Opinion – असहमति और विरोध का अर्थ चरित्रहनन नहीं होता
दुष्प्रचार से आप का ही नुकसान होता है। आप के समाज का होता है। गांधी और नेहरू का नहीं। उन का सम्मान दुनिया करती है।
New Delhi, Nov 17 : सोचता हूं कि राहुल गांधी इतना पाजी , इस क्वालिटी का पप्पू और अक्षम न होता तो क्या जन्म-दिन पर भी पंडित नेहरू को तमाम लोग , अनपढ और अभद्र लोग इस तरह की अभद्र बात कहने का साहस करते या सोच भी पाते ? विरोध और असहमति नेहरू से पहले भी लोगों की थी। लोहिया की सारी राजनीति ही नेहरू विरोध पर आधारित थी। कांग्रेस के परिवारवाद के विरोध में थी। पटेल , जयप्रकाश नारायण आदि भी नेहरू के चमचे नहीं थे।
नेहरू से असहमतियां गांधी समेत बहुतों की थीं। विरोध भी बहुत था। लेकिन असहमति और विरोध की भी अपनी मर्यादा होती है। असहमति और विरोध का अर्थ चरित्रहनन नहीं होता। अभद्र और अमर्यादित भाषा नहीं होती। कम से कम गाली-गलौज तो नहीं ही होता। सब को सन्मति दे भगवान ही कह सकता हूं। और क्या कहूं। राम ने रावण का वध किया था पर रावण को उस का सम्मान देते हुए। फिर गांधी और नेहरू रावण नहीं , हमारे नायक हैं। आप फिर भी उन से असहमत होने का अधिकार रखते हैं। उन की आलोचना और विरोध का भी अधिकार है आप के पास। धज्जियां उड़ा दीजिए उन की।
लेकिन गाली-गलौज और अभद्र भाषा , चरित्र हनन को विरोध और असहमति का औजार नहीं बनाएं। दुष्प्रचार से आप का ही नुकसान होता है। आप के समाज का होता है। गांधी और नेहरू का नहीं। उन का सम्मान दुनिया करती है। करती रहेगी।
आप अपने अपमान की दुनिया तो न रचें। विरोध और असहमति को भी शालीनता से व्यक्त करें। गाली-गलौज से नहीं। तथ्य , तर्क और सत्य को अपनी बात कहने का औजार बनाएं। झूठ , कुतर्क , तथ्यहीन और दुष्प्रचार के औजार से भरसक बचें। बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल। कबीर खुद ही लिख गए हैं। लेकिन कबीर को तो कोई गाली नहीं देता। बहुतों की औलादें नालायक होती हैं। इतिहास भरा पड़ा है ऐसे नालायकों से। पर नालायकों के चक्कर में कोई पुरखों को गाली थोड़े ही देता है। मुमकिन हो तो सभी मित्र इस बीमारी से बचें।
(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)