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कुछ तो वजह होगी, कोई यूंही बेवफा नहीं होता ! दास्तान-ए-शौरी वाया यशवंत सिन्हा

अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा मोदी सरकार पर हमला क्यों कर रहे हैं। क्या कारण है कि अटल के नौ रत्नों में शुमार ये दोनों अपनी ही सरकार की खिलाफत कर रहे हैं।

New Delhi, Oct 07: ये लाइन कितनी माकूल लग रही है इन दोनों नेताओं के लिए। कुछ तो वजह होगी, कोई यूंही बेवफा नहीं हो जाता है। क्या कारण है कि कभी अटल बिहारी की सरकार में नौ रत्नों में शुमार रहे ये दोनों नेता मोदी के खिलाफ हो गए हैं। जो काम विपक्ष के नेता नहीं कर पाए उसे इन दोनों ने अंजाम दे दिया। दरअसल ये एक तिकड़ी है, जिसमें शौरी, यशवंत सिन्हा के साथ शॉटगन सिन्हा यानी शत्रु बाबू भी हैं। ये तीनों अक्सर मोदी सरकार के खिलाफ हमलावर रुख दिखाते रहते हैं। सवाल वही है कि क्या कारण है कि ये तीनों इस तरह से उस प्रधानमंत्री के खिलाफ हमला कर रहे है जिसे बीजेपी इतिहास का सबसे अच्छा पीएम घोषित करना चाहती है।

दास्तान-ए-शौरी और सिन्हा की शुरूआत अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार के समय से करते हैं। अटल सरकार में दोनों का जलवा था, रुतबा था. अब वो रुतबा और जलवा गायब है। दरअसल अटल सरकार के समय में इन दोनों का कद काफी बड़ा था। अटल बिहारी इन दोनों पर भरोसा करते थे। लेकिन वो समय दूसरा था. आज की बीजेपी के तेवर अलग हैं, नरेंद्र मोदी ने अपने मुताबिक कैबिनेट का चयन किया है। उन्होंने युवा जोश को तरजीह दी है। कहीं न कहीं ये भी एक वजह है दोनों की नाराजगी की। इसके अलावा पहले इन दोनों की बातों को तवज्जो दी जाती थी। लेकिन नरेंद्र मोदी ने पार्टी के बुजुर्गों को मार्गदर्शक मंडल बना कर वहां स्थापित कर दिया।

मोदी सरकार में भी इन दोनों को कोई अहमियत नहीं मिली है। मोदी ने दोोनों को अलग थलग कर दिया है। ये बात इन दोनों को ही नागवार लग रही होगी। साढ़े तीन साल तो निकल गए, लेकिन जब लगा कि कुछ हो ही नहीं रहा है तो अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया। शेर भले बूढ़ा हो जाए वो शेर ही रहता है, उसके तेवर नहीं बदलते हैं। ये बात भी अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा पर लागू हो सकती है। दोनों शायद परिवर्तन की इस प्रक्रिया के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं। जब पार्टी में बात न सुनी जाए तो इस तरह का धमाका करना जरूरी हो जाता है। वही धमाका ये दोनों अब कर रहे हैं। लेकिन इसका नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। राजनीति एक बहती हुई नदी की तरह है. समय के साथ उसमे इतना पानी बह गया है जो अब वापस नहीं आ सकता है।

यशवंत और शौरी के हमलों से भले ही विरोधियों को संजीवनी मिल जाए लेकिन बीजेपी और मोदी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। यशवंत सिन्हा भले नोटबंदी और जीएसटी को लेकर सरकार पर हमला कर रहे हैं। लेकिन उनके हमलों की धार को कुंद करने के लिए उनका बेटा जयंत सिन्हा सामने आ गया है। अब बेटे के सामने पिता कितनी देर तक हमलावर रह सकता है। वहीं शौरी भी अपने सियासी जीवन के आखिरी दौर में हैं। इन दोनों के हमलों पर बीजेपी सीना ठोंक कर कह रही है कि यही तो बीजेपी की खूबी है। पार्टी में रहकर विरोध करने वाले भी हैं, यही पार्टी का लोकतंत्र है। कांग्रेस की तरह नहीं कि किसी ने विरोध की आवाज निकाली और पार्टी से बाहर।

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