चचेरे चीन की चोंच में मालदीव

आपातकाल समाप्ति की घोषणा के बाद जब चीन में मालदीव के राजदूत मोहम्‍मद फैसल ने चीन को अपने खोये चचेरे भाई की तरह बताया तो भारत में किसी को आश्चर्य नहीं हुआ।

New Delhi, Mar 25 : मालदीव में 45 दिनों से लगा आपातकाल विगत 22 मार्च को समाप्त हो गया। पर अंदरूनी हालात ज्यों के त्यों बने हुए हैं। और ये हालात चीन की चाल से और बिगड़ भी रहे हैं। यह चीन ही है, जो मालदीव को पाकिस्तान के रास्ते पर ले जा रहा है। यह चीन ही है, जो मालदीव में लोकतंत्र का गला घोंटने वाले तानाशह प्रव़ृति के मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्लाह यामीन को शह दे रहा है, जिनके कारण अपने खूबसूरत समुद्री तटों के लिए मशहूर इस छोटे से देश में अराजकता फैली हुई है, और इस्लामी आतंकवाद भी फैल रहा है।

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मालदीव का हालिया घटनाक्रम बीते माह पहली फरवरी 2018 को तब शुरु हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद समेत 9 लोगों के खिलाफ दायर एक मामले को खारिज करते हुए इन नेताओं की रिहाई और राष्ट्रपति यामीन की पार्टी से अलग होने के बाद बर्खास्त किए गए 12 विधायकों की बहाली का भी ऑर्डर दिया। दरअसल पूर्व राष्ट्रपति नशीद पर आतंकवाद से जुड़े होने के झूठे आरोप लगाये गये थे, जिसमें वहां की अदालत ने उन्हें निर्दोष पाया था। लेकिन यामीन सरकार ने न सिर्फ अदालत का फैसला मानने से इनकार कर दिया, बल्कि अदालत के फैसले को तख्तापलट की कोशिश बताकर 5 फरवरी को मालदीव में इमरजेंसी भी लागू कर दी। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश अब्दुल्ला सईद और पूर्व राष्ट्रपति मॉमून अब्दुल गयूम को जेल में डाल दिया।

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यहां तक कि यामीन ने उल्टे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस अब्दुल्ला सईद और पूर्व राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम समेत कुल नौ लोगों पर आतंकवाद का आरोप लगातकर मुकदमा दायर कर दिया है। इनमें इन दोनों के अलावा सुप्रीम कोर्ट के एक जज, एक न्यायिक अधिकारी और गयूम के बेटे समेत चार सांसद भी शामिल हैं। जस्टिस सईद और जजों पर सरकार को गिराने के लिए घूस लेने का आरोप भी लगाया गया है। हालांकि अभियोजकों ने इन पर आतंकवाद का आरोप लगाने का कोई आधार नहीं बताया। सुप्रीम कोर्ट के तीन अन्य न्यायाधीशों ने राष्ट्रपति यामीन से डर कर उनके फैसलों पर स्वीकृति की मुहर लगा दी। तो यह है मालदीव।

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मालदीव में मौजूदा संकट की शुरूआत तो करीब छह साल पहले हुई, जब सन 2012 में देश के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को पद से हटा दिया गया। लेकिन वास्तव में यहां राजनीतिक अस्थिरता लगभग शुरु से रही है. सन 1965 में ब्रिटेन से आज़ादी मिलने के बाद शुरू में यहां राजशाही रही और नवंबर 1968 में यह गणतंत्र बना। मालदीव को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने वाले पहले देशों में भारत भी एक था। सन 1972 में भारत ने अपना राजनयिक मिशन मालदीव की राजधानी माले में स्थापित किया। सन 1976 में भारत-मालदीव की समुद्री सीमाओं का भी निर्धारण हो गया था, ताकि कोई मतभेद न हों। सन 1982 में दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता भी हुआ।

सन 1972 में अहमद ज़की मालदीव के प्रधानमंत्री चुने गये थे, लेकिन 1975 में तख़्तापलट हुआ और उन्हें एक द्वीप पर भेज दिया गया. तब देश के पहले राष्ट्रपति इब्राहिम नासिर सत्ता में थे। बाद में देश के आर्थिक हालात बिगड़े तो सन 1978 में राष्ट्रपति नासिर सरकारी खज़ाने के लाखों डॉलर लेकर सिंगापुर भाग गए। उनके बाद मोमून अब्दुल गयूम सत्ता में आये और अगले 30 सालों तक सत्तारूढ़ रहे। उनके ख़िलाफ़ भी तख्तापलट की तीन कोशिशें हुईं, जिनमें से एक को भारत ने अपने सैनिक भेजकर नाकाम किया था।
यह बात नवंबर 1988 की है। मालदीव के एक व्यापारी अब्दुल्ला लुथुफ़ी ने श्रीलंका में अलगाववादी संगठन पीपल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (प्लोटे) के साथ मिलकर मालदीव की सत्ता हथियाने की साज़िश रची। प्लोटे के 80 लड़ाकों ने राजधानी माले पर समुद्र के रास्ते आकर हमला किया और तमाम महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों पर कब्ज़ा कर लिया। तब राष्ट्रपति अब्दुल गयूम की गुहार पर भारत की राजीव गाँधी सरकार ने 9 घंटे के भीतर 1600 सदस्यों के सैनिक बल को मालदीव भेजा। भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन कैक्टस’ चलाकर कुछ ही घंटों में माले का नियंत्रण राष्ट्रपति गयूम को सौंप दिया।

तब राष्ट्रपति गयूम के शासन में कोई विपक्ष नहीं था। लेकिन उनके शासनकाल के अंत में मालदीव में कई राजनीतिक आंदोलन होने लगे। सन 2003 में पत्रकार मोहम्मद नशीद ने मालदीवियन डेमोक्रैटिक पार्टी का गठन कर गयूम प्रशासन पर राजनीतिक सुधार हेतु दबाव बनाया। यही वो नशीद हैं, जो सन 2008 में मालदीव में नया संविधान बनने के बाद हुए चुनाव में पहली बार जीतकर राष्ट्रपति बने। और यहीं से सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया। राष्ट्रपति नशीद के भारत के साथ बेहतर ताल्लुकात रहे हैं। राष्ट्रपति गयूम और राष्ट्रपति नशीद ने कई बार भारत का दौरा भी किया था। मौजूदा राष्ट्रपति यामीन ने भी जनवरी 2014 में पहली बार भारत का दौरा किया और मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल हुए और फिर अप्रैल 2016 में भी राष्ट्रपति यामीन ने दोबारा भारत का दौरा किया था। पर उनका झुकाव हमेशा से चीन की तरफ ही रहा है।

इसीलिए आपातकाल समाप्ति की घोषणा के बाद जब चीन में मालदीव के राजदूत मोहम्‍मद फैसल ने चीन को अपने खोये चचेरे भाई की तरह बताया तो भारत में किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। एक इंटरव्‍यू में फैसल ने कहा, ‘भारत एक भाई की तरह है लेकिन चीन एक ऐसा चचेरा भाई है जो बहुत वर्षों पहले खो गया था लेकिन अब जाकर मिला है। एक ऐसा भाई जो हमेशा हमारी मदद को तैयार रहता है।’ फैसल का दावा है कि मालदीव ने भारत से कई प्रोजेक्‍ट्स को लेकर इच्‍छा जताई, लेकिन कभी जरूरी पैसे नहीं मिले। फैसल ने यह भी कहा कि उनका देश भारत की चिंताओं के बावजूद चीनी प्रोजेक्‍ट्स को आगे बढ़ाता रहेगा। फैसल के इस बयान से चीन के साथ उसकी सांठगांठ साफ हो जाती है।

वास्तव में चीन ने मालदीव पर उसी तरह डोरे डाले हैं, जैसे पाकिस्तान पर। चीन ने मालदीव को हिंद महासागर में मैरीटाइम सिल्‍क रोड प्‍लान प्रोजेक्‍ट में हिस्‍सेदार बनाया है। इसके अलावा भी चीन मालदीव को लुभाने के लिए वहां भरपूर निवेश कर रहा है, खूब धन दे रहा है। आलम ये है कि आज मालदीव पर कुल विदेशी कर्ज का 70 प्रतिशत कर्ज अकेले चीन का है। अब छोटा सा देश मालदीव चीन का भारी कर्ज तो नहीं चुका पाएगा, लेकिन उस कर्ज के बोझ तले उसके सामने झुका रहेगा। और चीन भी यही चाहता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्‍तान और मालदीव समेत दुनिया के 8 देश चीनी कर्ज के जाल में फंसकर बर्बाद हो सकते हैं। करीब 8 लाख करोड़ डॉलर की लागत वाली चीन की महत्‍वाकांक्षी वन बेल्‍ट वन रोड परियोजना इन देशों की बर्बादी का कारण बन सकता है।

मालदीव के विपक्षी दलों का आरोप है कि चीन की शह पर राष्ट्रपति यामीन अनेक राष्ट्रविरोधी फैसले ले रहे हैं। इसीलिए निर्वासन में रह रहे पूर्व राष्‍ट्रपति नशीद ने भारत से हस्‍तक्षेप की अपील की थी। लेकिन भारत ने कई वजहों से दखल नहीं दिया। एक तो यह कि तब भारत से सैन्य मदद मांगने वाले मालदीव के राष्ट्रपति थे, जबकि इस बार पूर्व राष्ट्रपति और निर्वासित नेता मदद मांग रहे थे। दूसरे, तब चीन भी बीच में नहीं था। इस बार वहां के मौजूदा राष्ट्रपति यामीन ने चीन को बीच में डालकर मामला संवेदनशील बना दिया।
सबको मालूम है कि राष्ट्रपति यामीन अगर कोर्ट के फैसले को लागू करते तो संसद में अल्पमत हो जाते और उन पर महाभियोग भी चल सकता था। इसीलिए वे इन सांसदों की वापसी और नेताओं की रिहाई की बजाय तानाशाही और आतंक फैला रहे हैं। भारत समेत ब्रिटेन, अमेरिका, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र संघ और तमाम देश उन्हें संवैधानिक मर्यादा पालन करने को कह रहे हैं। लेकिन उसका कोई असर अभी नहीं है। और इसकी वजह चीन है।

मालदीव के लिए इंडिया फर्स्ट की जगह चाइना फर्स्ट होता जा रहा है। दिसंबर 2017 में यामीन ने चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट साइन किया, जिसे अप्रूव करने का समय सांसदों को केवल 15 मिनट के लिए दिया गया। चीन के साथ सांठगांठ बढ़ाते मालदीव ने इसी माह होने वाली इंडियन नेवी की मिलन एक्सरसाइज का न्योता ठुकरा दिया था।
चीन मालदीव में नौसैनिक अड्डा बनाने की फिराक में भी है, जिसको लेकर भारत चिंतित है। खबर है कि चीन मालदीव के समुद्र में एक संयुक्त महासागर वेधशाला (OBS) बनाने की तैयारी कर रहा है, जो सैन्य जरूरतें पूरी करने वाला होगा और इसमें एक पनडुब्बी बेस भी बनाया जाएगा। चचेरे भाई चीन के साथ मिलकर यामीन ने पिछले तीन सालों में मालदीव को इस्लामी आतंकवाद का अड्डा भी बना दिया है। यहां के कई युवा सीरिया में खून बहा रहे हैं। मालदीव पाकिस्तान बनने की राह पर है। विश्व समुदाय को इसे रोकना चाहिए।

(वरिष्ठ पत्रकार ओंकारेश्वर पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)