मौत के फरिश्तों से अपने ‘कोहिनूर’ को एक बार फिर बचा लाईं सायरा बानो !

आज दिलीप कुमार 94 साल के हैं और सायरा 72 की। उम्र बढ़ने के साथ साथ सायरा बानो की ये मुहब्बत.. ये दीवानगी बढ़ती गई।

New Delhi, Aug 10 : मौत के फरिश्तों से अपने कोहिनूर को एक बार फिर बचा लाईं सायरा बानो। लीलावती अस्पताल के डॉक्टर ने कहा कि सायरा जी आज की सती सावित्री हैं। सायरा बोलीं-‘जिसका पति कोहिनूर हो, उसकी पत्नी सती सावित्री क्यों नहीं होगी.. मैं तो उनकी दीवानी हूं।’ ये वही दीवानगी है, जिसके चलते 22 साल की उम्र में सायरा बानो ने अपने से दोगुने उम्र के दिलीप कुमार से शादी की थी। शादी के वक्त दिलीप कुमार 44 साल के थे। आज दिलीप कुमार 94 साल के हैं और सायरा 72 की। उम्र बढ़ने के साथ साथ सायरा की ये मुहब्बत.. ये दीवानगी बढ़ती गई। मुहब्बत पाकीजा होती गई यहां तक कि दिलीप कुमार से मुहब्बत उनकी इबादत बन गई।

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दिलीप कुमार को आपने कभी सिल्वरस्क्रीन पर बिना शर्ट के नहीं देखा होगा, अपवाद के रूप में एक छोटा सा सीन गंगा जमुना में है, जिसमें उनकी पीठ दिखती है। दरअसल उनके बदन पर बहुत बाल हैं, दिलीप कुमार कभी नहीं चाहते थे कि ये बात कोई जान पाए। यहां तक कि फिल्मों में वो हमेशा कुर्ते या फिर फुल शर्ट में नजर आए। जवानी के दिनों में जब भी घर से बाहर निकले, काले रंग के सूट और टाई में, बाल बिल्कुल काले, करीने से कढ़े हुए। फिल्मों में नकली दाढ़ी लगाई, लेकिन क्या मजाल कि कभी उनके चेहरे पर मूंछ-दाढ़ी के एक बाल ने भी बाहर निकलने की जुर्रत की हो। सायरा बानो ने दिलीप कुमार के इस शौक को अब तक जिंदा रखा है। घर पर भी दिलीप साहब टीप-टॉप रहते हैं,आज भी उनकी फुल कमीज की बटन कलाई के पास बंद रहती है। शेव रोज बनती है, बाल में सफेदी की झलक से पहले खिजाब या फिर मेहंदी लग जाती है। हमेशा पीछे की तरफ संवरे हुए बाल। उनकी कोई भी तस्वीर देख लीजिए, कोई भी वीडियो, घर का हो या अस्पताल का, दिलीप साहब सजे संवरे ही दिखते हैं।

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दो-तीन साल पहले दिलीप कुमार अमिताभ बच्चन के घर पार्टी में गए थे, तब उनकी पोती आराध्या का जन्मदिन था शायद। दिलीप साहब सायरा के साथ पहुंचे थे, काले सूट और टाई में। ठीक से चल नहीं सकते थे, ठीक से बोल नहीं सकते थे, लेकिन उनके लुक में कोई फर्क सायरा बानो ने कभी आने नहीं दिया। घर हो या फिर बाहर, हर तस्वीर में, हर फ्रेम में सायरा दिलीप पर न्योछावर दिखीं।
दिलीप कुमार खाने-पीने के जबरदस्त शौकीन रहे हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि जिन दिनों बाल ठाकरे मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगलते थे, उन दिनों वो दिलीप कुमार के साथ मातोश्री की छत पर बियर और वाइन का मजा लिया करते थे। सायरा बानो दिलीप साहब के जायके का आज भी ख्याल रखती हैं। डॉक्टरों ने जिस हद तक इजाजत दे रखी है, वहां तक वो उनकी पसंदीदा डिश बनाती हैं। साथ खाती हैं, उन्हें खिलाते हुए खाती हैं। साथ ही सूप या कॉफी पीती हैं।

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दिलीप कुमार की याददाश्त करीब करीब धोखा दे चुकी है, बाहर से भी लोगों का ज्यादा आना जाना नहीं, लेकिन सायरा के लिए तो पूरी दुनिया हैं दिलीप कुमार। वो सुनते हैं और सायरा उनसे घंटों बातें करती रहती हैं। कितनी बार दिलीप कुमार की तबीयत बिगड़ी, कितनी बार सायरा उन्हें लेकर अस्पताल में रहीं, लेकिन हर बार उन्होंने उनके प्राण बचा लिए।
आज अस्पताल से बाहर निकलने के वक्त हंसते और चहकते हुए सायरा बानो को देखा तो मुझे मेरी मां बहुत याद आई। गजब की केमेस्ट्री थी मां-बाबूजी में। यूं तो मां-बाबूजी में प्यार भरी तकरार भी खूब होती थी। मां किसी बात पर नाराज होती तो बाबूजी व्यंग्य में कुछ कहते, फिर तूतू-मैंमैं भी होती, लेकिन उसमें दोनों की मुहब्बत छलकती रहती थी। जब ताश पर दहला पकड़ होता तो मां बाबूजी की विरोधी टीम में होती, बाबूजी को हराया करती थी, लेकिन अगर बाबूजी को मामूली जुकाम भी होता था तो मां बेचैन हो जाती थी। फोन पर मां की आवाज बताती थी कि बाबूजी की तबीयत कैसी है। जब वे ठीक रहते थे, तो मां की आवाज खनकती रहती थी, जब बाबूजी की तबीयत थोड़ी खराब होती थी तो मां की आवाज भर्राई होती थी। बाबूजी-अम्मा की उम्र में 14 साल का फासला था, उसे डर था कि कहीं बाबूजी को उसके रहते कुछ न हो जाए। ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि वो बाबूजी के सामने चली जाए। जब बाबूजी स्वस्थ रहते तो मां अक्सर हंसते हुए कहती-ऐसा अंगूठा दिखाकर चली जाऊंगी कि देखते रह जाएंगे। करीब 2 साल पहले मां वाकई अंगूठा दिखाकर चली गई। 2 मिनट के भीतर बैठे-बैठे दुनिया छोड़ गई। बाबूजी अपना दर्द कहते नहीं, लेकिन हम समझ सकते हैं कि 90 साल की इस उम्र में मां का साथ न होने की कसक उन्हें भीतर से कितना मथ रही होगी। मां की दुनिया थे बाबूजी। इसी तरह सायरा बानो की भी दुनिया दिलीप कुमार ही हैं। जो डर मेरी मां को सता रहा था, वही डर सायरा को भी सता रहा होगा कि कहीं उनकी आंखों के सामने दिलीप साहब को कुछ हो ना जाए। वो जिंदा हैं तो दिलीप कुमार के लिए। उनकी कोई संतान भी नहीं, उन्हें ये डर भी कभी चैन से मरने नहीं देगा कि उनके न रहने पर उनके ‘कोहिनूर*’ को भला कौन संभालेगा।
(*कोहिनूर दिलीप कुमार की एक सुपरहिट फिल्म का नाम है)

(वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्रा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

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