हिंदू आतंकवाद या भगवा आंतकवाद एक झूठ का पुलिंदा निकला !

ये समझना जरूरी है कि हिंदू आंतकवाद, भगवा आतंकवाद और संघी आतंकवाद एक ही शब्द है. इनका एक ही मतलब है. जो इन शब्दों के अलग अलग मतलब बताता दिखे तो समझ लीजिए कि वो शख्स ब्रेनबॉश किया हुआ एक प्राणी है।

New Delhi, Apr 17 : ये तो हिपोक्रेसी और बेशर्मी की इंतेहां है. जिन लोगों ने मुंबई हमले के लिए संघ को जिम्मेदार बताया.. जिन्होंने मुंबई हमले के दौरान हेमंत करकरे की हत्या के पीछे हिंदू आंतकवाद का हाथ बताया. जिन लोगों ने मक्का मस्जिद ब्लास्ट, समझौता एक्सप्रेस धमाका, अजमेर ब्लास्ट और मालेगांव ब्लास्ट के लिए भगवा आंतकवाद को दोषी बताया.. यही लोग आज कह रहे हैं कि आंतकवाद का कोई धर्म नहीं होता. 2009 के बाद से हिंदू आतंकवाद के नाम पर कांग्रेस, लेफ्ट और उनके समर्थकों ने जो तमाशा किया.. दुनिया भर में हिंदुओं को बदनाम किया गया.. पाकिस्तान को भारत के खिलाफ सिर उठाने का मौका दिया.. उसके लिए कौन जिम्मेदार है?

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एनआईए की विशेष अदालत ने साल 2007 के मक्का मस्जिद विस्फोट से जुड़े मामले में फैसला सुना दिया है. इस मामले में कोर्ट ने असीमानंद समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. वजह, इनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है. सबूत नहीं होने के कारण कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा को पहले ही राहत मिल चुकी है. ये तीन ऐसे नाम पर हैं जिनके आधार पर इस देश में हिंदू आंतकवाद की थ्योरी गढ़ी गई. हिंदुओं को लज्जित और अपमानित करने की कोशिश की गई. लेकिन असीमानंद के फैसले के बाद बहस झिड़ गई कि क्या हिंदू आतंकवाद एक झूठ था जिसे कांग्रेस की सरकार ने राजनीतिक फायदा के प्रचारित कियाा? आगे बढ़ने से पहले ये समझना जरूरी है कि हिंदू आंतकवाद, भगवा आतंकवाद और संघी आतंकवाद एक ही शब्द है. इनका एक ही मतलब है. जो इन शब्दों के अलग अलग मतलब बताता दिखे तो समझ लीजिए कि वो शख्स ब्रेनबॉश किया हुआ एक प्राणी है.

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कोर्ट के फैसले के बाद हिंदू आंतकवाद को हकीकत बताने वाले लेफ्ट-लिबरल गैंग के लोग टीवी चैनलों पर बड़े डिफेंसिव और बेतुकी बातें करते नजर आए. पहली बेतुकी बात ये कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. पिछले 10 साल से ये लोग दिन रात हिंदू टेरर – सैफ्रन टेरर रटते रहे लेकिन आज जब फैसला आ गया तो कह रहे हैं कि आतंकवाद का धर्म नहीं होता. दूसरी बेतुकी बात ये कि कांग्रेस पार्टी ने हिंदू आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया. हकीकत ये है कि मुस्लिम वोट की खातिर हर आरएसएस-बीजेपी विरोधी पार्टियों ने इस शब्द का भऱपूर इस्तेमाल किया. ये लोग आगे भी करेंगे. लेकिन एक बात सुनकर हैरानी हुई है. ऐसा लगता है कि ये सेकुलर-परभक्षियों ने एक योजना के तहत ये कहना शुरु कर दिया है कि हिंदू आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले हेमंत करकरे ने की थी.. ये लोग उनकी मौत को संदिग्ध बताते आए हैं.. जबकि ये दिन के उजाले की तरफ साफ है कि उन्हें पाकिस्तानी से आए जिहादियों ने अपनी गोलियों का निशाना बनाया था.

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भगवा आंतकवाद यानि सैफ्रन टेटर शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले 2002 (मार्च 16 – मार्च 29 ) में द हिंदू ग्रुप की पत्रिका फ्रंटलाइन हुआ था. इसके लेखक थे पत्रकार परवीन स्वामी थे. वो कुछ दिन पहले तक इंडियन एक्सप्रेस थे लेकिन बताया जाता है पाकिस्तान के जेल में बंद कुलभूषण जाधव को जासूस साबित करने के कारण उन्हें इंडियन एक्सप्रेस छोड़ना पड़ा. वैसे परवीन स्वामी की पाकिस्तान में काफी इज्जत है. द हिंदू ग्रुप – संघ और बीजेपी से घृणा करने वाला समूह है. ये कहना गलत नहीं होगा कि ये वामपंथियों और कांग्रेस का मुखपत्र है. इसी ग्रुप में कई ऐसे लेखकों ने भगवा-हिंदू-संघी आंतकवाद शब्दों का इस्तेमाल शुरु किया और धीरे धीरे ये शब्द संघ विरोधी सर्किल्स में पापुलर हो गया. विदेशी लेखकों ने भी यहीं से पढ़ कर इसे एक सच मान लिया और ये लिखना शुरु कर दिया. इस तरह ये शब्द पूरी दुनिया में फैल गया. लेकिन हिंदू आंतकवाद का प्रचार सबसे ज्यादा तब हुआ जब 2010 में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और तत्कालीन अमेरिकी राजदूत के बीच की बातचीत का खुलासा विकीलीक्स ने कर दिया. इस बातचीत में राहुल गांधी हिंदू आतंकवाद को इस्लामी आतंकवाद से ज़्यादा खतरनाक बताया था.

कांग्रेस पार्टी अब गांधी पारिवार की मिल्कियत बन चुकी है और उस वक्त राहुल गांधी कांग्रेस के युवराज थे और प्रधानमंत्री से लेकर सारे मंत्री की हैसियत सोनिया-राहुल के गुलामों की ही थी. युवराज ने हिंदू आंतकवाद को खतरा तो बता दिया लेकिन इसके सबूत कहां थे? ऐसा लगता है कि एक योजना के तहत हिंदू आतंकवाद को साबित करने के लिए यूपीए के महाभ्रष्ट नेताओं ने एक षडयंत्र रची. उन धमाकों को चुना गया जिसमें मुसलमानों की मौत हुई. इन मामलो में तब तक गिरफ्तारियां हो चुकी थी. कुछ की जिम्मेदारी पाकिस्तान और बांग्लादेश के आतंकी संगठनों ने ले भी ली. लेकिन कांग्रेस को तो हिंदू आंतकवाद को साबित करना था इसलिए झूठी कहानियां बनाई गई. झूठे साक्ष्य पैदा किए गए. निर्दोष लोगों को गिरफ्तार किया गया. नीचता इतनी कि गेरुआ वस्त्र पहनने वाली एक महिला साध्वी प्रज्ञा को भी आंतकवादी बना दिया. देशभक्त कर्नल पुरोहित को आंतकी बता दिया. असीमानंद का कसूर इतना था कि वो कभी संघ से जुड़े थे. झूठे गवाह तैयार किए गए. इनके खिलाफ बयान देने के लिए उन्हें यातनाएं दी गई. नार्को टेस्ट किया गया. लेकिन, सालों गुजर जाने के बाद भी चार्जशीट दायर करने की इनकी हिम्मत नहीं हुई.

नोट करने वाली बात ये है कि इन मामलों की जांच कांग्रेस की सरकार ने एनआईए को सौंप दी. नियमों के मुताबिक हर चार्जशीट दायर करने से पहले एनआईए इसे गृहमंत्रालय को दिखाती है. ये कानून यूपीए के दौरान ही बनाए गए थे. इसलिए हिंदू आंतकवाद को कांग्रेस की राजनीति का हिस्सा कहना गलत नहीं होगा. क्योंकि इस दौरान एनआईए के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने गृहमंत्रालय से ये साफ साफ कहा था कि उनके पास इनलोगों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है. कोर्ट में वो हिंदू आतंकवाद को साबित नहीं कर पाएंगे. दूसरी तरफ, पाकिस्तान और देश विरोधी ताकतों ने भारत को नीचा दिखाने के लिए हिंदू आतंकवाद का भरपूर इस्तेमाल किया. टीवी चैनलों में टोपी लगा कर हर ऐरा-गैरा हिंदू आतंकवाद की दुहाई देकर हिंदुओं का अपमान करता रहा और देश के लोग तमाशा देखते रहे. इस झूठ को मीडिया के माध्यम से इतनी बार दोहराया गया कि कई लोगों को यकीन भी हो गया कि वाकई हिंदू भी आतंकी हो सकते हैं.

ये सब इसलिए किया गया क्योंकि कांग्रेस पार्टी को अपने युवराज की बातों को सच साबित करना था. 2014 में जब लोगों ने कांग्रेस पार्टी को इनकी झूठ, इनके भ्रष्टाचार और देश को तबाह करने के लिए दंडित किया तब जाकर सच्चाई सामने आने लगी. मोदी सरकार चाहती तो इन पर लगे आतंकवाद के कलंक को एक झटके में खत्म कर सकती थी.. लेकिन देश में सेकुलर गैंग की ताकत के सामने इनकी एक न चली वो भी कोर्ट के आदेश का इंतजार करती रही. अब जब कोर्ट के फैसले आ रहे तो हिंदू आंतकवाद नामक कांग्रेस प्रोपेगेंडा का भांडा तो फूट गया लेकिन अब सरकार को चाहिए कि उन अधिकारियों की खबर ले जिन्होंने कांग्रेस नेताओं के कहने पर निर्दोष लोगों पर आतंकवाद जैसे आरोप लगाए थे.

अंत में एक और बात जिसके बारे में सबको सोचना चाहिए. मंबई हमले के अगले ही दिन पाकिस्तान और हिंदुस्तान के कुछ अखबारों ने ये खबर छापी कि हमले के पीछे हिंदू आंतकवाद का हाथ है. इसके सबूत में बताया गया कि कसाब और दूसरे आंतकवादियों के हाथ में कलेवा बांधा हुआ जो हिंदू बांधते हैं. इन झूठ के सौदागरों ने ये भी कहा कि आंतकियों की भाषा भी पाकिस्तानियों की तरह नहीं है. वो दिखने में हिंदू लगते हैं. इतना ही नहीं.. कुछ दिन बाद ही. उर्दू अखबार के एक एडिटर अजीज बर्नी ने तो मूर्खता की सारी सीमाएं लांघ दी. मुंबई हमले पर एक किताब लिख दिया. किताब का नाम था – “आर. एस. एस. की साजिश – 26/11”. मतलब ये कि मुंबई हमला आरएसएस ने करवाया था. इस किताब का लोकार्पण दिल्ली के इस्लामिक कल्चर सेंटर में किया गया. इस कार्यक्रम में दो राजनेता भी थे – कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह और राज्यसभा के उपसभापति के. रहमान खान.

हिंदुओं को भगवान को शुक्रिया कहना चाहिए कि मुंबई हमले के दौरान कसाब जिंदा पकड़ा गया और पाकिस्तान के जिओ टीवी ने कसाब के घर परिवार को ढूंढ निकाला. ये साबित कर दिया कि ये लोग पाकिस्तान से आए थे और ये षडयंत्र पाकिस्तान में पल रहे जिहादी संगठनों का था.
जरा सोचिए कि अगर कसाब जिंदा नहीं पकड़ा गया होता तो क्या होता? अगर ये पता नहीं चलता कि कसाब और उसके साथी पाकिस्तान से आए थे तो क्या होता? हम नाक रगड़ते रह जाते फिर भी ये साबित नहीं कर पाते कि मुंबई हमला के पीछे पाकिस्तान है. और बड़ी आसानी से देश का सेकुलर गैंग ये साबित कर देता कि मुंबई हमला हिंदू आतंकवाद का उदाहऱण है. यहां एक सवाल पूछना लाजमी है कि क्या कांग्रेस पार्टी पाकिस्तान के करतूतों पर पर्दा डालने के लिए हिंदू आतंकवाद का बवाला मचाया या फिर पाकिस्तान की आईएसआई के साथ मिल कर बीजेपी और आरएसएस से लड़ने की ये कोई नीति थी?

(वरिष्ठ पत्रकार मनीष कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)