पहली परीक्षा में तो पूरी तरह से नाकाम रही योगी सरकार !

शोक संतप्त मन पर तो तब मलहम लगती जब इस दुखदायी घटना के तुरंत बाद योगी सरकार हरकत में आती और इस कड़ी में सबसे पहले स्वास्थ्य मंत्री इस्तीफा देते।

New Delhi, Aug 14 : दशकों से जाति- मजहब आधारित वोट बैंक की प्रदेश में तूती बोली और इस दौरान सरकारी लूट खुल कर खेलती रही थी. नैतिकता शब्द ही कहीं गुम हो चुका था. जाहिर है कि इसका असर सार्वजनिक जन सेवा पर पड़ना ही था. शिक्षा और स्वास्थ्य इससे सर्वाधिक प्रभावित रहे. उसी का एक दर्दनाक उदाहरण गोरखपुर मेडिकल कालेज में देखने को मिला जहां आक्सीजन की आपूर्ति ठप होने की वजह से लगभग सत्तर से ज्यादा मौते हुईं और उनमें अधिकांश दिमागी बुखार से ग्रस्त मासूम बच्चे थे. यह जितना वेदनादायी था उससे कहीं अधिक पीड़ा वर्तमान सरकार के अपनाए गए नजरिए से हुई जहां तरह तरह की सफाई के साथ ही जांच बैठाने की घिसी पिटी घोषणा ने आमजन को यह सोचने पर विवश कर दिया कि उसका व्यवस्था परिवर्तन का दावा कितना थोथा निकला।

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अरे, शोक संतप्त मन पर तो तब मलहम लगती जब इस दुखदायी घटना के तुरंत बाद योगी सरकार हरकत में आती और इस कड़ी में सबसे पहले स्वास्थ्य मंत्री इस्तीफा देते. उसके बाद घटना से जुड़े तमाम लोगों को तत्काल निलंबित कर दिया गया होता. लोगों में यह संदेश जाता कि प्रचंड बहुमत वाली जवाबदेह योगी सरकार चेत गयी है और अब यूपी के पूर्वांचल में मच्छरजनित रोगों के उन्मूलन हेतु जंग छेड़ी जाएगी. लेकिन यहां तो मंत्री कहता है, “अगस्त में तो ज्यादा बच्चे मरते रहते हैं “. क्या इसे ही संवेदनशीलता कहा जाएगा ? यह कैसी विडम्बना है कि सादगी, ईमानदारी और जवाबदेही का दूसरा नाम रहे कालजयी पूर्व प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री के दौहित्र सिद्धार्थनाथ सिंह उन तीन मंत्रियों में एक बताए जाते हैं जिन पर उंगली उठती रही है कई महीनों से. उन्हीं में एक और प्रभावशाली मंत्री हैं जिनके लिए कहा जाता है कि बिना उनको भेंट चढ़ाए बिल पास नहीं होता.

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प्रदेश के मुख्यमंत्री पूर्वांचल से आते हैं और यह विदीर्ण करने वाला हादसा तो उनके गृह नगर में ही हुआ है. डेंगू और इनसेफलाइटिस यानी मस्तिष्क ज्वर से किस कदर अभिशप्त है यह क्षेत्र कि हर साल हजारों बच्चे जान गंवा देते हैं. प्रदेश की सरकारें न सिर्फ उनके समुचित इलाज में नाकाम रहीं बल्कि ऐसे जानलेवा रोग के उन्मूलन की योजना का खाका तक किसी सरकार ने अभी तैयार नहीं किया. हां स्वास्थ्य मंत्रालय में आवंटित राशि की जम कर लूट जरूर होती रही. कितने सीएमओ मार दिए गए. स्वास्थ्य विभाग में हजारों करोड़ राजनेता, बाबू और चिकित्सक मिल कर डकारते रहे. उधर जनता सरकारी अस्पतालों का रास्ता भूलती रही.
प्रधान मंत्री स्वच्छता अभियान में सिर्फ झाड़ू बुहारना या शौचालय निर्माण ही नहीं बल्कि प्रदेश की हर ग्राम पंचायत तक सीवर और ड्रेनेज पहुंचाना भी शामिल किया जाए. आज हालत यह है कि गांव छोड़िए जिला मुख्यालयों तक में भी मल जल निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है. बजबजाती खुली नालियों पर मडराते मच्छर इतने रक्त पिपासु हो चुके है कि आप उनके शैतानी बदसूरत चहरे तक देख सकते हैं. मेरा ननिहाल करनैल गंज ( गोडा ) है. वहीं से मैनै हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की थी. इसलिए स्वयं भुक्तभोगी रहा हूँ. ये मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और दिमागी बुखार तब तक अस्तित्वमान रहेंगे जब तक कि हम जल निकासी के समुचित इंतजाम को सर्वोच्च वरीयता नहीं देते.

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उम्मीद है कि सरकार इस घटना के बाद चेतेगी. पूर्वांचल में एक ऐसे रिसर्च सेंटर के साथ संलग्न सौ बिस्तरों वाले अस्पताल की सख्त जरूरत है जहां इस तरह के रोगों का जड़ से उन्मूलन हेतु शोध कार्य हो. कहने का मतलब यह कि यदि प्रर्देश को मानसूनी रोगों से मुक्त करना है तो सफाई और शोध दोनो पर तत्काल युद्ध स्तर पर लगना होगा.
आम तौर पर देखा गया है कि ऐसे वाकए कुछ दिनों तक ही चर्चा में रहते हैं. जांच की लीपापोती के बाद हम सब भूल जाते रहे हैं और सब कुछ उसी पुराने ढर्रे पर लौट आता है. देखना है कि यह मिथ, यह होडो, यह प्रेत बाधा वर्तमान प्रदेश सरकार तोड़ती है या नहीं ? लेकिन यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि अपनी पहली परीक्षा में तो योगी सरकार नाकाम रही है.

(वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)