक स्थानीय गैंगस्टर से हाथ मिला लिया, इसके बाद दोनों ने मिलकर मुंबई में अपराध का बड़ा साम्राज्य खड़ा किया था, अमर नाइक के गैंग में आलजी, पालजी जैसे कुख्यात हत्यारे थे, साल 1985 तक अमर नाइक मुंबई अंडरवर्ल्ड की दुनिया में बड़ा नाम बन चुका था, उसके बाद एक से बढकर एक महंगे हथियार थे।
दाऊद से बड़ा गैंगस्टर
कहा जाता है कि अमर नाईक ने काली दुनिया से मोटी कमाई भी की थी, पुणे, परवल और दादर में संपत्ति भी खरीदी थी, उस समय मुंबई में दाऊद गिरोह भी अपने पांव पसारने की कोशिश कर रहा था, कहा जाता है कि तब दाउद के गुर्गों को पकड़ना आसान था, लेकिन अमर नाईक की कोई जानकारी पुलिस के पास नहीं होती थी। साल 1995 में मदनपुरा इलाके में आधी रात को अमर नाईक का एनकाउंटर हुआ।