बीजेपी के लिए लालू यादव कितना परेशान हैं, अपनों में छिपे परायों को भी देख लेते !

लालू यादव एक बार फिर से राजनीति में अकेले पड़ रहे हैं। उनकी रैली से जिस तरह से नेता दूरी बना रहे हैं वो लालू के लिए किसी झटके से कम नहीं है।

New Delhi, Aug 26: लालू यादव इन दिनों परेशान हैं, वैसे परेशान तो वो हमेशा रहते हैं, लेकिन इन दिनों कुछ अलग बात है। उनकी परेशानी का रंग गहरा होता जा रहा है। बीजेपी हटाओ देश बचाओ के नाम से उन्होंने हुंकार भरी थी। 27 अगस्त को पटना में इसी नाम से रैली का आयोजन करने वाले हैं उनके सुपुत्र तेजस्वी यादव भी इस रैली के लिए पूरे बिहार में लोगों को जानकारी दे रहे हैं। इस रैली के जरिए लालू और उनका परिवार बीजेपी के खिलाफ बल्ला बोलेगा। बिहार की नीतीश कुमार सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप को लेकर हमला करेगा। खास बात ये है कि रैली से तीन दिन पहले तक लालू लगातार चारा घोटाले के मामले में कोर्ट में पेश होंगे।

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क्या ये विडंबना नहीं है कि चारा घोटाले के मामले में लगातार तीन दिन तक रांची कोर्ट में पेश हने के बाद लालू यादव इस रैली को संबोधित करेंगे। वो किस विचारधारा की बात करते हैं। वो किस मुंह से राजनीति में नीति और ज्ञान की बात करेंगे। लालू पूरी ताकत लगा रहे हैं कि वो किसी भी तरह बीजेपी को घाव दे सकें। इसके लिए वो अपना पूरा दम लगा रहे हैं। विपक्ष के नेताओं से अपील कर रहे हैं कि वो उनकी रैली में आकर विपक्षी एकता की मिसाल कायम करें। यहां पर समझने वाली बात ये है कि बीजेपी को लेकर लालू की नफरत लगातार बढ़ती जा रही है इसके बाद भी उनको विपक्ष का सहयोग नहीं मिल रहा है। क्या कारण हो सकता है इसके पीछे।

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बीजेपी ने लालू से अपील भी की थी कि वो बाढ़ के हालात को देखते हुए अपनी रैली को आगे खिसका दें। लेकिन लालू ने बीजेपी की सलाह नहीं मानी। इस से भी बड़ी बात तो ये है कि लालू को जिन पर भरोसा था वो अब धीरे धीरे उनसे किनारा करते जा रहे हैं। मायावती, सोनिया गांधी, राहुल गांधी सभी ने रैली में शामिल होने से इंकार कर दिया है। विपक्षी एकता के झंडाबरदार बनने की कोशिश कर रहे लालू के लिए य झटका बिहार में सरकार से बाहर होने से भी ज्यादा बड़ा है। अब अकेले पड़े लालू के पास ये सोचने का मौका है कि वो इस हालत में क्यों पहुंचे हैं। उनकी अब तक की राजनीति को ध्यान से देखें तो इसका जवाब भी मिल जाएगा।

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लालू यादव ने अपनी राजनीति के केंद्र में हमेशा खुद का फायदा रखा है। वो उस दल के साथ गए जिसके साथ जाने में फायदा है। उनके राजनीतिक जीवन में अब तक कई दाग लगे हैं। लालू भ्रष्टाचार के प्रतीक माने जाते हैं। चारा घोटाले में दोषी करार होने के कारण उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगी हुई है। दागदार सियासी जीवन के कारण कोई उनके साथ खड़ा होने को तैयार नहीं है। उस से भी हैरान करने वाली बात तो ये है कि लालू एंड पार्टी को अभी भी लगता है कि वो बिहार के भले की बात करेंगे और जनता मान लेगी।  कुल मिलाकर अपने सियासी जीवन के आखिरी छोर पर खड़े लालू केवल अपने बेटों के सियासी भविष्य को सुरक्षित करने के लिए ये सारा खेल रच रहे हैं। लेकिन क्या वो इसमें कामयाब हो पाएंगे।