12 AC में खड़े होकर ‘दौलत की बेटी’ मायावती ने की ‘दलितों’ की बात, झूठ के सहारे सियासत !

मायावती ने सोमवार को मेरठ में रैली को संबोधित किया था। यहां वो 12 एयरकंडीशनर में खड़ी होकर दलितों के लिए पसीना बहाने की बात कर रही थीं।

New Delhi Sep 19 : सच कड़वा होता है। इसे सुनने और बोलने के लिए हिम्‍मत चाहिए होती है। यूपी विधानसभा चुनाव के छह महीने गुजर चुके हैं। मायावती ने इन चुनावों में अपनी करारी हार देखी थी। यूपी से मायावती की सियासी जमीन खिसक चुकी है। फिर भी वो इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं। आज भी वो अपनी हार का ठीकरा ईवीएम के सिर ही फोड़ती नजर आती हैं। ये ईवीएम उन्‍हें जिताए तो सच्‍ची, बीजेपी को जिताए तो टेंपर्ड हो जाती है। दरअसल, टेंपर्ड ईवीएम नहीं नेताओं की सोच है। मायावती ने सोमवार को मेरठ में रैली को संबोधित किया। जिस मंच पर उनका स्‍वागत किया गया, जिस मंच पर उन्‍हें बिठाया गया, जिस मंच से उन्‍होंने भाषण दिया वहां उनकी सहूलियत के लिए 12 AC लगाए गए थे। ताकि बहन जी के पसीना ना निकले और वो धूप में तपते दलितों की बात कर सकें।

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मायावती की मेरठ रैली, रैली कम झूठ का पुलिंदा ज्‍यादा नजर आ रही थी। 12 AC वाले मंच पर खड़े होकर वो दलितों के लिए पसीना बहाने की बात कर रही थीं। उनका कहना था कि ईवीएम से ध्‍यान भटकाने के लिए ही सहारनपुर के दंगे कराए गए थे। सबको मालूम है कि इन दंगों के पीछे कौन था और उसका मायावती के भाई आनंद से क्‍या संबंध था। बहरहाल, सहारनपुर दंगों का आरोपी भीम आर्मी का मुखिया पकड़ा जा चुका है। लेकिन, मायावती दावा करती हैं कि मामूली हिंसा को जातीय संघर्ष में बदल दिया गया था। उनकी ये बात एकदम सही है। सहानपुर में मामूली हिंसा हुई थी जिसे वाकई में बाद में जातीय संघर्ष का रंग दे दिया गया था। इस हिंसा को किन लोगों ने और क्‍यों दंगों का रूप दिया था ये बात मायावती को भी पता है।

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दरअसल, मायावती झूठ के सहारे एक बार फिर यूपी में खोई हुई अपनी सियासी जमीन को हासिल करना चाहती हैं। शायद यही वजह है कि वो कहती हैं कि बीजेपी ने उनकी हत्‍या की साजिश रची थी। इस तरह के आरोप आप सिर्फ मायावती के ही मुंह से सुन सकते हैं। किसी दूसरी एजेंसी ने आजतक ये दावा नहीं किया मायावती की जान को खतरा है या फिर उन्‍हें किसी के द्वारा जान से मारने की साजिश रची गई। मायावती ने मेरठ रैली में ये भी दावा किया कि वो 18 जुलाई को सहारनपुर के शब्‍बीरशाह में हुए दंगों का मसला राज्‍यसभा में उठाना चाहती थीं लेकिन, उन्‍हें यहां पर बोलने की इजाजत ही नहीं दी गई। मायावती कहती हैं कि सत्‍ता पक्ष ने उन्‍हें बोलने नहीं दिया। इसी के चलते उन्‍होंने राज्‍यसभा से भी इस्‍तीफा दे दिया। यानी अपने दलित समाज की खातिर राज्‍यसभा की कुर्सी त्‍याग दी।

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जरा इन बातों की हकीकत भी जान लीजिए। बीजेपी कहती रही है कि मायावती सदन के नियमों के विरुद्ध सहारनपुर दंगों का मसला उठाना चाहती थीं। बावजूद इसके उन्‍हें बोलने के लिए सभापति की ओर से तीन मिनट का वक्‍त दिया गया। आप को लग रहा होगा कि किसी को बोलने के लिए तीन मिनट का वक्‍त काफी है क्‍या ? लेकिन, सदन की कार्यवाही में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी नेता को बोलने के लिए दो मिनट या फिर तीन मिनट का वक्‍त दिया गया हो। इतने कम समय में भी नेता अपनी पूरी बात सदन के सामने पेश करते हैं और कर सकते हैं। लेकिन, मायावती ने उस वक्‍त भी अपनी सियासत की खिसकती जमीन को ध्‍यान में रखकर ही कदम उठाया था और ना बोलने देने की झूठी बात कहकर इसे मुद्दा बनाने की कोशिश की और राज्‍यसभा से इस्‍तीफा दे दिया। वो भी तब जब उन्‍हें पता था कि आठ महीने बाद उनकी राज्‍यसभा की सदस्‍यता खत्‍म हो रही है। यूपी में अपनी सीटों के सहारे वो यहां तक अब दोबारा नहीं पहुंच सकती हैं। इस रैली में मायावती ने भीड़ के सहारे अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की। लेकिन, इसके साथ ही दलित नेता और दलितों के बीच का फर्क यहां साफ दिख रहा था। एक ओर पसीना बहाती जनता थी तो दूसरी ओर 12 AC वाली ठंडी हवा के सामने मायावती।