बीजेपी के खिलाफ ‘घनघोर फ्रस्‍टेशन’ में शिवसेना, छोड़े जा रहे हैं अंधेरे में तीर

बीजेपी के नेताओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ शिवसेना के हमले जारी हैं। लेकिन, सेना ने अब अपनी सियासी हदों को पार करना शुरु कर दिया है।

New Delhi Sep 11 : कई बार सोचकर बड़ा अजीब लगता है कि कैसे कोई व्‍यक्ति या पार्टी दोहरी जिदंगी जी सकता है। शिवसेना को ही ले लीजिए। कहने को तो वो एनडीए में शामिल है। मोदी सरकार में उसके कोटे से मंत्री बनकर नेता मलाई भी खा रहे हैं और सरकार को कोस भी रहे हैं। महाराष्‍ट्र में भी दोनों के गठबंधन वाली सरकार है। लेकिन, शिवसेना जैसे दोस्‍तों के रहते बीजेपी को दुश्‍मनों की कोई जरुरत नहीं है। सेना के नेता स्‍वच्‍छ राजनीति का चोला ओड़कर दिन रात बीजेपी को ही कोसने में लगे रहते हैं। बीएमसी से लेकर सामना तक की स्‍याही को बीजेपी के खिलाफ भी रंगा जाता है। शिवसेना की ओर से बीजेपी के खिलाफ झूठ का पुलिंदा बनाकर जनता के सामने पेश किया जा रहा है।

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अभी हाल की ही बात ले लीजिए। शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक संपादकीय लिखा गया।  जिसमें दावा किया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी कैबिनेट में एनसीपी प्रमुख शरद पवार की बेटी और महाराष्‍ट्र से सांसद सुप्रिया सुले को शामिल करना चाहते हैं। बीजेपी की ओर से सु्‍प्रिया सुले को इस बात का आफर दिया गया था। जिसे उन्‍होंने ठुकरा दिया। ‘सामना’ में ये लेख शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत और शरद पवार के बीच मुलाकात पर छपा है। सामना ने लिखा है कि जब दोनों नेताओं की मुलाकात हुई तो संजय राउत ने शरद पवार से पूछ लिया कि क्‍या एनसीपी एनडीए में शामिल होने जा रही है। तो इस पर शरद पवार ने साफ तौर पर कह दिया कि ये सब अफवाह है जो मीडिया के  जरिए फैलाई जा रही हैं।

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अब जरा देखिए, शरद पवार खुद इस बात से इनकार कर रहे हैं कि वो ना तो एनडीए में शामिल होने जा रहे हैं और ना ही उन्‍हें बीजेपी की ओर से कोई ऑफर मिला है। इस बात को शिवसेना का मुखपत्र सामना अपने लेख में भी कोट कर रहा है। बावजूद इसके जबरदस्‍ती इस बात का दावा किया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुप्रिया सुले को अपनी कैबिनेट में शामिल करना चाहते थे। इसके लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने शरद पवार से बात भी की थी। सियासी गलियारों में हमेशा से इस बात की चर्चा रही है कि महाराष्‍ट्र में शरद पवार का वही हाल है जो बिहार में रामबिलास पासवान का है। यानी जहां भी मौका मिलता है ये नेता उसे लेने से चूकते नहीं हैं। बस काम इनके मन का होना चाहिए।

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अब जरा सोचिए कि अगर वाकई पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से शरद पवार को ये ऑफर मिलता ताे क्‍या वो इसे ठुकरा देते। एनसीपी शायद कभी इस ऑफर को नहीं ठुकराती। जबकि उसे पता है कि महाराष्‍ट्र में भी बीजेपी और शिवसेना के बीच बहुत नहीं बन रही है। अगर बीजेपी और शिवसेना गठबंधन टूटता है तो एनसीपी बीजेपी का दामन थाम सकती है। यहां पर सियासत की ढेरों संभावनाएं हैं। दरअसल इसे शिवसेना का फ्रस्‍टेशन ही कहा जा सकता है। शिवसेना इस बात को लेकर फ्रस्‍टेशन में है कि मोदी कैबिनेट के विस्‍तार में उसके मंत्रियों की कोई संख्‍या नहीं बढ़ाई गई। शिवसेना को फ्रस्‍टेशन इस बात का है कि महाराष्‍ट्र में उसकी सियासी जमीन पर बीजेपी का कब्‍जा होता जा रहा है। शिवसेना क्षेत्रीय और राष्‍ट्रीय राजनीति के भंवर में फंसी है। उसे समझ ही नहीं आ रहा है क‍ि आखिर करना क्‍या है। ऐसे में शिवसेना सिर्फ अपनों की ही पीठ में छूरा घोपने पर तुली है।