श्रोता के प्रति अन्याय है आज की टीवी पत्रकारिता !

सामान्य श्रोता इस अतिवादी और पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता से भ्रमित होता जा रहा है अर्थात सच्चाई नहीं जान पाता है।

New Delhi, Sep 11 : पत्रकारिता में न तो अब तो स्वतंत्र ‘निष्पक्षता (Objectivity)’ बची है और न ही ‘न्यायसंगति (Fairness)’। सामान्य श्रोता इस अतिवादी और पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता से भ्रमित होता जा रहा है अर्थात सच्चाई नहीं जान पाता है। क्या सच है और क्या झूठ, कभी-कभी झूठ को सच और सच को झूठ जान बैठता है। ‘निष्पक्षता’ का मतलब है, अपना कोई निजी मत का मिश्रण न कर केवल सत्यता ही लिखना, ‘जो है-सो है’ और ‘न्यायसंगति’ का मतलब है कि आप पत्रकार के रूप में दोनों पक्षों की बात सुनकर दोनों पक्षों के प्रति न्याय करते हो।

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पूरा पत्रकार-जगत आज दो पक्षों में बंटा लगता है – दक्षिणपंथी (Rightists) और बामपंथी/ उदारवादी (Leftists)। दोनों पक्षों में निष्पक्षता (Objectivity) तो है ही नहीं अर्थात इनकी हर ख़बर में निजी सोच/विचारधारा का झुकाव मिश्रित होता है, लेकिन विडम्बना तो यह है कि ये दोनों विचारधारा वाले पत्रकार ख़बर लिखते/सुनाते हुए ‘उभयपक्ष’ का मत भी नहीं जानना चाहते अर्थात न्यायसंगत (Fair) भी नहीं होना चाहते हैं। कुछ लोग ‘मध्यमार्गी (Centrists)’ भी हैं लेकिन निष्पक्ष (Objective) व ‘न्यायसंगत (Fair)’ पत्रकारों की संख्या निरंतर घटती जा रही है। इसीलिए न्यूयॉर्क पोस्ट के प्रसिद्ध पत्रकार Michael Godwin ने सभी पत्रकारों के लिए व्यावहारिक नियम बनाया कि ‘एक पत्रकार चाहे निष्पक्ष हो या न हो लेकिन उसे न्यायसंगत ज़रूर होना चाहिए अर्थात दोनों पक्षों का मत अवश्य लेना चाहिए। 

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Objectivity may be a myth for a journalist but fairness is a must. इसीलिए लिबरल ह्यूमनिज़म के नाम पर ‘रविश कुमारों’ की मजबूरी है Indian Media, तर्ककि उन्हें ‘मोदी’ जी की हर बात बुरी लगती है और दूसरे छोर की भी विवशता सर्वत्र ज़ाहिर है।

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आज उक्त दोनों प्रकार के पत्रकारों का राजनैतिक गलियारों में नाम और चर्चा है इनका जीवन सुखद रहता हैं , करोड़ों की मालकियत है। आज प्रेस का सामाजिक चेतना के लिए उपयोग कम अपितु भ्रमित करने के लिए ज़्यादा इस्तेमाल हो रहा है। यह श्रोता के प्रति अन्याय है। बड़ा मुश्किल है, उक्त दोनों में से किस एक श्रेणी के पत्रकार की प्रशंसा करते हैं या फिर आलोचना, आपको सोशल मीडिया पर ‘असंख्य’ गाली पड़ना लाज़मी हैं! मतों-की-दासता से कैसे मुक्ति मिले, आज पत्रकारिता को, कुछ बचे-कूचे ‘निष्पक्ष'(Neutral) पत्रकारों को या फिर जागरूक पाठकों-श्रोताओं को ही पहल करनी होगी, तभी बच पाएगा यह लोकतंत्र, सभी कुछ बिका-बिकाया सा एजेंडा लगता है, आज !!!

(रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)