गोधरा कांड : 27 फरवरी 2002 के बुधवार की वो सुबह आज भी याद है !

गोधरा कांड के 15 बरस गुजर चुके हैं। हाईकोर्ट इस केस में अपना फैसला भी सुना चुका है। 11 दोषियों की फांसी की सजा उम्रकैद में बदली जा चुकी है। यानी अब किसी को भी इस केस में फांसी नहीं हाेगी।  

New Delhi Oct 09 : गोधरा कांड ने देश को हिलाकर रख दिया था। मानवता को झकझोर दिया था। गोधरा कांड के प्रतिशोध में ही गुजरात में दंगे भड़क गए थे। 59 लोगों के बदले ना जाने कितने लोगों की जान ले ली गई थी। गोधरा कांड में मरने वाले भी इंसान थे और मारने वाले भी इंसान। गुजरात दंगों में भी इंसानों ने ही इंसानों को मारा था। एक दूसरे को तबाह कर दिया था। गुजरात दंगा और गोधरा कांड भारतीय राजनीति के इतिहास का एक बदनुमा दाग है। जिसे अब शायद कोई भी अदालत नहीं धुल सकती है। गुनाहगारों को सजा मिल रही है मिलती रहेगी। लेकिन, उन पीडि़तों के जख्‍म आज भी हरे हैं जिन्‍होंने गोधरा कांड और गुजरात दंगों में अपनों को खोया है। गोधरा कांड की 15 साल पुरानी तस्‍वीरें जब आज भी जेहन में कौंधती हैं तो रूह कांप उठती है।

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27 फरवरी 2002 को बुधवार का दिन था। बुधवार की सुबह जैसे ही साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंची, उसके एक कोच से आग की लटपे उठने लगी। धुएं का गुबार उठ पड़ा। साबरमती एक्‍सप्रेस के जिस डिब्‍बे एस-6 में आग लगाई गई थी उसके दरवाजों को भी बाहर से बंद कर दिया गया था। ताकि लोग बाहर ना निकल सकें। इस कोच में ज्‍यादातर कार सेवक मौजूद थे। जो अयोध्‍या से वापस आ रहे थे। उस दौरान अयोध्‍या में राम मंदिर आंदोलन के तहत एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। जहां पर देशभर से कारसेवक पहुंचे थे। साबरम‍ती एक्‍सप्रेस में 59 कारसेवक जिंदा जल गए थे। इसके बाद इस घटना ने राजनैतिक रंग ले लिया था। जिसके दाग आज तक गुजरात के माथे पर हैं।

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27 फरवरी 2002 को जब गोधरा कांड हुआ था उस वक्‍त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्‍यमंत्री हुआ करते थे। गोधरा कांड के फौरन बाद ही नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट की मीटिंग बुला ली थी। नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच की तो पता चला कि पेट्रोल डालकर कोच को आग के हवाले किया गया था। गोधरा कांड के अगले दिन पूरा गुजरात सुलग उठा था। इन दंगों को क्रिया की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जा रहा था। 27 फरवरी 2002 को ये घटना हुई और 28 फरवरी 2002 को साबरमती एक्‍सप्रेस में झुलस कर मरने वाले के शवों को खुले ट्रक के जरिए गोधरा से अहमदाबाद लेकर आया गया। चर्चा इस बात की भी हुई कि शवों को उनके परिजनों की बजाए विश्‍व हिंदू परिषद के लोगों को सौंपा गया।  

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देखते ही देखते गोधरा कांड के बाद गुजरात में दंगे होने लगे। बाद में इस केस की जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया गया। एसआईटी की स्‍पेशल कोर्ट ने एक मार्च 2011 को इस केस में कुल 31 लोगों को दोषी करार दिया। जबकि 63 लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था। 31 दोषियों में से 11 को फांसी की सजा सुनाई गई थी। जबकि बीस दोषियों को उम्रकैद की। लेकिन, अब केस में किसी को भी फांसी नहीं मिलेगी। हाईकोर्ट ने विशेष अदालत के फैसले को पलट दिया है। 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्‍दील कर दिया गया है। जाहिर है पीडि़त पक्ष के पास अभी हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रास्‍ता खुला हुआ है। देखिए आगे क्‍या होता है।