कश्मीर में सुरक्षाबलों के लिए पनौती बन गए हैं ‘पत्थरबाज’
कश्मीर में अलगाववादियों के दिहाड़ी पत्थरबाज हमेशा से सुरक्षाबलों के सामने पनौती की तरह ही पेश आए हैं। जिनका मकसद आतंकियों को बचाना होता है।
New Delhi Aug 16 : कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं आम बात हैं। आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो वारदात हजारों में पहुंच जाएंगी। बेशक पत्थरबाजी की ये घटनाएं आम लगें। लेकिन, पत्थरबाज बेहद ही संगठित तरीके से वारदातों को अंजाम देते हैं। जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ आतंकियों को बचाने का होता है। कश्मीर के पत्थरबाज सुरक्षाबलों के लिए किसी पनौती से कम नहीं। सुरक्षाबलों के सामने सबसे बड़ी मुश्किल इनकी पहचान को लेकर होती है। हाथ में पत्थर हो और मुंह कपड़े से ढका हो तो ये आतंकियों के ग्राउंड वर्कर होते हैं। पत्थर फेंका और मुंह से कपड़ा हटते ही ये आम नागरिक का चोला ओढ़ लेते हैं। यानी कश्मीर में चित भी इनकी होती है ओर पट भी। फिर भी सुरक्षाबलों के जवान इसने मुकाबला कर रहे हैं।
कश्मीर के पत्थरबाज की पनौती को दूर करने के लिए सुरक्षाबल हर रोज नए प्रयोग करते हैं। कश्मीर में एक और नया प्रयोग होने वाला है। CRPF के डाइरेक्टर जनरल आरआर भटनागर साहब कहते हैं कि पत्थरबाजों से निपटने के लिए पुलिस और पैरामिलिट्री के जवानों को ट्रेनिंग दी जा रही है। हर एक पत्थरबाज से निपटने के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। दरअसल, कश्मीर में दिक्कत ये है कि सुरक्षाबल का एक भी जवान नहीं चाहता है कि उनके हाथ से किसी भी बेगुनाह को चोट लगे। लेकिन, जब उनके सामने उन्मादी भीड़ हाेती है तो वो भी कार्रवाई करने को मजबूर होते हैं। एक ओर आतंकियों के खिलाफ एनकाउंटर ऑन होता है तो दूसरी ओर पत्थरबाजी का उन्माद।
कश्मीर में सारा काम कोऑर्डिनेशन से होता है। जम्मू-कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और इंडियन आर्मी के बीच बेहतर तालमेल है। शायद इसी बेहतर तालमेल की वजह से ही इस साल अब तक 132 खूंखार आतंकी मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। आतंकियों की मौत का ये आंकड़ा दो सौ को भी पार कर चुका होता अगर पत्थरबाज की पनौती सीआरपीएफ को ना लगी होती। अभी हाल ही में शोपियां में सुरक्षाबलों ने हिजबुल मुजाहिद्दीन के एरिया कमांडर यासीन याटू उर्फ महबूद गजनवी और उसके तीन साथियों को मौत के घाट उतारा था। घंटे चले इस एनकाउंटर में यासीन याटू ने भागने की पूरी कोशिश की थी। वो लगातार यहां से पत्थरबाजों की फौज को फोन कर रहा था। उन्हें मैसेज कर रहा था। लेकिन, पत्थरबाज की मदद उस तक नहीं पहुंची। ये तालमेल है।
पत्थरबाज की पनौती को सुरक्षाबलों के जवानों ने तालमेल के साथ खत्म करने की ठानी है। आतंकी भागे ना सके इसलिए उसकी घेरा बंदी की जाती है। पूरे इलाके में नाकेबंदी हो जाती है। इसके साथ ही एनकाउंटर साइट पर इंटरनेट की सेवाएं पूरी तरह रोक दी जाती हैं। सुरक्षाबलों की गाडि़यों में जैमर भी लगे होते हैं। जिससे एनकाउंटर साइट पर मोबाइल नेटवर्क भी ठप हो जाता है। ऐसे में आतंकियों तक पत्थरबाजों की मदद पहुंच ही नहीं पाती है। लेकिन, फिर भी कई बार पत्थरबाज पनौती सुरक्षाबलों को बहुत परेशान करती है। जिनसे निपटने का जिम्मा बाहरी सुरक्षा घेरे में तैनात जवानों के पास होता है। हालांकि कई अलगाववादी नेताओं के जेल जाने से ये पनौती थोड़ी बहुत छंटी तो जरुर है लेकिन, पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।