राजनीतिक परिदृश्य से उठते खतरनाक संकेत, विलुप्त होता विपक्ष शुभ संकेत नहीं !

बिहार की ताज़ा राजनीतिक घटनाओं के बाद अब देश में राजनीतिक वर्ग से जनता का विश्वास हमेशा –हमेशा के लिए उठ गया।

New Delhi, Aug 05 : सुदर्शन की अमर कहानियों में एक था “हार की जीत”. उसमें बाबा भारती एक पुजारी संत थे जिनके पास एक बलशाली घोड़ा था. एक दिन बाबा घोड़े पर हवा से बाद करते हुए जा रहे थे कि कान में आवाज़ आयी ,” बाबा , इस दुखियारे को भी लेता चल, बीमार हूँ डॉक्टर को दिखाने जाना है”. बाबा ने दया करते हुए उसे बैठा लिया. लेकिन चंद मिनटों में ही बाबा को धक्का दे कर वह दुखियारा तन कर लगाम ताने घोड़े पर बैठा था और कह रहा था “बाबा , तुम संतों को ऐसे बलवान घोड़े से क्या लेना देना, यह तो हम डाकुओं के इस्तेमाल के लिए है”. तब बाबा को अहसास हुआ कि दुखियारा कोई और नहीं, डाकू खड्ग सिंह है. डाकू घोड़े को लेकर अभी चंद कदम बढ़ा हीं था कि बाबा कि आवाज आयी. जिस पर डाकू ने कहा “बाबा कुछ भी मांग लो, दे दूंगा पर, अब यह घोड़ा नहीं दूंगा”. बाबा ने घोड़े की ओर से मुंह मोड़ते हुए कहा, “घोडा अब तुंहारा हुआ मैं कभी इस ओर देखूँगा भी नहीं, पर एक प्रार्थना है और वह यह कि इस घटना का ज़िक्र किसी से न करना”. खड्ग सिंह चौंका, “बाबा मैं तो स्वयं हीं आप से कहना चाहता था क्योंकि इस इलाके में आप का सम्मान है और लोगों को मेरा यह घोडा आप से छीनना अच्छा नहीं लगेगा पर आप स्वयं यह बात क्यों कह रहे हैं ?”. बाबा ने कहा , “अगर लोगों को यह पता लगा तो वे आज से किसी दुखियारे की मदद नहीं करेंगे “.

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बिहार की ताज़ा राजनीतिक घटनाओं के बाद अब देश में राजनीतिक वर्ग से जनता का विश्वास हमेशा –हमेशा के लिए उठ गया. यह विश्वास पहले हीं से काफी कम हो गया था और राजनीति में सिद्धांत और विचारधारा एक मजाक हो चुका था लेकिन फिर भी एक झीना पर्दा था और कई बार लगता था कि कभी यह पर्दा पूरी तरह पारदर्शी नहीं होगा. जिस देश में आजादी के लिए गाँधी ने लाखों लोगों के साथ एक अहिंसक आन्दोलन किया (जिसमें जबरदस्त नैतिक साहस की दरकार होती थी) उस देश में आज कोई लालू यादव २० साल तक चारा घोटाले में कानूनी प्रक्रिया को धता बताते हुए सत्ता में रह सकता है और यही नहीं लगातार अद्भुत हिमाकत दिखाते हुए भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार कर सकता है. कोई तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व्यक्तिगत सुचिता की नयी परिभाषा गढ़ते हुआ इसे सिर्फ अपने तक महदूद करता हुआ दूसरों के भ्रष्टाचार को मौन स्वीकृति दे सकता है. कोई वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी “पत्ता भी नहीं हिलेगा मेरी मर्जी के बगैर” के भाव में अपने मंत्रिमंडल पर ऐसा लगाम कस सकता है कि वह मंत्री महज सांस भर ले सकता है, लेकिन जब पूरे देश में एक नए राष्ट्रवाद के अलमबरदार के रूप में लम्पट तत्व किसी अखलाक को घर में घुस कर गौमांस तलाशते हुए उसे जान से मारते हैं या जब कुछ ऐसे हीं तत्व किसी कारोबारी पहलू खान को सरे –राह दिनदहाड़े पीट-पीट कर मार देते हैं और उसका विडिओ भी उपलब्ध होता है तो वही मोदी कुछ नहीं करते.

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किसी भी प्रजातंत्र में, खासकर के भारत के सन्दर्भ में जहाँ द्वंदात्मक प्रजातंत्र है, विपक्ष की बड़ी भूमिका होती है. लेकिन जिस तरह सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस मृतप्राय सड़क के कोने में पडी है और कभी कभी पूंछ हिलाकर अपने जीने का संकेत दे रही है उससे साफ़ है कि युवाओं को अपना भविष्य भारतीय जनता पार्टी में या राष्ट्रवादी बनकर गौ के नाम पर एक समुदाय विशेष के लोगों को मार कर भारतीय जनता पार्टी में अपनी उपादेयता सिद्ध करने पर लगी है, यही वजह है कि आज भारतीय जनता पार्टी देश के ६८ प्रतिशत जनसंख्या पर अपनी राज्य सरकारों के जरिये शासन कर रही है और कांग्रेस मात्र पांच प्रतिशत पर सिमट गयी है. कोई ताज्जुब नहीं कि राष्ट्रवाद की एक झूठी किन्तु अति बलशाली चेतना में बहते हुए पूरे देश याने ७९.५ प्रतिशत बहुसंख्यक इसी दल को अपना मुखिया बना ले.
और शायद यही वजह है कि अन्य पार्टियों के तमाम नेता और मकबूल कार्यकर्ता अपनी पार्टियों को अलविदा कह कर भजपा की शरण में आ रहे हैं. इसमें दोष भाजपा का नहीं बल्कि दोष कांग्रेस जैसी पूर्व की बड़ी पार्टी के नेतृत्व का है जो लड़ने की क्षमता खो चुकी है और अपनी राजनीतिक मौत के प्रति आश्वस्त है.

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हम विश्लेषक क्यों दोष देते हैं किसी अमित शाह या प्रकारांतर से किसी मोदी को. कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी अगर हर आम-ओ-ख़ास मौके पर सीन से नदारत रहेंगे और कभी –कभी उल्का पिंड की तरह नज़र आयेंगे और वह भी क्षण मात्र में रात के आकाश के समुन्दर में विलीन होने के लिए तो कौन कार्यकर्ता या विधायक या संसद ज्यादा दिन “मोदी-अमित” ब्रांड “फाइट –टु- फिनिश” युद्ध में टिका रह सकता है. इस ब्रांड की राजनीति में “साम-दाम-दंड-भेद” सभी कुछ तो अपनाये जा रहे हैं. चूंकि राजनीति में आज के दौर में ज्यादातर लोग या तो अपराध की दुनिया से आये हैं या अपराधी को संरक्षण दे कर वहां तक पहुंचे हैं या भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं और अगर यह सब भी नहीं तो टैक्स की चोरी तो आम बात है. मुलायम के पास जो खेती है उसमें औसतन एक हेक्टेयर में कुछ करोड की पैदावार होती है. फिर मुलायम –मायावती आदि पर तो आय से अधिक संपत्ति के मामले फिर से चलाये जा सकते हैं. लिहाज़ा विपक्ष के किसी भी नेता की आज हिम्मत नहीं है कि तन कर खडा हो फिर अगर समाजवादी पार्टी का भुक्कल नवाब सरीखा व्यक्ति पाला बदलता है और मोदी-अमित शाह के गुणगान करता हुआ भाजपा में जाता है तो इसमें थानेदार की क्षमता या आयकर अधिकारी की पारखी नज़रों का हीं तो कमाल है.

आरोप मीडिया पर लग रहे हैं. मीडिया की भूमिका हमेशा द्वितीयक रही है प्राथमिक नहीं. जब ८० प्रतिशत एक समुदाय विशेष की सोच एक खास दिशा में जा रही हो, जब विपक्ष का मुद्दों को लेकर दूर-दूर तक नमो-निशाँ न मिले तो मीडिया उस भावनात्मक आंधी के खिलाफ ज्यादा दूर नहीं जा सकती. सन १९७५ में जब इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लगाया तो जनमत, विपक्ष और नैतिकता का पूर्ण संबल इसकी ओर था. फिर भी आपने देखा कि मीडिया का कुछ वर्ग हीं नहीं सर्वोच्च न्यायलय का एक धडा भी इंदिरा गाँधी के साथ हो चला.
आज जरूरत है कि एक सबल विपक्ष और जन-स्वीकार्यता वाला नेता सामने आये. वरना मोदी-अमित ब्रांड “फाइट- तु-फिनिश” वार में कोई भी नहीं बचेगा. मीडिया भी नहीं, विपक्ष भी नहीं और ना हीं तर्क-आधारित जनमत.

(वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह के ब्लॉग से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

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