Opinion – बीजेपी और शिवसेना दोनों के लिए आत्ममंथन का वक्त है
बीजेपी ने मायावती जैसी अविश्वसनीय, अवसरवादी, जातिवादी, सिद्धांतविहीन और भ्रष्ट समझी जाने वाली नेता के साथ 50-50 सरकार बनाई है, तो क्या शिवसेना के साथ नहीं बना सकती थी?
New Delhi, Nov 24 : नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के आगे से थाली छीनी, बिहार में न घुसने देने का एलान किया, प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर गठबंधन तोड़ा, संघमुक्त भारत बनाने का एलान किया, वह सब कुछ कहा जो किसी भी भले आदमी को बुरा लगेगा। इसके बाबजूद जनाधार खो चुके नीतीश को बीजेपी ने माथे पर बिठा रखा है, लोकसभा चुनाव में आधी सीटें देकर पुनर्जीवित किया और एक साल पहले से उन्हीं के नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ने का एलान कर रखा है।
मैंने व्यक्तिगत कभी शिवसेना की राजनीति को सपोर्ट नहीं किया, लेकिन यह सवाल मन में ज़रूर है कि शिवसेना 30 साल से साथ थी, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की बात करती थी, उद्धव ने संभवतः स्वयं मोदी-शाह तो दूर कभी किसी भी बड़े बीजेपी नेता के लिए गलत नहीं कहा, फिर भी आखिर उन्हें ऐसा क्यों लगने लगा कि बीजेपी धीरे धीरे उसकी जमीन खाने पर तुली हुई है? क्यों वह देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में सहज नहीं रह गए? 50-50 का फॉर्मूला क्या झूठ-मूठ ही पैदा किया गया? आखिर क्यों शिवसेना इस नतीजे पर पहुंच गई कि अभी नहीं तो कभी नहीं? क्या सारी गलती शिवसेना की ही थी या कुछ मात्रा में बीजेपी भी ज़िम्मेदार है?
बीजेपी ने मायावती जैसी अविश्वसनीय, अवसरवादी, जातिवादी, सिद्धांतविहीन और भ्रष्ट समझी जाने वाली नेता के साथ 50-50 सरकार बनाई है, तो क्या शिवसेना के साथ नहीं बना सकती थी? क्या देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाने से शिवसेना 50-50 की हठ छोड़ सकती थी? क्या शिवसेना के साथ गठबंधन में बराबरी का व्यवहार नहीं हुआ, इसलिए उसने गठबंधन तोड़ा?
यूँ तो प्रथमदृष्टया यही दिखाई दिया कि जनता ने बीजेपी और शिवसेना को सरकार बनाने का मैंडेट दिया, लेकिन शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद के लालच में गठबंधन तोड़ा। लेकिन अंदर की कहानी इतनी सरल और तात्कालिक हो यह ज़रूरी नहीं। इसलिए महाराष्ट्र में पैदा हुए हालात पर कुछ मंथन तो बीजेपी को भी करना चाहिए।
यह सही है कि बीजेपी और शिवसेना दोनों ही हिंदुत्व की ज़मीन पर सियासत कर रही हैं, इसलिए महत्वाकांक्षी बीजेपी के साथ अपनी ज़मीन बचाने के लिए संघर्ष कर रही शिवसेना का यह संघर्ष एक न एक दिन अवश्यम्भावी था, लेकिन बीजेपी और शिवसेना दोनों को सोचना चाहिए कि जिस कांग्रेस और एनसीपी को उन्होंने नैचुरली करप्ट पार्टी कहा, उसके भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं के साथ जब वो सरकार बनाते हैं, तो जनता को कैसा महसूस होता है?
मेरे खयाल से यह बीजेपी और शिवसेना दोनों के लिए आत्ममंथन का वक्त है, वरना उनके जो चेहरे तैयार होने वाले हैं, वे किसी को दिखाने लायक नहीं रहेंगे। अगर गठबंधन समय की ज़रूरत है और एनडीए को चलाना है तो बीजेपी को यथाशीघ्र एक प्रभावशाली एनडीए समन्वय समिति कायम करनी चाहिए।
(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)