मुकुल रॉय बनेंगे बीजेपी के ‘विभीषण’, ढह जाएगी पश्चिम बंगाल में ममता की लंका

मुकुल रॉय का ममता बनर्जी से मोहभंग हो चुका है। आने वाले दिनों में वो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के पतन की वजह बन सकते हैं। जानिए कैसे।

New Delhi Oct 12 : कभी तृणमूल कांग्रेस के नेता रहे मुकुल रॉय पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी के बेहद करीबी हुआ करते थे। लेकिन, अब दोनों में 36 का आंकड़ा है। मुकुल रॉय ने पिछले महीने ही पार्टी छोड़ने का एलान कर दिया था। पार्टी के सभी पदों से इस्‍तीफा भी दे दिया था। अब मुकुल रॉय ने राज्‍यसभा की सदस्‍यता भी छोड़ दी है। यानी उनके सिर से तृणमूल कांग्रेस के सभी बोझ खत्‍म हो गए हैं। अब वो पूरी तरह आजाद हैं। जाहिर है मुकुल रॉय की बगावत आने वाले दिनों में ममता बनर्जी को बहुत भारी पड़ेगी। अगर मुकुल भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाते हैं तो पश्चिम बंगाल में ममता के किले को गिरने से कोई नहीं बचा सकता है। जिसकी पूरी संभावनाएं बनी हुई हैं।

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अभी बुधवार को ही मुकुल रॉय ने उपराष्‍ट्रपति वैंकेया नायडू से मिलकर उन्‍हें अपना इस्‍तीफा सौंपा। वैंकेया नायडू राज्‍यसभा के सभापति भी हैं। इससे पहले मुकुल रॉय ने सोमवार को दिल्‍ली में भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय महासचिव और पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय से मुलाकात की थी। इसके बाद ही ये कयास लगाए जाने लगे थे कि वो जल्‍द ही भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लेंगे। मुकुल रॉय ने अभी से ममता बनर्जी की पोल खोलनी शुरु कर दी है। वो कह चुके हैं कि भारतीय जनता पार्टी पर सांप्रदायिक होने के गलत आरोप लगाए जाते हैं वो धर्मनिरपेक्ष पार्टी है। जबकि सांप्रदायिकता का खेल तो खुद ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में खेल रही हैं। जिसे हर किसी ने देखा है।

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हालांकि मुकुल रॉय पर शारदा स्‍कैम में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं। बीजेपी खुद उन्‍हें कई बार कठघरे में खड़ा कर चुकी है। ऐसे में बीजेपी उन्‍हें अपनी पार्टी में शामिल कराने से पहले सौ बार विचार जरूर करेगी। उसे संभावित विवादों को ध्‍यान में रखना होगा। लेकिन, इतना जरूर है कि अगर बीस साल तक तृणमूल कांग्रेस में रहने वाले मुकुल रॉय ने बीजेपी को सपोर्ट कर दिया और उसका साथ ले लिया तो ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़नी तय हैं। भारतीय जनता पार्टी मुकुल रॉय को 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में अपना चेहरा भी बना सकती है। इस सूरत में भी ममता का दुर्ग ढह सकता है। क्‍योंकि पार्टी के भीतर मुकुल रॉय से बड़ा ममता का राजदार शायद ही कोई हो।

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1990 में जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस छोड़ने का मन बनाया था उस वक्‍त भी उन्‍हें मुकुल का सपोर्ट मिला था। 17 दिसंबर 1997 में जब तृणमूल कांग्रेस का गठन हुआ था तब भी वो ममता बनर्जी के साथ थे। लंबे वक्‍त तक वो ममता के विश्‍वासपात्र रहे। लेकिन, अब उन्‍हें दीदी की दगाबाजी रास नहीं आई है। ममता बनर्जी का ये राजदार उनके पूरे चिट्ठे को खोल कर सबके सामने रख सकता है। मुकुल रॉय के अगले कदम के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा और देखना होगा कि वो क्‍या करते हैं। मुकुल का अगला कदम चाहें जो भी हो लेकिन, उनके निशाने पर ममता बनर्जी ही रहेंगी। यानी इस बार पश्चिम बंगाल में मुकाबला बेहद दिलचस्‍प होगा। इंतजार कीजिए और देखिए बंगाल का ये दुर्ग ढहता है या फिर कमल मुरझाता है।