“पीड़िता वर्णिका कुंडू को बदनाम कर डराना ‘विकास बराला’ गैंग की एक सोची समझी चाल/हथकंडा है”

पीड़िता वर्णिका को बदनाम कर डराना एक सोची समझी चाल/हथकंडा है ताकि वर्णिका की आवाज़ बंद हो जाए…..यह एक महिला विरोधी घटिया मानसिकता का परिचायक है।

Advertisement

New Delhi, Aug 08 : महिला का चरित्र हनन इस देश के नेताओं/लोगों के लिए नयी बात नहीं।
वर्णिका का ड्रिंक करना व दोस्तों के साथ फ़ोटो पोस्ट कर यह दिखाने का प्रयास करना कि वह ख़राब चरित्र की थी, इसी लिए ‘विकास बराला’ ने उसका पीछा किया…..वर्णिका रात में क्यों और कहाँ जा रही थी ?…यह सोच एक दूषित मानसिकता है।

Advertisement

एक फ़ोटो को वाइरल किया गया है जो वर्णिका के फ़ेसबुक प्रोफ़ायल से ही लिया गया था जिसमें ‘ विकास बराला’ नहीं है, कोई और है….. बाक़ी आजकल फ़ोटोशाप का कमाल कुछ भी कर सकता है।
PLEASE LET US STOP SHAMING THE VICTIM AND ASK FOR PUNISHMENTION TO CULPRITS !!
‘वर्णिका कुंडू’ की तरह कल हमारी/आपकी बेटी/बहन के साथ भी यह सब हो सकता है। याद रहे, इस देश में हर १५ मिनट में एक महिला के साथ छेड़खानी ही नहीं, बल्कि बलात्कार होता है….पुरुष प्रताड़ना से हज़ारों बेटियाँ प्रति वर्ष आत्महत्याएँ करती हैं।
हम पुरुषों को यह सोचना चाहिए कि कहीं हमारे समाज में सदियों की ‘पितृसत्ता’ ने उन्हें अमानवीय/असंबेदनशील तो नहीं बना दिया है ?
विकास बराला के पिता सुभाष बराला को हरियाणा भाजपा अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए, ताकि पुलिस जाँच प्रभावित न हो। बच्चों को संस्कार घर से ही मिलते हैं अतः सार्वजनिक जीवन में नैतिकता का भी यही तक़ाज़ा है (जैसे बेल होती है वैसा ही फल भी आता है )।

Advertisement

तर्क के लिए यदि एक क्षण के यह भी मान लिया जाए कि वर्णिका ‘पियक्कड़’ थी तथा ‘विकास बराला’ से उसकी पूर्व से पहचान थी, तब भी क्या इससे आमिर बाप के इस बिगड़ैल बेटे व उसके मित्र को वर्णिका द्वारा शराब के नशे में पीछा करने, गाड़ी रोकने व सम्भावित अपहरण व बलात्कार/हत्या करने का हक़ मिल गया था ? एक जघन्य क्रिमिनल ऐक्ट हुआ है, अपराधी को दृष्टांत के रूप में कठोर दंड मिलना ही चाहिए।
दरअसल, आज ‘स्त्री-विरोधी’ सोच के लोगों का मानना है कि अच्छे घरों की लड़कियां शराब नहीं पीती, अपनी मर्ज़ी से जो चाहे कपड़े नहीं पहनती है, लड़कों के साथ लेटनाइट पार्टी नहीं करतीं और जो ऐसा करती हैं, वो सभ्य नहीं है, मगर लड़के ये सब करने के बाद भी सभ्य ही कहलाते है, क्यों? क्योंकि उन्हें आज से नहीं सदियों से लाइसेंस मिला हुआ है सब कुछ करने का।

पुरुष वर्ग को समझना होगा और जो न समझे उसे समझाना भी होगा कि….स्त्री का ‘ना का मतलब ना’ ही होता है, जिसे किसी तरह के तर्क, स्‍पष्टीकरण या व्याख्या की ज़रूरत नहीं होती, न मतलब स़िर्फ न है। यहाँ तक कि ‘पति को भी वह ना कह सकती हैं, यह उसका हक़ है’…..नहीं तो पति भी बलात्कार का दोषी होगा।
आज भी शिक्षा के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश महिलाओँ के लिए… खाना बनाने, पति को ख़ुश करने, बच्चे पैदा करने और बच्चों की देखभाल बस इतनी सी ही होती है उनकी ज़िंदगी। इसके आगे उनकी अपनी पहचान, इच्छा-अनिच्छा सब आज भी बेकार है….. हरियाणा की उक्त घटना में सरकार द्वारा ‘विकास बराला’ व पार्टी द्वारा उसके पिता ‘सुभाष बराला’ को बचाना, ‘बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ’ जैसे उत्कृष्ट नारे को चिढ़ाने जैसा लगता है !!!
क्या कहते हैं, आप ???
(रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)