पाकिस्तान सिर्फ ‘टेररिस्तान’ नहीं है !

आतंकवादी वहां बसते हैं, छुपते हैं, पनाह पाते हैं. लेकिन पाकिस्तान महज़ आतंकवादियों का देश नहीं है.

New Delhi, Sep 25 : पाकिस्तान को भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में टेररिस्तान की संज्ञा दे दी. इससे हमारे यहां ज़्यादातर ख़ुशी का संचार है. जैसे यूएन के मंच पर हमने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली हो. मुझे लगता हमने कच्ची कूटनीति की है. कूटनीति में एक-एक शब्द नापतौल कर बोला जाता है. इसमें कोई शक नहीं कि कश्मीर में आतंकवाद को पाकिस्तान से शह मिलती है. आतंकवादी वहां प्रशिक्षण पाते हैं, उन्हें वहां से धन मिलता है, हमारी मुद्रा वहीं से फिर आतंकवादियों की झोली में आ गिरती है

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इसके पर्याप्त प्रमाण भी मिलते रहे हैं कि पाकिस्तान का शासन आतंकवाद को प्रश्रय देता है. आतंकवादी वहां बसते हैं, छुपते हैं, पनाह पाते हैं. लेकिन पाकिस्तान महज़ आतंकवादियों का देश नहीं है.
पाकिस्तान सिर्फ़ एक स्टेट नहीं है; वहां लोग बसते हैं. सभी पाकिस्तानी आतंकवादी नहीं हो सकते, न वहां रहने वाले सब लोग आतंकवाद का समर्थन करते हैं.
पाकिस्तान में अपने ही मुल्क के शासन में आतंकवाद को प्रश्रय देने, लोकतंत्र को धता बताने, दक़ियानूसी समाज बनाने की कोशिश करने वालों के ख़िलाफ़ रोष रखने और उसे जब-तब व्यक्त करने वाले लोग भी अच्छी-ख़ासी तादाद में हैं.

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नाकाबिल, संकीर्ण और फ़िरक़ापरस्त सरपरस्तों के ख़िलाफ़ वहां लोग बोलते हैं, जेल जाते हैं, जान देते हैं. वहां भी समाज है, नागरिक अधिकारों के लिए लड़ रहे जुझारू युवक हैं, अच्छे दिनों की आस में बड़े हो रहे बच्चे है, लेखक और कलाकार हैं.
भले हमने स्टेट को निशाना बनाया हो, पर गाली नागरिक को भी पड़ी है. पूरे देश को टेररिस्तान कहकर पुकारना चाहे-अनचाहे पाकिस्तान के उस समझदार, जागरूक तबके का अपमान करना समझा जाएगा. गोया अकारण उन्हें भी अंधेरे में धकेल देना.
यह उतना ही असंगत होगा जितना हर मुसलमान को आतंकवादी क़रार देना होता है, या हर हिंदू संत को बलात्कारी कहना.

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समस्याप्रद पड़ोसी से भी सारे रिश्ते हमेशा के लिए कभी ख़त्म नहीं होते. हमारे व्यावसायिक संबंध अब भी ठाठ से क़ायम हैं. कूटनीतिक बनते-बिगड़ते रहते हैं. पाकिस्तान का साहित्य-संगीत भारत में बड़ी इज़्ज़त से बसा हुआ है. जैसे अल्लामा इक़बाल का ‘सारे जहां से अच्छा’.
भविष्य में दोनों देशों में सहज आमदरफ़्त, दोस्ती की आशा रखी जानी चाहिए. जैसा कि मनमोहन सिंह ने कहा था, सरहदों को अपने बेहतर रिश्तों से हम अप्रासंगिक बना देंगे.
मोदीजी ने भी नवाज़ शरीफ़ के घर अचानक पहुंच कर कुछ वैसी ही मंशा ज़ाहिर की थी. एकाध सभा में भी उन्होंने संबंध सुधारने में भरोसा जताया था.
मुमकिन है पाकिस्तान का तंत्र इसके लिए अभी तैयार नहीं. लेकिन हम क्यों रास्ते बंद करने लगे?

(वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)