अनुसूचित कानून में सुधार

कोई अनुसूचित व्यक्ति किसी भी व्यक्ति की जरा-सी भी शिकायत कर दे कि उसने उसका अपमान किया है या उसे तकलीफ पहुंचाई है तो उसके खिलाफ पुलिस तत्काल कार्रवाई करेगी।

New Delhi, Mar 22 : सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एतिहासिक फैसले में अब यह तय किया है कि वह अनुसूचित जाति और जनजाति कानून का दुरुपयोग नहीं होने देगी। 1989 में बने इस कानून का मुख्य लक्ष्य यह था कि देश के अनुसूचित लोगों पर होनेवाले अत्याचारों को रोका जाए। इस कानून के तहत इतने कड़े प्रावधान किए गए थे कि कोई अनुसूचित व्यक्ति किसी भी व्यक्ति की जरा-सी भी शिकायत कर दे कि उसने उसका अपमान किया है या उसे तकलीफ पहुंचाई है तो उसके खिलाफ पुलिस तत्काल कार्रवाई करेगी। उसे तत्काल गिरफ्तार कर लेगी और उसे जमानत भी नहीं मिलेगी।

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कोई अग्रिम जमानत मांगेगा तो वह भी नहीं मिलेगी। इन प्रावधानों के कारण झूठी शिकायतों का अंबार लगने लगा। इन प्रावधानों की आड़ लेकर लोग अपनी दुश्मनी निकालने लगे। 2016-17 में ऐसे 15,638 मुकदमे चले। उनमें से 11024 मुकदमे फर्जी निकले। 2015-16 में लगभग 6 हजार मुकदमे फर्जी निकले। ऐसे प्रावधानों के कारण अदालतों का समय तो नष्ट हो ही रहा था, समाज में अनावश्यक तनाव भी फैल रहा था। निर्दोष लोगों पर अकारण अत्याचार भी हो रहा था। इस विसंगति को रोकने में सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला जरुर मदद करेगा।

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अब अदालत का निर्देश यह है कि कोई भी शिकायत जैसे ही पुलिस थाने में आए, किसी भी व्यक्ति को तत्काल गिरफ्तार नहीं किया जाएगा बल्कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पहले यह जांच करेगा कि क्या गिरफ्तारी जरुरी है ? इसी प्रकार किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर पहले पुलिस जांच करेगी लेकिन इस जांच के लिए उसे सरकार से अनुमति लेनी होगी। अदालत के सामने जब ऐसे मुकदमे आएं तो जजों को भी सोच-समझकर फैसला करना चाहिए और वे अपने विवेक से ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत भी दे सकते हैं।

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वास्तव में ये सारे प्रावधान संसद को अपने मूल कानून में ही करने चाहिए थे लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद ! सिर्फ अनुसूचित जाति और जन-जाति अत्याचार-निवारण कानून में ही नहीं, देश के ऐसे कई कानून हैं, जिनमें इस तरह के सुधारों की जरुरत है। जैसे बलात्कार-विरोधी, तीन तलाक विरोधी और दहेज-विरोधी आदि कानून। ये कानून बहुत अच्छे हैं। इन्हें दृढ़ता से लागू भी किया जाना चाहिए लेकिन यह देखना भी अदालतों का काम है कि इनकी आड़ में लोग दूसरों पर अत्याचार न करें और नागरिकों के मूलभूत अधिकार तिरोहित न हो जाएं।

(वरिष्ठ स्तंभकार एवं पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)