पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीतिक उपेक्षा क्यों ?

राजनीतिक उपेक्षा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कमर तोड़ कर रख दी है, माना कि उत्तर प्रदेश एक बड़ा प्रदेश है लेकिन फिर भी क्षेत्रीय संतुलन बनाना हर सरकार की ज़िम्मेदारी है।

New Delhi, Sep 03 : उत्तर प्रदेश के कुल राजस्व प्राप्तियों में 60% हिस्सा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 26 जिलों से आता है, इसके 6 जनपद NCR(National Capital Region) में आते हैं। सभी सत्ताधीशों ने नॉएडा-ग्रेटरनॉएडा- यमुनाएक्सप्रेस्वे-ग़ाज़ियाबाद क्षेत्र का ख़ूब आर्थिक दोहन किया। सबको पता है कि यह क्षेत्र पूर्व दो सरकारों के सत्ताधारी नेताओं और उनके परिवारों की तो चरागाह ही बन गया था।
पश्चिमी उ. प्र. का सरकारों ने किसानों की भूमि का अधिग्रहण कर उनको भूमिहीन बना दिया।

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‘नेता-नौकरशाह-रियल इस्टेट माफ़िया’ गठजोड़ ने इस क्षेत्र को चूस कर रख दिया है। चाहे मूल निवास कहीं भी हो, हर नौकरशाह इसी क्षेत्र में तैनाती चाहता है और नॉएडा में ही आलीशान आवासों में रहना चाहता है। यहां तक कि ग़ाज़ियाबाद-नॉएडा लोकसभा क्षेत्र को भाजपा जैसे राष्ट्रवादी दल को भी कोई स्थानीय प्रत्याशी भी मयस्सर नहीं होता। गृहमंत्री जी व उनके पुत्र को यही क्षेत्र की शान बढाई है और आज जनरल साहब भी हरियाणा से आकर इसी क्षेत्र से चुनाव लड़े। चुनाव के बाद किसी ने पीछे मुड़कर किसी ने नहीं देखा, लोग आज भी ठगे से हैं। आज न तो उत्तर प्रदेश और न ही देश में कोई प्रभावशाली मंत्री पश्चिमी क्षेत्र से है। भाजपा संगठन में भी इस क्षेत्र की उपेक्षा साफ़ छलकती है।

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जाट-मुस्लिम-राजपूत-दलित बाहुल्य क्षेत्र ने गत लोकसभा व विधानसभा में पुराने मिथक को तोड़ते हुए भाजपा को विजय दिलायी। जहां किसान पर गन्ना की क़ीमत/भुगतान की मार, प्रॉपर्टीज़ डीलर्स-नेता-नौकरशाही की लूट व साम्प्रदायिक दंग़ो के दंश ने इस क्षेत्र का बेड़ा गरक करके रख दिया है, वहीं राजनीतिक उपेक्षा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कमर तोड़ कर रख दी है। माना कि उत्तर प्रदेश एक बड़ा प्रदेश है लेकिन फिर भी क्षेत्रीय संतुलन बनाना हर सरकार की ज़िम्मेदारी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कहानी कुछ ऐसी ही है। चुनाव के वक्त सभी पार्टियों द्वारा खूब मीठे-मीठे वादे लेकिन बाद में सब कुछ भुला दिया जाता रहा है। 

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राजस्व लाभ के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश याद आता है और राजनीतिक लाभ के लिए भुला दिया जाता है। राजनीतिक लाभ के मामले में पूर्वांचल नम्बर एक पर रहता है और फिर भी विकास के मामले में फिस्सडी क्यों रहा, नेताओं को जवाब देना होगा। आज भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व सत्ताधारी दल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी हाल में पूर्वांचल से ही नियुक्त हुए हैं। इस सबके के लिए अब पूर्वांचल का विकास एक चुनौती रहेगा। देखते हैं पूर्वांचल के युवाओं के लिए कितना रोज़गार मिलता है ? भुखमरी, महामारी, सूखा, बाढ़ जैसी आपदाओं से मुक्ति मिलती है क्या? उद्दयोग आते हैं क्या? ग़रीबी मिटती है क्या?
वैसे भी इस देश/प्रदेश में राजनीतिक दलों के ‘भुल्लकड़पन’ का कोई इलाज नहीं है।
नेता जी की जय और जनमानस की पराजय’ ही है, इस देश के लोकतंत्र की नियति …..!!!

नोट – मुझे उत्तर प्रदेश के सभी हिस्सों से बराबर प्रेम है। पूर्वांचल व बुंदेलखंड तो मेरे सबसे प्रिय कार्यक्षेत्र हैं, और मैं रहता भी लखनऊ में हूँ, न कि नॉएडा में जबकि मेरा मूल निवास क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही है। मैंने सत्य व न्याय की दृष्टि से उपरोक्त पोस्ट लिखा है ताकि राजनीतिक नेतृत्व क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखे।

(रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)