BSP में बगावत से जूझ रही हैं मायावती, कैसे साकार होगा प्रधानमंत्री बनने का सपना ?

इन दिनों विपक्ष के नेताओं पर मानो शनि की साढ़े साती चल रही है। जिसमें मायावती भी शामिल हैं। बहन जी पार्टी में बगावत से बहुत दुखी हैं। लेकिन, सपने बहुत ऊंचे हैं।

New Delhi Aug 11 : देश में ऐसे भतेरे नेता हैं जो प्रधानमंत्री बनने का सपना देखते हैं। कुछ की जिज्ञासाएं जगजाहिर हो जाती हैं तो कुछ की दिल में ही दबी रहती हैं। लेकिन, हर किसी का ये सपना साकार नहीं हो सकता है। विपक्ष में इस वक्‍त ऐसे नेताओं की कोई कमी नहीं है जिन्‍होंने प्रधानमंत्री बनने का सपना अपने दिल में पाल रखा है। इस फेहरिस्‍त में बीएसपी सुप्रीमो मायावती का नाम भी शामिल है। लेकिन, बहनजी इन दिनों अपनी ही पार्टी के भीतर बगावत से जूझ रही हैं। पार्टी के नेताओं के बगावती तेवरों से परेशान मायावती पार्टी में समीक्षा दर समीक्षा कर रही हैं। लेकिन, नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही देखने को मिल रहा है। इन सबके बीच बहन जी ने पार्टी का नया नारा भी दे दिया है। ‘बीएसपी का सपना, सरकार हो अपनी’।

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जिस तरह से इस नारे में कोई तुकबंदी नहीं है। वैसे ही बहुजन समाज पार्टी के नेताओं और अध्‍यक्ष में भी कोई तुकबंदी नहीं दिख रही है। बीएसपी के नेता और विधान परिषद सदस्य जयवीर सिंह और पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज जैसे दिग्गजों मायावती के सामने अपने बगावती तेवर दिखा चुके हैं। नसीमुद्दीन सिद्दकी पहले ही बहनजी का साथ छोड़कर उनकी पोल खोल चुके हैं। ऐसे में अब माया के पास सिर्फ डैमेज कंट्रोल के कुछ भी नहीं बचा है। माया ने अपने नेताओं को एक बार फिर तन, मन और धन से काम करने की नसीहत दी। हालांकि उन पर धन उगाही के आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं। चाहे स्‍वामी प्रसाद मौर्य हो या फिर नसीमुद्दीन सिद्दकी, ये नेता बहन जी पर पैसों का खेल करने के आरोप लगा चुके हैं।

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ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर मायावती का सपना साकार कैसे होगा। हालांकि वो दलित समाज में अपनी सियासी शहादत दिखाने के लिए राज्‍यसभा की सदस्‍यता छोड़ चुकी हैं। लेकिन, समझदार लोगों को पता है कि राज्‍यसभा की सदस्‍यता खत्‍म होने के सिर्फ नौ महीना पहले इस्‍तीफा देने का क्‍या मतलब है। वो भी तब जब उन्‍हें पता है कि वो अपने अपने दम पर साल 2018 में राज्‍यसभा भी नहीं पहुंच सकतीं। मायावती अपने नेताओं को ज्ञान दे रही हैं कि वो बीजेपी से बाद में लड़े पहले पार्टी के भीतर मौजूद भीतरघाती तत्‍वाें को निपटाएं। अगर वाकई बहन जी ने सबको निपटाया दिया तो यकीनन बीएसपी में कोई भी नहीं बचेगा। क्‍योंकि विधानसभा चुनाव में हार की कशिश हर नेता के भीतर है।  

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बहरहाल, बहन जी ने पार्टी के भीतर बिना तुकबंदी वाले नारे की अलख जगानी शुरु कर दी है। लेकिन, जो सबसे जरुरी बात है उस पर बीएसपी का अभी भी पूरा फोकस नहीं है। सोशल इंजीनियरिंग का झंडा बुलंद करने वाली बीएसपी सोशल मीडिया से अभी भी बहुत दूर है। हालांकि काम शुरु हो गया है। लेकिन, सोशल मीडिया से दूरी का खामियाजा ये पार्टी यूपी विधानसभा चुनाव में भुगत चुकी है। मायावती के सामने राजनैतिक तौर पर कई मोर्चे हैं। हर मोर्चे पर उन्‍हें जूझना है, लडना है। फिलहाल सबसे बड़ा मोर्चा पार्टी के भीतर बगावत, भीतरघात का है। जिससे यूपी में ना सिर्फ बीएसपी बल्कि समाजवादी पार्टी के बड़े नेता भी जूझ रहे हैं। देखना दिलचस्‍प होगा कि बहन जी कैसे इन सब से पार पाती हैं ?