श्रद्धांजलि के नाम पर अखिलेश की २०० गाड़ियों का रेलापेल, जातिवादी, मूल्यमूर्च्छित राजनीति की दौड़ !

पीड़ित परिवारों की मर्मांत भावनाओं को रौंदते हुए………. श्रद्धांजलि के नाम पर अखिलेश की २०० गाड़ियों का रेलापेल ….जातिवादी, मूल्यमूर्च्छित राजनीति की दौड़ !

New Delhi, Aug 17 : ………गोरखपुर में मासूमों की लाशों पर ….औरंगज़ेब की भाँति अपने पिता को लात मारके कुर्सी हथियाने वाले…. ‘टीपू’ यानी अखिलेश यादव द्वारा २०० गाड़ियों के क़ाफ़िले के साथ बनावटी श्रद्धांजलि की शर्मनाक नौटंकी की गयी।
२ मासूम बच्चों के पीड़ित परिवार वाले समझ नहीं पा रहे थे कि क्या कोई पीड़ा बाँटने आया है या ‘ब्लैक कैट’ कमांडो व २०० गाड़ियों के साथ उन्हें डराने धमकाने आया है। पीड़ितो के साथ फ़ोटो खींचने के लिए विशेष फ़ोटोग्राफ़रों की व्यवस्था थी, जैसेकि कोई पिकनिक हो। सपा के कार्यकर्ताओं ने यह सुनिश्चहित किया कि जिन पीड़ितो के घर अखिलेश जाएँ उनमें एक परिवार ‘यादव’ ज़रूर हो-अतः बाघागाढ़ा गांव के ब्रम्हदेव यादव का घर को चुना गया…..ताकि हाथ से बाहर जाती यादव ‘जाति’ की वोट को खिसकने से बचाया जा सके।

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जो Ex-CM अखिलेश यादव अपने ५ वर्ष के कार्यकाल में Encephalitis की रोकथाम व इलाज की सही व्यवस्था नहीं कर पाया…बच्चों का टीकाकरण नहीं करा पाया… जिसके ५ वर्ष के कार्यकाल में इस बीमारी से गोरखपुर/पूर्वांचल में ५,००० से भी ज़्यादा बच्चों की मौत हुई …. किस मुँह से वह गोरखपुर जाकर ‘मूल्यमूर्च्छित’ राजनीति करने जाता हैं, समझ से बाहर है।
जो व्यक्ति अपने पिता के प्रति सहानुभूति नहीं रख पाया, वह किसी अन्य किसी के बच्चे के प्रति क्या दया दिखाएगा , समझना मुश्किल नहीं है। वही २०० गाड़ियाँ व १००-२०० चमचे फिर से टोल ब्रिज लाँघते हुए सड़क पर ऐसे भाग रहे थे, जैसे कोई उत्सव मनाने के लिए या राजनीतिक रैली करने जा रहे हों।

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अखिलेश एक नितांत ‘जातिवादी’ नेता मात्र है …उसमें से आधी जाति पिता/चाचा के साथ विभाजित है… अपने अश्तित्व को बचाने के लिए ये सब नौटंकी कर रहा है, गोरखपुर के मृत बच्चों व पीड़ित परिवारों दुःख से अखिलेश का कुछ लेना देना नहीं है।
सत्तालोलुपता में पिता को ठिकाने लगाने वाला ‘औरंगज़ेब’ की प्रतिपूर्ति ‘टीपू’ कानपुर में भी एक शहीद के घर भी टोल ब्रिज को रौंदते जिए इन्ही २०० गाड़ियों व ५०-१०० चमचों के साथ गया था और वहाँ अपने ही पक्ष में बेशर्मी से ‘अखिलेश भैया ज़िंदाबाद’ की नारेबाज़ी करायी थी, न कि शहीद के लिए और न ही कोई ‘भारत माँ की जय’ बोली थी…..वहाँ भी जाकर अहंकार भरी शहीद को झूँठी श्रद्धांजलि देने की नौटंकी की गयी थी और शहीद के परिवार द्वारा बड़े अनमने मन से व कुछ देर से ऊपर से नीचे आने पर दुखी परिवार को भी अपने प्रोटोकोल की याद दिलायी थी …..

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शहीद का परिवार ब्रिगेडियर के साथ ऊपर बैठा था इस लिए नीचे आने पर देर हो गयी थी तो अखिलेश ने उनसे अहंकारवश कहा था कि उसका प्रोटोकोल ब्रिगेडियर से ऊँचा है अतः शहीद के माता-पिता को पहले उससे मिलना चाहिए था, न कि ब्रिगेडियर से, जो शहीद का ‘बॉक्स/कपड़े’ माँ-बाप को सौंपने आया था….अखिलेश के चमचे कई फ़ोटोग्राफ़र्स को भी शहीद के घर लेकर गए थे और शोक की घड़ी में शहीद के माता-पिता के साथ ख़ूब फ़ोटोग्राफ़ी की ताकि अख़बार में छपवाया जा सके….. इस तरह का अखिलेश व्यवहार न केवल शर्मनाक है …अपितु अखिलेश यादव की अपनी भविष्यहीनता के अंधकार की छटपटाहत मात्र है, और कुछ नहीं …..क्या इनकी अकर्मण्यता, भ्रष्टाचार व जातिवाद को उत्तर प्रदेश के लोग इतनी आसानी से भूल जाएँगे, शायद कभी नहीं …..चाहे अखिलेश किसी और राजनीतिक दल से कितना भी हाथ मिला ले। कोंग्रेस से तो कर के देख लिया अब मायावती से हाथ मिलाने को आतुर है, लेकिन उधर से कोई लिफ़्ट नहीं मिल रही है।
(रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)