देव आनंद : ये दिल न होता आवारा !
दिलीप कुमार प्रेम की संजीदगी और पीड़ा के लिए तथा राज कपूर प्रेम के भोलेपन और सरलता के लिए जाने जाते थे, देव आनंद के हिस्से में प्रेम का खिलंदड़ापन और शरारतें आई थीं।
New Delhi, Delhi, Sep 27 : हिंदी सिनेमा के सदाबहार अभिनेता कहे जाने वाले देव आनंद ने अपनी ज्यादातर फिल्मों में जिस बेफिक्र, अल्हड, विद्रोही और रूमानी युवा का चरित्र जिया है, वह भारतीय सिनेमा का एकदम नया चेहरा और अलग अंदाज़ था। हिंदी सिनेमा की पहली त्रिमूर्ति में जहां दिलीप कुमार प्रेम की संजीदगी और पीड़ा के लिए तथा राज कपूर प्रेम के भोलेपन और सरलता के लिए जाने जाते थे, देव आनंद के हिस्से में प्रेम का खिलंदड़ापन और शरारतें आई थीं।
लोगों को उनका यह रूप इतना पसंद आया कि अपने जीवन काल में ही वे किंवदंती बन गए थे। उनकी चाल, उनका पहनावा, उनके बालों का स्टाइल और उनका बेफ़िक्र अंदाज़ उस दौर के युवाओं के क्रेज बने। 1946 में फिल्म ‘हम एक हैं’ से अपनी अभिनय यात्रा शुरू करने वाले देव साहब का ने लगभग साठ साल लंबे कैरियर में सौ से ज्यादा फिल्मों में अभिनय ही नहीं, अपने नवकेतन फिल्म्स के बैनर तले पैतीस फिल्मों का निर्माण और उन्नीस फिल्मों का निर्देशन भी किया। अपनी शुरूआती फिल्मों की नायिका सुरैया के साथ उनके असफल प्रेम का शुमार हिंदी सिनेमा की कुछ सबसे त्रासद प्रेम कहानियों में होता है। सुरैया के पारिवारिक दबाव में अलगाव होने के बाद देव साहब ने अपनी एक अलग दुनिया बसा ली,लेकिन सुरैया आजीवन अविवाहित रही।
उन्होंने अकेलापन जिया और गुमनामी की मौत मरी। ‘गाइड’ को देव साहब की अभिनय प्रतिभा का उत्कर्ष माना जाता है। सातवे दशक के बाद भी अपनी ढलती उम्र में उन्होंने दर्ज़नों फिल्मों में नायक की भूमिकाएं निभाईं, लेकिन तबतक उम्र के साथ उनका जादू शिथिल और मैनरिज्म पुराना पड़ चुका था। निर्देशन में भी उनकी पकड़ ढीली होती चली गई।
जीवन के आखिरी दिनों तक फिल्मों के प्रति उनकी यह दीवानगी बनी रही, लेकिन तब तक वक़्त उनसे बहुत आगे निकल चुका था। उनकी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ बहुत चर्चित रही जिसमें उन्होंने अपने जीवन के कई अदेखे, अजाने पहलुओं का खुलासा किया था, लेकिन चर्चा किताब के उस अंश की ज्यादा हुई जिसमें सुरैया के साथ अपने रिश्ते को सार्वजनिक करते हुए उन्होंने बड़ी भावुकता से लिखा था कि सुरैया के साथ उनकी शादी हो गयी होती तो उनका जीवन शायद कुछ और ही होता। सिनेमा में अपूर्व योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के अवार्ड’ से नवाज़ा था।
जन्मदिन (26 सितंबर) पर हरदिलअजीज़ मरहूम देव आनंद को हार्दिक श्रधांजलि !