कफील खान को हीरो बनाने की जल्दी क्यों थी, ऑक्सीजन चुराने वाला मसीहा कैसे ?
गोरखपुर हादसे का दोषी जितना राजीव मिश्रा है उतना ही तथाकथित मसीहा कफील खान भी है। उसके बाद भी उसे हीरो की तरह पेश किया गया,जबकि वो विलेन है।
New Delhi, Aug 15: गोरखपुर हादसे नेे यकीनन आंख में आंसू ला दिए हैं। दिल जार जार रो रहा है, इस बात का यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि इतनी बड़ी तादाद में मासूम बच्चे मौत की दहलीज पार करके अपने मां-बाप को जिंदगी भर का गम दे गए। ये हादसा हमारे सरकारी तंत्र की विफलता की निशानी है। इस हादसे की परते जैसे जैसे खुल रही हैं वैसे वैसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। हादसे के फौरन बाद एक नाम सबकी जुबान पर चढ़ गया, या यूं कहें कि इस नाम को सबकी जुबान पर चढ़ाया गया तो गलत नहीं होगा। डॉक्टर कफील को मसीहा की तरप पेश किया गया। कफील खान के बारे में खबरें छपी कि उसने ऑक्सीजन के सिलेंडर ला कर बच्चों की जान बचाई। ये सारी खबरें बिना तथ्यों के थी। गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल के लोग भी इस से हैरान थे कि कफील को मसीहा कैसे बना दिया गया।
अब जो बातें निकल कर सामने आ रही हैं उस से साफ हो रहा है कि कफील खान कोई मसीहा नहीं था वो एक खुदगर्ज और लालची इंसान था। मुसलमान होने का फायदा उठाने और अपने पाप धोने के लिए उसे ये हादसा एकदम माकूल लगा। कफील बीआरडी मेडिकल कॉलेज के इन्सेफेलाइटिस डिपार्टमेंट के चीफ नोडल ऑफिसर हैं। इसके बावजूद वो प्राइवेट प्रैक्टिस के लिए ज्यादा ध्यान लगाता था। कफील पर अस्पताल से ऑक्सीजन सिलेंडर चुरा कर अपने क्लीनिक में इस्तेमाल करता था। ऑक्सीजन की कमी से ही बच्चों की मौत की बात की जा रही है। ऐसे में बच्चों की सांसे चुराने वाला कफील मसीहा कैसे हो सकता है। खुद को बचाने के लिए कफील ने अपने पत्रकार दोस्तों से मदद ली और खुद को मीडिया में मसीहा की तरह पेश किया।
हैरानी की बात येे है कि कफील बीआरडी मेडिकल कॉलेज की खरीद कमेटी का मेंबर भी हैं। ऑक्सीजन की सप््लाई के बारे में एक एक बात कफील को मालूम थी। हादसे के दो दिन पहले जब सीएम योगी ने अस्पताल का दौरा किया था तो कफील उनके अगल बगल घूम रहा था लेकिन ऑक्सीजन की कमी से संबंधित जानकारी योगी से छुपा ली। न ही ये बताया कि सप्लायर का कितना पैसा बकाया है। ऐसा काम करने वाला कफील मसीहा कैसे हो सकता है। बीआरडी के कई कर्मचारियों ने बताया कि कफील अस्पताल में होने वाली हर खरीद का कमीशन लेता था। कमीशन का एक हिस्सा प्रिंसिपल राजीव मिश्रा को भी जाता था। कर्मचारियों के मुताबिक इस हादसे के असली गुनहगार राजीव मिश्रा के साथ साथ उनकी पूर्णिमा शुक्ला और कफील अहमद भी है।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब कफील पर इतने सारे दाग लगे हैं तो वो मसीहा कैसे हो सकता है। उसे मसीहा बना कर पेश करने के पीछे क्या साजिश है। हादसे और अस्पताल में कफील की भूमिका की जांच होनी चाहिए। बीआरडी से चोरी किए सिलेंडर वापस भिजवा कर कफील हीरो बन गया। लानत है ऐसे डॉक्टरों पर और उन लोगों पर जिन्होंने कफील को हीरो बनाकर पूरे मामले को डायवर्ट करने की कोशिश की। सवाल ये भी है कि जब राजीव मिश्रा को हटाने पर कोई विवाद नहीं हुआ, वहीं कफील को हटाने पर उसके मुसलमान होने से जोड़कर देखा जाने लगा। ऐसा करके मुसलमानों की छवि के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। जो भी ऐसा कर रहे हैं वो गलत कर रहे हैं।