पहले भ्रष्टाचार से लड़ें, फिर फरिया लीजिएगा कि यहां समाजवाद, साम्यवाद या पूंजीवाद होगा !

भ्रष्टाचार के गिद्धों के चंगुल से देश के संसाधनों को बचाने की समस्या प्रमुख है। इसे बचाने की ईमानदार कोशिश नहीं करने पर अगली पीढि़यां हमें माफ नहीं करेंगी।

New Delhi, Oct 10 : मेरी समझ से भ्रष्टाचार इस गरीब देश की सबसे बड़ी समस्या है। इसी समस्या से अन्य अनेक तरह की समस्याएं पैदा होती रहती हैं। मैं 1967 से लगातार सरकारों और नेताओं को कभी नजदीक और कभी दूर से देखने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा हूं। पहले राजनीतिक कार्यकत्र्ता के रूप में और बाद में पत्रकार की भूमिका में। भ्रष्टाचारवाद यानी पैसावाद यानी धन लोलुपतावाद ने सभी राजनीतिक विचारधाराओं और वादों को लगभग पछाड़ दिया है। यदि यह जारी रहा तो भविष्य में भ्रष्टाचार और भी घृणित खेल दिखाएगा।

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अपवादस्वरूप कई ईमानदार नेताओं को भी देखा है, पर पूरी व्यवस्था में आम तौर पर वे कारगर नहीं हो पाते। क्योंकि वे अल्पमत में होते हैं। चूंकि हर जाति और समुदाय में अच्छे -बुरे लोग हैं, इसीलिए भ्रष्ट लोगों में भी हर जाति और समुदाय के लोग हैं। आम लोगों में से जो लोग अपनी अगली पीढि़यों के लिए एक बेहतर देश और समाज छोड़कर जाना चाहते हैं, उन्हें मेरी राय में एक काम जरूर करना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर और हर राज्य के पांच सबसे भ्रष्ट नेताओं की पहचान कर उनके खिलाफ अभियान चलाना चाहिए। और इसी तरह पांच सबसे कम भ्रष्ट या ईमानदार नेताओं को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वे जनहित में और भी अच्छे काम कर सकें। यदि ऐसा हुआ तो बीच के नेता खुद ही सबक ले लेंगे। यदि नेता सुधर गए तो उसका असर ब्यूरोक्रेसी और अर्थ जगत पर भी पड़ेगा।
दरअसल ब्यूरोक्रेसी घोड़ा है और सत्ताधारी नेता सवार।

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सत्ताधारी जमात किसी भ्रष्ट अफसर को सजा दे सकती है, पर कोई अफसर किसी भ्रष्ट मंत्री को उसके पद से नहीं हटा सकता। भ्रष्टाचार नामक गंभीर बीमारी के कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
1.-सत्तर के दशक में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि भ्रष्टाचार तो विश्व व्यापी है, इसलिए यदि इस देश में भी है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। उन्होंने यह भी कहा था कि मेरे पिता संत थे, पर मैं पालिटिशियन हूं।
2.-अस्सी के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि दिल्ली से सौ पैसे चलते हैं, पर उसमें से गांव में जनता तक सिर्फ 15 पैसे ही पहुंचते हैं। 85 पैसे बिचैलिए खा जाते हैं।
3.-नब्बे के दशक में जैन हवाला कांड हुआ था। कम्युनिस्टों को छोड़ कर लगभग सभी दलों के दर्जनों नामी -गिरामी नेताओं ने हवाला कारोबारियों से रिश्वत ली। वही हवाला कारोबारी कश्मीरी आतंकवादियों को भी पैसे पहुंचाते थे। उन्हें नेताओं का संरक्षण चाहिए था, इसलिए उन्होंने रिश्वत दी थी। नेताओं को मिली अधिकत्तम राशि 10 करोड़ और न्यूनत्तम राशि 25 हजार रुपए थी।
लाभान्वितों में एक पूर्व प्रधान मंत्री और कई पूर्व व वत्र्तमान केंद्रीय मंत्री शामिल थे। सी.बी.आई.ने इस केस को रफा -दफा कर दिया। करना पड़ा क्योंकि इतने बड़े नेताओं पर वह कैसे कार्रवाई करती। सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में मन मसोस कर रह गया।

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4.-कोई भी राजनीतिक दल आज चुनाव आयोग को अपने राजनीतिक चंदे का पूरा हिसाब देने को तैयार नहीं है। अधूरा देते हैं। यहां तक कि कम्युनिस्ट पार्टियां भी पूरा हिसाब नहीं देतीं। आखिर क्यों भाई ?
5.-हमारे देश के प्रभावशाली नेतागण सांसद क्षेत्र विकास फंड को बंद करने के लिए तैयार नहीं हैं जबकि प्रशासनिक सुधार आयोग इसे खत्म करने की बहुत पहले सिफारिश कर चुका है। यह फंड राजनीति को दूषित करने वाला एक प्रमुख कारक बना हुआ है।
6 – इस देश के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में गरीब मरीजों के लिए दवाएं और रूई -पट्टी तक उपलब्ध नहीं है क्योंकि सरकार के पास पैसे नहीं हैं। गरीब लोग एम्बुलेंस के अभाव में अपने परिजन की लाश ठेला और कंधे पर ढोकर ले जाने को मजबूर हैं। क्योंकि एम्बुलेंस खरीदने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं। पर यहां के सांसद अपने वेतन-भत्ते खुद ही बढ़ा लिया करते हैं ।
जहां के अधिकतर नेतागण गरीब जनता की मूलभूत समस्याओं के प्रति भी ऐसे संवेदनहीन हों, वहां भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या होगी ही।

अब तो आम लोगों के पास भी सोशल मीडिया की ताकत उपलब्ध है। उन्हें जाति, सम्प्रदाय और विचारधारा से ऊपर उठकर भ्रष्टाचार के राक्षसों को पहले पराजित करने की कोशिश करनी चाहिए। इस बात की परवाह किए बिना कि वे सफल होंगे या नहीं। भले सफल नहीं हुए, पर 1857 में इस देश के बहादुर लोगों ने विदेशी ताकतों के खिलाफ लड़ाई लड़ी न ! भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लड़ाई पूरी हो जाने के बाद फरिया लीजिएगा कि इस देश में समाजवादी व्यवस्था चलेगी, साम्यवादी व्यवस्था या पूंजीवादी। अभी तो भ्रष्टाचार के गिद्धों के चंगुल से देश के संसाधनों को बचाने की समस्या प्रमुख है। इसे बचाने की ईमानदार कोशिश नहीं करने पर अगली पीढि़यां हमें माफ नहीं करेंगी।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)