‘दिल्ली युनिवर्सिटी का रिजल्ट बहुत बड़ा संकेत है’
दिल्ली यूनिवर्सिटी के रिजलट बहुत हैरानी करने वाली थी। सब तय मान कर चल रहे थे कि बीजेपी की स्टूडेंट विंग एबीभीपी स्वीप करेगी। दो न्यूज चैनल ने तो सुबह में न्यूज पैकेज शुरू कर दिया था-राहुल को झटका और इस हार के बाद उनका अध्यक्ष बनना टल सकता है। खैर,वह भी अति ही थी।
New Delhi, Sep 14 : लेकिन कांग्रेस की एनएसयूआई ने सरप्राइज करते हुए दो बड़े पद जीत लिये। उनकी जीत हुई। इससे पहले जेएनयू में भी लेफ्ट ने स्वीप किया था और एबीभीपी एक सीट पिछले साल के मुकाबले लूज ही कर गयी। कहने को यह स्टूडेंट चुनाव है। सही भी है। और हमें इसी अनुरूप ही देखनी चाहिए। बहुत कुछ इससे राष्ट्रीय राजनीति को कनेक्ट नहीं करना चाहिए। लेकिन बहुत कुछ कनेक्ट करनी भी चाहिए। डीयू सबसे बड़ा सैंपल वाला रियल ओपेनियन पाोल होता है। 1 लाख से अधिक वोटर भाग लेते हैं। सभी युवा। पूरे देश के अलग-अलग हिस्से से। साथ ही औसत या औसत से बेहतर दिमाग वाले। यह तथ्य है। जबकि 8 हजार से अधिक सैंपल से ओपेनियन पोल हो जाते हैं।
अगर इन सबने मिलकर उस विचार को कैंपस में सख्त संदेश दिया कि थोपा हुआ राष्ट्रवाद नहीं चलेगा। थोपा हुआ विचार नहीं चलेगा। कभी रामजस कालेज में तो कभी कहीं। खुद को एक वर्ग देशभक्ति,संस्कार के ठेकेदार समझ कर दूसरों पर टारगेट करने लगे थे। इसका असर कैंपस से बाहर तक हो रहा था। राजनीतिक लाभ के लिए धर्म और राष्ट्रवाद के नाम पर विचारों का चरस बोया जा रहा था। धर्म और देशभक्ति के सबूत मांगे जा रहे थे। ऐसे समय जब न्यू इंडिया की बात हो रही थी,युवाओं को कट्टरवाद के रंग में रंगने की कोशिश की जा रही थी। लेकिन युवाओं ने वक्त रहते बहुत चुपचाप और शालीन तरीके से ऐसी कोशिशों को चालाकी से खारिज कर दिया-नो,थैंक्स। हम ऐसा नहीं होने देंगे। हमें अपनी डायवर्सिटी पर नाज है।
दरअसल इकोनॉमी टैंक कर रही,जॉब लगातार घट रहे,मल्टी नेशनल कंपनी छंटनी कर रही, टैक्स पर टैक्स ठोक रहे,तीन साल बाद भी निगेटिव पॉलिटिक्स और विरासत को कोसने पर ही फोकस,इन सबसे से युवाओं को आज न कल विरक्ति होगी ही। और उससे भी बड़ी बात कि इन सबको लेकर कैंपस पहुंचा जा रहा था। अभी वक्त है। पीएम मोदी मास्टर पॉलिटिशियन हैं। वह गलतियों को वक्त रहते करेक्ट करते हैं। अभी भी करेंगे। लगता है कि आज का रिजल्ट उन्होंने परसों ही भांप लिया था।
तभ वह अपने ही अंदर वंदेे मातरम और भारत माता की जय बोलकर कुछ भी करने और कोई काम नहीं करने का लाइसेंस समझने वालों को संदेश दे दिया था कि ऐसा चलने वाला नहीं है। न्यू इंडिया में ऐसा नहीं होगा। क्योंकि जो युवा और मिडिल क्लास उनकी सबसे बड़ी ताकत है,वही उनसे दबी जुबां में सवाल पूछ रहे हैं। साथ ही एक जो सबसे बड़ा ट्रेंड सामने आया है वह है नोटा का। नोटा वोट इतने पड़े हैं कि वे जीतने के करीब तक पहुंच सकते हैं। यह मौजूदा दौर के सभी तरह की राजनीति के लिए कड़ा संदेश है। सुधरो। सुधरो। और सुधरो। नहीं तो सब बदल दिये जाओगे
(पत्रकार नरेन्द्र नाथ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)