जानिए गोधरा कांड में 59 लोगों को जिंदा जलाने वालों को क्यों नहीं मिली फांसी ?
गोधरा कांड में जिन 11 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी उनकी सजा अब उम्रकैद में तब्दील हो चुकी है जानिए किस वजह से लिया गया ये फैसला।
New Delhi Oct 11 : अभी सोमवार की ही बात है जब गोधरा कांड में गुजरात हाईकोर्ट ने 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। हर कोई ये जानना चाहता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। हाईकोर्ट को ऐसा क्या लगा कि उसने स्पेशल कोर्ट के फैसले को ही पलट दिया। दरअसल, इसकी दो बड़ी वजह बताई जा रही हैं। जिसके चलते गोधरा कांड में हाईकोर्ट ने उन 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। गुजरात हाईकोर्ट का मानना है कि जिस वक्त गोधरा कांड में साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 बोगी में आग लगाई गई थी उस वक्त उसमें बहुत ज्यादा यात्री सवार थे। जो आग लगने की सूरत में दूसरी ओर से भाग सकते थे। जबकि दोषी ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाना चाहते थे।
इससे ये कहा जा सकता है कि गोधरा कांड के दोषी ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारना चाहते थे उन्हें नुकसान पहुंचाना चाहते थे। लेकिन, दोषियों का इरादा ये कतई नहीं था कि वो मरने वालों की संख्या बढ़ाएं। सिर्फ उसी कोच में आग लगाई गई जिसमें अयोध्या से लौट रहे कारसेवक मौजूद थे। अभी सोमवार को ही गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस अनंत एस दवे और जस्टिस जीआर उधवानी की बेंच ने गोधरा कांड पर अपना फैसला सुनाया था। गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर एस 6 को 27 फरवरी 2002 दिन बुधवार को आग के हवाले किया गया था। जिसमें 59 लोगों की झुलसकर मौत हो गई थी। गोधरा कांड के बाद ही पूरे गुजरात में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे। जिसमें 1200 लोगों की जान चली गई थी।
गुजरात हाईकोर्ट ने दस अक्टूबर को इस केस में अपना फैसला वेबसाइट पर अपलोड किया। फैसले में लिखा गया कि अदालत को लगता है कि इस हादसे में ज्यादा लोग इसलिए मरे क्योंकि जिस कोच में आग लगाई गई उसमें क्षमता से ज्यादा यात्री मौजूद थे। अगर इस कोच में यात्री निर्धारित संख्या में ही होते तो यकीनन मरने वालों की संख्या कम होती। इस बोगी में आग एक ओर से लगाई गई। जबकि दूसरी ओर से लोगों को भागने का रास्ता मिल गया। ऐसे में कहा जा सकता है कि दोषियों की मंशा अधिकतम नुकसान पहुंचाने की जरूर थी लेकिन, वो मृतकों की संख्या नहीं बढ़ाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कोई कोशिश भी नहीं की। इसके साथ ही अदालत ने इस केस में कुछ और भी टिप्पणी की हैं।
गुजरात हाईकोर्ट ने गोधरा कांड में दिए अपने फैसले में लिखा है कि अदालतों को किसी भी दोषी को मृत्युदंड देते समय “खून का प्यासा होने” या “जज की मनमर्जी” जैसी वजहों से परहेज चाहिए। कोर्ट को उन सबूतों को बरीकी से देखना चाहिए जो उपलब्ध हैं। उन्हीं के आधार पर ये तय किया जाना चाहिए कि दोषी को उम्रकैद की सजा मिले या फिर मृत्युदंड। गुजरात हाईकोर्ट का कहना है सभी सबूतों का बरीकी से विश्लेषण करने के बाद ये साबित होता है आरोपियों पर दोष साबित करने के लिए ये काफी हैं। लेकिन, मृत्युदंड के लिए नहीं। गुजरात हाईकोर्ट ने अपने फैसले में गवाहों के बयानों को भी पूरी तरह भरोसेमंद माना है। यही वजह थी कि इस केस में 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया।