होश में आओ शी जिनपिंग, ‘भोकाली’ हो गया है भारत, 56 इंच की छाती है, कमजोर प्रधानमंत्री नहीं

भारत चीन से युद्ध नहीं चाहता है। ये बात शी जिनपिंग को समझनी चाहिए। लेकिन, इसका ये कतई मतलब नहीं है कि हिंदुस्‍तान कमजाेर है। हरकत की तो करारा जवाब मिलेगा।

New Delhi Aug 10 : हिंदुस्‍तान किसी से युद्ध नहीं चाहता है। खासतौर पर अपने पड़ोसियों से। लेकिन, इस मामले में भारत में किस्‍मत खराब है। एक ओर पाकिस्‍तान बैठा है तो दूसरी ओर चीन। दोनों से ही जंग हो चुकी है। दोनों ही बहुत खुराफाती भी हैं। भारत के ये दोनों दुश्‍मन आपस में अच्‍छे दोस्‍त भी हैं। पाकिस्‍तान भारत में आतंकियों को भेजता है और यही चीन उन आतंकियों के लिए हथियार मुहैया कराता है। लेकिन, चीन को लगता है कि हिंदुस्‍तान को कुछ पता ही नहीं है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग को समझना चाहिए कि हम भी घने सयाने हैं। भारत भी भोकाली हो गया है। हो सकता है कि चीन के पास हमसे ज्‍यादा आर्मी हो। हमसे ज्‍यादा आधुनिक हथियार हों। लेकिन, शी जिनपिंग साहब भारत ने भी चूडि़यां नहीं पहनी हुई हैं। ये बात याद रखनी होगी।

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चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग को ये समझना होगा कि इस वक्‍त देश में मनमोहन सिंह की सरकार नहीं है। बल्कि 56 इंच की छाती रखने वाले नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। जिन्‍होंने डोकलाम में आपको पानी पिला रखा है। पिछले करीब दो महीने डोकलाम पर घमासान चल रहा है। शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरा होगा जब चीन की मीडिया की कलम ने भारत के खिलाफ फायर ना किया होगा। चीन की मीडिया का बस चले तो वो अपने अखबार में दिल्‍ली पर परमाणु बम भी फोड़ दे। कागज उनका है स्‍याही उनकी है। वो जो चाहें फोड़े लेकिन, गलतफहमी का ठीकरा मत फोडि़ए। जाहिर है चीन की इतनी बड़ी बड़ी बातों के पीछे शी जिनपिंग की शह है। तभी चीनी मीडिया हमें 1962 की बार-बार याद दिलाता है। कभी कहता है कि युद्ध की उलटी गिनती शुरु हो गई है।

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वैसे तो चीन की इन धमकियों का जवाब रक्षा मंत्री अरुण जेटली भी दे चुके हैं। वो कह चुके हैं कि 1962 से हमने सबक लिया। जिसकी तैयारियों का परिणाम पूरी दुनिया ने 1965 और 1971 की जंग में देखा। ये बात भी शी जिनपिंग को याद रखनी होगी। इन पांच दशकों में भारत और मजबूत हुआ है। बल्कि बहुत मजबूत हुआ है। बात सिर्फ युद्ध की नहीं हैै। आर्थिक युद्ध की भी है। चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग को मालूम है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस वक्‍त देश और दुनिया में क्‍या कद है। इसके साथ ही चीन के लिए भारत कितना बड़ा बाजार है। युद्ध हुआ तो आर्थिक जंग भी होगी। भारत अगर अपनी पर आ जाए तो अर्थ व्‍यवस्‍था के इस मोर्चे चीन चवन्‍नी को भी मोहताज हो जाएगा। ऐसा नहीं है सिर्फ नुकसान चीन का ही होगा। भारत को नुकसान उठाना होगा। लेकिन, बडी चोट चीन को पहुंचेगी।

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एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो साल में FDI में चीन का निवेश बढ़ा है। पिछले साल एफडीआई में चीनी निवेश 1 बिलियन डॉलर का था। जो अब दो बिलियन डॉलर के आंकड़े को छू रहा है। साल 2011 में चीन का भारत में 102 मिलियन डॉलर का इंवेस्‍टमेंट था। चीन की रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वक्‍त में चीन का भारत में कुल 4.07 बिलियन डॉलर का इंवेस्‍टमेंट है। जबकि भारत का चीन में 650 मिलियन डॉलर का। चीन की सैकड़ों कंपनियां इस वक्‍त भारत के बाजार में अपने पांव जमाए हुए है। अगर इस आर्थिक सेक्‍टर में चीन के पांव उखाड़ दिए जाएं तो जरा सोचिए कि दाने-दाने को मोहताज कौन होगा, भारत या चीन। इसलिए चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग को भारत के भोकाल को समझना होगा। ये मानना होगा कि यहां इस वक्‍त बहुत मजबूत प्रधानमंत्री है। जो झुकना नहीं झुकाना जानता है।