बचपन कूड़ा बीनते हुए गुजरा, अब उसी शहर के बन गये मेयर, किसी फिल्मी कहानी से कम नही हैं संघर्ष की दास्तां
मेयर राजेश ने कहा कि उन्होने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वो इस कुर्सी को भी संभालेंगे, जिसके नीचे बैठ कागज के टुकड़े चुनते थे।
New Delhi, Jan 21 : जिस शख्स का बचपन कचरा बीनने हुए गुजरा, अब वही राजेश कालिया चंडीगढ के मेयर बने हैं, उनकी कहानी बिल्कुल फिल्मी लगती है, गरीबों और अनुसूचित जाति के लिये संघर्ष करने वाले राजेश कालिया का शुरुआती जीवन बेहद अभाव में गुजरा, सात भाई-बहनों मिें उनका पालन-पोषण आसान नहीं था। बचपन में स्कूल के बाद वो अपने भाई बहनों के साथ डड्डूमाजरा डंपिंग ग्राउंड में कूड़े से कुछ चीजों को चुनते थे।
परिवार का चलता था पेट
राजेश कालिया के संघर्ष की कहानी बिल्कुल फिल्मी लगती है, उन्होने खुद ही बताया कि वो डड्डूमाजरा के डंपिंग ग्राउंड से कूड़े से कई सामानों को चुनते थे, फिर उसे ले जाकर कबाड़ी वाले के पास बेचते थे, उससे जो भी पैसे मिलते थे, उससे उनके परिवार का पेट चलता था।
कभी नहीं सोचा, यहां पहुंचूगा
राजेश ने कहा कि उन्होने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वो इस कुर्सी को भी संभालेंगे, जिसके नीचे बैठ कागज के टुकड़े चुनते थे, बचपन से ही राजनीति में रुझान होने की वजह से कालिया बीजेपी नेताओं के संपर्क में आ गये, फिर धीरे-धीरे पार्टी के वफादार वर्कर बन गये, बीजेपी ने पहले कालिया को पार्षद और फिर मेयर पद का प्रत्याशी बनाया, उनका कहना है कि ये सिर्फ बीजेपी में ही हो सकता है, कि चाय वाला पीएम और कूड़ा बीनने वाला मेयर बन सकता है।
सात भाई बहन
डड्डूमाजरा में रहने वाले राजेश कालिया के अलावा उनके तीन भाई और तीन बहनें है, उनके पिता पंजाब सरकार में सेवादार के पद से रिटायर हो चुके हैं, कालिया की तीन बेटियां है, डड्डूमाजरा डंपिंग ग्राउंड आम लोगों के लिये बनी चुनौती है, अब देखना है, कि उनके मेयर बनने के बाद कैसे इस मसले से निपटा जाता है।
ऐसे मिली मंजिल
राजेश कालिया बीजेपी एससी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं, वो पिछले तीस साल से बीजेपी और संघ से जु़ड़े हुए हैं, साल 2011 नगर निगम चुनाव में वो पहली बार लड़े, लेकिन हार गये, फिर 2016 में पहली बार पार्षद बने, अब पार्टी ने उन्हें मेयर प्रत्याशी बनाया और वो जीत कर मेयर बन गये हैं।