‘धृतराष्‍ट्र’ बने मुलायम सिंह यादव, अपमान पर भारी पड़ा पुत्रमोह, लास्‍ट मूवमेंट में लिया यू टर्न

मुलायम सिंह यादव पुत्रमोह में धृतराष्‍ट्र बन चुके हैं। जो बेटा उनकी लगातार सार्वजनिक बेइज्‍जती कर रहा है उसी के चक्‍कर में उन्‍होंने फिर से यूटर्न ले लिया।

New Delhi Sep 25 : सोमवार को लग रहा था कि मुलायम सिंह यादव के अपमान का घड़ा भर चुका है। वो अपने बेटे से इसका बदला जरुर लेंगे। इसकी सभी तैयारियां भी पूरी हो चुकी थीं। नई पार्टी के गठन के एलान का प्रेसनोट भी तैयार हो चुका था। लेकिन, लास्‍ट मूवमेंट में कुछ ऐसा हुआ कि मुलायम सिंह यादव को यूटर्न लेना पड़ा। मुलायम के यूटर्न ने साबित कर दिया है कि वो पुत्रमोह में पूरी तरह धृतराष्‍ट्र बन चुके हैं। जो भाई हर वक्‍त उनके साथ खड़ा रहता है आज उन्‍होंने उसे भी धोखा दे दिया। रामगोपाल यादव और अखिलेश यादव अपनी चाल में कामयाब हुए हैं। उन्‍होंने धृतराष्‍ट्र बने मुलायम सिंह यादव को नई पार्टी के गठन से रोक दिया है। क्‍या ऐसे में मुलायम का खोया हुआ सम्‍मान वापस उन्‍हें मिल पाएगा ?

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हालांकि मुलायम सिंह यादव को हमेशा से ऐतिहासिक राजनीतिक यूटर्न्स के लिए ही जाना जाता है। ये कोई पहला मौका नहीं है जब उन्‍होंने राजनीति में यूटर्न लिया हो। दरअसल, खबर ये थी कि अपने बेटे से नाराज चल रहे मुलायम सिंह यादव सोमवार को प्रेस कांफ्रेंस कर नई पार्टी बनाने का एलान कर सकते हैं। उन्‍होंने समझौते के लिए भी रास्‍ता खोल रखा था। लेकिन, सुबह तक कोई भी बात बनती नहीं दिखी। मुलायम सिंह तय वक्‍त पर प्रेस कांफ्रेंस में पहुंचे। लेकिन, खबर के विपरीत बयानबाजी की। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में यूपी की योगी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार को लपेटना शुरु कर दिया। इस प्रेस कांफ्रेंस में दो प्रेस रिलीज भी सामने आईं जो ये बताने के लिए काफी थीं अपमानित मुलायम सिंह करना और कहना कुछ चाह रहे थे लेकिन, उन्‍हें करना और कहना कुछ पड़ा।

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पहली प्रेस रिलीज के मजमूम से साफ था कि वो सोमवार को नई पार्टी के एलान की तैयारी में थे। इसमें उन्‍होंने लिखा था कि “ पिछले एक वर्ष से अकारण अपमानित होने के बावजूद पार्टी को एक रखने के लगातार कई प्रयास किए। लेकिन, प्रदेशीय सम्‍मेलन में मुझे आमंत्रित तक नहीं किया गया। जिससे मैं अपमानित महसूस कर रहा हूं। जबकि पार्टी की स्‍थापना 1992 में मेरे द्वारा ही की गई थी। जो समाजवादी आंदोलन का महत्‍वपूर्ण और प्रमुख भाग रहा है। देश के कार्यकर्ताओं की भावनाओं का सम्‍मान रखते हुए मैंने फैसला लिया है कि अलग संगठन दल बनाकर समान विचारधारा वाले लोगाें को साथ लेकर अलग राजनैतिक रास्‍ता बनाया जाएगा। किसानों, बेरोजगारों और मुसलमानों की आवाजों को कोई नहीं उठा रहा है। इसलिए मैं मजबूर होकर ये निर्णय ले रहा हूं।”

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असल में मुलायम सिंह यादव को यही वाली प्रेस रिलीज पढ़नी थी। लेकिन, एन वक्‍त पर उन्‍होंने यू टर्न ले लिया। मुलायम ने इस पर्चे की बजाए उस प्रेस नोट को पढ़ा जिसमें मोदी और योगी सरकार पर निशाना साधा गया था। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्‍या मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव में समझौता हो गया था ? क्‍या मुलायम और अखिलेश के समझौते से शिवपाल यादव संतुष्‍ट होंगे ? क्‍योंक‍ि शिवपाल यादव पहले ही कह चुके हैं कि उन्‍हें कुछ नहीं चाहिए वो सिर्फ नेता जी का खोया हुआ सम्‍मान उन्‍हें लौटाना चाहते हैं। यानी समाजवादी पार्टी में अध्‍यक्ष पद की कुर्सी वो वापस मुलायम सिंह को दिलाना चाहते हैं। क्‍या अखिलेश इस गद्दी को छोड़ने के लिए तैयार हैं ? जहां एक ओर रामगोपाल यादव अखिलेश के चहेते हैं। वहीं दूसरी ओर मुलायम और शिवपाल को वो फूटी आंख नहीं सुहाते। यही हाल दूसरी ओर भी है। अखिलेश और रामगोपाल को शिवपाल यादव से चिढ़ है। तो क्‍या इस सूरत में सब ठीक हो पाएगा? या फिर सिर्फ मुलायम सिंह यादव को फौरी तौर पर रोकने में अखिलेश कामयाब हुए हैं ?