हामिद अंसारी साहब, आप भारतीय पहले हैं मुसलमान बाद में !

जब तक देश के मुसलमानों को देश, मज़हब के बाद आता रहेगा, तब तक भारत में ‘मुसलमानों को घबराहट’ होती रहेगी।

New Delhi, Aug 11 : ‘राष्ट्रीय ध्वज’ को तकनीकी आधार पर नमन करने से बचने वाले व ‘वन्दे मातरम’ न बोलने वाले हामिद अंसारी को उपराष्ट्रपति का पद ‘मुस्लिम’ होने के ही नाते मिला वर्ना देश में उनसे योग्य लोगों की कोई कमी नहीं थी। १० वर्ष तक उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए हामिद अंसारी को कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ, रिटायरमेंट के समय ही ‘घबराहट’ क्यों ?
इस देश का मुसलमान अपने आप को पहले ‘मुस्लिम’ समझता है और फिर ‘भारतीय’, उनके लिए देश बाद में आता है।

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जब तक देश के मुसलमानों को देश, मज़हब के बाद आता रहेगा, तब तक भारत में ‘मुसलमानों को घबराहट’ होती रहेगी और यही कारण हैं कि ‘क़ौम को बचाने’ के नाम पर ‘मुसलमान’ अपने देश के ख़िलाफ़ आतंकवादी बनते रहेंगे और हिंदुओं को डराते और मारते रहेेंगे। हर आतंकवादी मुस्लिम ही क्यों निकलता है क्योंकि वे मज़हबी कठमुल्लों के बहकाने में आकर ‘मज़हब’ को बचाने के नाम पर अपने ‘देश’ पर हमला करते रहते हैं (७२ हूरों का भी लालच है), हर मुसलमान को पहले ‘भारतीय’ बनना होगा अर्थात हर हालत में ‘देश प्रथम’ आ जाए तो ‘घबराहट’ अपने आप ख़त्म हो जाएगी और हिंदूओं से डर भी नहीं लगेगा। मुसलमान जब तक आतंकवादी बनकर जब तक हिंदुओं को मारते रहेंगे तब तक उन्हें हिंदुओं से डर लगना स्वाभाविक ही है।

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हामिद अंसारी जैसे लोग भी अपने को पहले ‘मुसलमान’ समझते है और देश के उपराष्ट्रपति या भारतीय बाद में। पाकिस्तान की सोच भी तो यही है, तो अंसारी जैसे पढ़े लिखे मुसलमान की सोच में भी फ़र्क़ कहां हुआ ? राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पूरे देश का होता है। वो किसी प्रांत, समाज, समुदाय, धर्म, जाति के लिये नहीं सोच सकता। 125 करोड़ भारतीयों का कल्याण ही उसकी सोच रहनी चाहिये। लेकिन अंसारी शायद कभी एक ‘मुसलमान’ होने से ऊपर उठ ही नहीं पाये।
केरल, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में तो राजनीतिक हत्याओं में साजिशपूर्ण तरीके से सिर्फ हिंदुओं का ही मारा जा रहा है। केरल में तो ऐसी घटनाएं अब चरम पर पहुंच चुकी हैं। लेकिन हामिद अंसारी को इन तमाम घटनाओं में असहिष्णुता क्यों नहीं दिखी ?

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मोदी सरकार को तीन वर्ष हो गए तो इस दौरान यदि (मुसलमान) उपराष्ट्रपति अंसारी ने यदि ऐसा ही महसूस किया था तो इस्तीफ़ा देकर राजनीति में क्यों नहीं उतरे। पूरे १० वर्ष उपराष्ट्रपति पद की मौज ली और जाते-जाते बन बैठे असली ‘मुस्लिमपरस्त’। इस ओछी हरकत से देश के कट्टरपंथी मुसलमान तो शायद ख़ुश हो, लेकिन अन्य सभी देश प्रेमी लोगों की नज़र में अपने आप को अंतिम क्षणों में गिरा बैठे, (मुसलमान उपराष्ट्रपति) अंसारी।
‘क्या हम ढाँढस बंधाए उनको, रोने का मौक़ा आए बिना जो वेवजह आँसू बहाते हैं ‘।
भारत माता की जय व वन्दे मातरम बोलने में कैसी कंज़ूसी और कैसा बहाना ? देश बिना स्वयं का अस्तित्व कहाँ ?

(रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

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