बिहारी की इस तस्वीर की भी बात कीजिये !

मात्र 30 दिन पहले उन्होंने अपना सब कुछ खोया है। रोने की आदत नहीं रही। फिनिक्स की तरह बार-बार उभरना बिहारी की ताकत रही।

New Delhi, Aug 30 : पिछले तीन दशक से बिहार और बिहारी की चर्चा बिहार के बाहर मजा, जंगलराज और खराब दशा के लिए होती रही है। कई मौकों पर कहा है कि इसके लिए बाहर के लोग से अधिक जिम्मेदार बिहार का एक खास स्यूडो क्लास रहा है जिसका पूरे बिहार की गलत ब्रांडिंग करने के पीछे अपने कारण रहे हैं। अपनी कुंठा रही है। इसमें कोई दो राय नहीं रही कि बिहार डवलपमेंट अजेंडा से पीछे हटा। ला एंड आर्डर के इशु रहे। ऐसे समय,जब बाकी दूसरे स्टेट ने बेहतर विकास किया,बिहार पीछे रहा। एजुकेशन सिस्टम खराब हुई। बिहारी अपमार्केट स्मार्ट नहीं बने।

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यह सारी बात सही है। छिपाना भी नहीं चाहिए। गलत है तो गलत है। राजनीतिक कारणों से गलत है तो भी गलत बोलये। लेकिन खुद जब अपने लोग बिहार को बद से बदनाम की सीमा को पार कराने में लगे थे,उनकी आंख यह नहीं देख सकी कि इसी राज्य में कई ऐसी खूबी थी की अगर उसे वे देश-विदेश को बताते तो राजनीति से इतर बिहार को लोग अधिक करीब से, अधिक प्रेम से देखते। लेकिन जब खुद के लोग ही तो फिर दूसरों से इज्जत की अपेक्षा क्यों रखें। अभी राम रहीम की कहानी देखी। उनके लाखों-करोड़ो फॉलोअरों को देखा। कभी आपने ऐसे बाबाओं को बिहार में पनपते देखा है? बिहारी भी गरीब हैं। उनकी भी अपेक्षा है लेकिन बिहार में एेसे ठग बाबाओं को कभी बड़ा स्पेस नहीं मिला। वे अपनी छोटी दुनिया में ही खुश है।

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अभी बिहार का बड़ा हिस्सा बाढ़ में डूबा है। घरबार-फसल डूब गया। बहुत नुकसान हुआ होगा। लेकिन दावा करता हूं, आप अगले महीने त्योहार के मौसम में आप उन इलाकों का दौरा करें। सभी के हंसते चेहरे आपको भनक नहीं लगने नहीं देखें कि मात्र 30 दिन पहले उन्होंने अपना सब कुछ खोया है। रोने की आदत नहीं रही। फिनिक्स की तरह बार-बार उभरना बिहारी की ताकत रही।
कभी आपने साेचा कि जब पूरे देश में किसानों के आत्महत्या पर बहस होती है तो बिहार के किसान की चर्चा क्यों नहीं होती? क्यों नहीं बिहार के किसान आत्महत्या करते? हर स्टेट में किसान कर्ज माफी के लिए मारपीट करते। बिहार में किसान कर्जा माफ करवाते क्या? क्या किसान के पास इतनी संपत्ति है? नहीं। कितना पांव पसारना चाहिए,यह यहां के लोगों को आता है।

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आज जिस एनसीआरबी के आंकड़ों से बिहार के जंगलराज की बात करते हैं,उसी एनसीआरबी के हिसाब से आप इस बात को नहीं बताते कि बिहारी आत्महत्या नहीं करते। वे टूटते कम हैं। बिहार में महिला सम्मान दूसरे राज्यों से अधिक है। बिहार का महत्वाकांक्षी नहीं होना उनकी कमजोरी रही है। उनके आगे नहीं बढ़ने की सबसे बड़ी वजह रही है। लेकिन उनका अति महत्वाकांक्षी नहीं होना उनकी सबसे बड़ी मजबूती भी रही है। टिके रहने की सबसे बड़ी वजह रही है,तमाम दिक्कतों के बीच। आपके मजाक के बीच। आज ही देखये, जब पूरा देश मुंबई की बारिश के बाद लोग मुंबईकर के लिए दुआ कर रहा है,पूरा तंत्र लगा है, तब भी कहीं लाखों बिहार पिछले बीस दिनों से घर-बार छोड़ बाढ़ में खुद अपनी लड़ाई लड़ रहा है। बिना शिकायत किये। बिना जान दिये। बिना अपेक्षा किये। वह जानता है,दिस टू विल पास।

(पत्रकार नरेन्द्र नाथ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)