बिहार में टूट गया ‘भ्रष्टाचार’ का बांध ! सब एक ही थाली के हैं चट्टे-भट्टे
जिस बांध का इंतजार बिहार के भागलपुर के लोग पिछले चालीस सालों से कर रहे थे वो डैम भ्रष्टाचार की बदौलत उद्घाटन से एक दिन पहले ही धराशायी हो गया।
New Delhi Sep 20 : लोग कहते हैं कि मेरे सब्र का बांध टूट गया। कुछ लोग कहते हैं मेरे गुस्से का बांध टूट गया। लेकिन, बिहार में तो भ्रष्टाचार का ही बांध टूट गया है। बिहार के भागलपुर की जनता को पिछले चालीस सालों से जिस बांध का इंतजार था वो अपने उद्घाटन के एक दिन पहले ही धराशायी हो गया। ये भ्रष्टाचार की वो निशानी है जिसकी बुनियाद पर इस बांध को तैयार किया जा रहा था। लेकिन, इसमें खेल किसने किया कह पाना मुश्किल है ? गलती किसकी है ? ये भी कह पाना बेहद मुश्किल है। क्योंकि हर किसी के पास बांध टूटने का ठीकरा एक दूसरे के सिर पर फोड़ने की वजह है। इस पर काम चालीस साल से जो चल रहा है। इस बीच कई सरकारें आईं और चली गईं। जिम्मेदारी किस पर थोपें समझ नहीं आ रहा है।
दरसअल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बुधवार की सुबह ग्यारह बजकर बीस मिनट पर भागलपुर जिले के कहलगांव में इस बांध परियोजना का उद्घाटन करना था। नीतीश कुमार के आने से पहले बटेश्वर गंगा पंप कैनल प्रोजेक्ट के इस डैम का ट्रायल किया गया। लेकिन, ट्रायल में ही ये बांध धराशायी हो गया। मंगलवार की शाम को करीब चार बजे यहां पर 12 पंपों में से पांच पंप को चालू किए गए। लेकिन, 12 पंपों की क्षमता वाला ये बांध पांच पंपों के पानी के प्रेशर को भी बर्दास्त नहीं कर पाया। एक घंटे में ही एनटीपीसी आवासीय परिसर के पास पुल के बगल से बटेश्वर स्थान गंगा पंप नहर परियोजना का बांध टूट गया। पानी भलभलाकर बहने लगा। सभा स्थल दुल्हन की तरह सज धज कर तैयार था। लेकिन, बांध के टूटते ही ऐसा हो गया मानो किसी दुल्हन की बारात आने से पहले ही लौट गई हो।
इससे पहले भी इस बांध का उद्घाटन दो बार टल चुका है। डैम टूटने के साथ ही नीतीश कुमार का दौरा भी रद्द कर दिया गया। लेकिन, बिहार में भ्रष्टाचार के इस बांध के टूटने के साथ ही तमाम सवाल पैदा हो गए हैं। एनटीपीसी हाउसिंग कॉम्पलेक्स में घुसा पानी सरकारी व्यवस्थाओं को नहला रहा है। बिहार में भ्रष्टाचार के इस बांध ने कई सड़कों को तोड़ दिया। खेतों में लगी धान की फसल को बरबाद कर दिया। लेकिन, सरकार खामोश है। उसे समझ में नहीं आ रहा है कि क्या जवाब दें। बांध टूटने की जवाबदेही नीतीश कुमार की है या फिर चालीस साल पुरानी परंपरा, इस सवाल का जवाब तलाशा जा रहा है। 1977 में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री और कहलगांव के विधायक रहे सदानंद ने इस प्रोजेक्ट के लिए भूमि पूजन किया था।
उस वक्त अनुमान लगाया गया था कि ये प्रोजेक्ट 13 करोड़ 88 लाख रुपए में बनकर तैयार हो जाएगा। लेकिन, देखते ही देखते चालीस बरस गुजर गए। बांध बनकर तैयार नहीं हो पाया। लागत 828.80 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। जब बनकर तैयार हुआ तो ट्रायल रन में ही फेल हो गया। इस बांध के पानी से बिहार की 21 हजार 700 हेक्टेयर और झारखंड की 4 हजार 883 हेक्टेयर जमीन को सींचने की तैयारी थी। 650 और 450 हार्स पावर की छह-छह मोटरें भी लगा दी गई थीं। लेकिन, भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़ा बिहार का ये बांध पांच मोटरों से निकलने वाली पानी की रफ्तार को भी बर्दास्त नहीं कर पाया और टूट गया। बांध टूट गया और भ्रष्टाचार को लेकर लोगों का विश्वास मजबूत हो गया कि चाहें कुछ भी कर लो, भ्रष्टाचारी लोग कमाल दिखा ही जाएंगे।