पटाखा बैन से सुप्रीम कोर्ट भी दुखी है, लेेकिन कारण कुछ और ही है

पटाखा बैन से सुप्रीम कोर्ट भी दुखी है, लेकिन उसके दुखी होने का कारण कुछ और ही है, कोर्ट को लग रहा है कि इस फैसले को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है।

New Delhi, Oct 14: सुप्रीम कोर्ट दुखी है, पटाखा बैन से पटाखा कारोबारी और बच्चे दुखी हैं तो देश का उच्चतम न्यायालय भी दुखी है। कारोबारियों और बच्चों का दुख ये है कि इस बार पटाखे बिकेंगे नहीं और जला नहीं पाएंगे, तो कोर्ट का दुख कुछ अलग ही है। कोर्ट ा दुख ये है कि जनता और नेताओं ने उसके फैसले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की है। खास तौर पर सोशल मीडिया पर तो गदर ही काट दिया गया है। इसी से कोर्ट दुखी है। उसके दुख का अंत कहा पर होगा ये पता नहीं लेकिन उसके दुखी होने का कारण समझ नहीं आया। दिल्ली एनसीआर में 9 अक्टूबर से पटाखों पर बैन लगा हुआ है। ये फैसला उच्चतम न्यायालय का है।

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सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया ठीक है, अब  वो क्या चाहता है कि लोग उस फैसले की व्याख्या भी न कहें। कोर्ट के फैसले पर सोशल मीडिया पर लोग क्या कह रहे हैं, किस तरह से उस फैसले को ले रहे हैं इस से क्या मतलब है कोर्ट को। कोर्ट के फैसले का विरोध भी हो रहा है, पटाखा कारोबारियों ने फैसले के विरोध में पुनर्विचार याचिका दाखिल की तो कोर्ट ने उसे भी खारिज कर दिया। यानि पटाखा बैन जारी रहेगा। अब कोर्ट को लग रहा है कि इस फैसले को सांप्रदायिक रंग दिया गया है। अगर ऐसा लग रहा है तो उस पर कोर्ट क्या कर सकता है। ये फैसला सही है, प्रदूषण से बचाव जरूरी है, लेकिन जिन लोगों की रोजी रोटी इस कारोबार से जुड़ी हुई है।

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वो लोग इसका विरोध कर रहे हैं और विरोध करने के लिए अलग अलग तर्क दे रहे हैं तो उस में कोर्ट के दुखी होने का कोई मतलब नहीं है। कोर्ट का कहना है कि अगली सुनवाई तक रोक जारी रहेगी। कोर्ट को लगता है कि इस फैसले को एंटी हिंदू बताकर प्रचारित किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर रोक कोई कैसे लगा सकता है। कोर्ट के फैसले का विरोध कोई नई बात नहीं है। अफजल गुरू को फासी की सजा उच्चतम न्यायालय ने ही सुनाई थी। उस समय कुछ लोगों ने इसे ज्यूडिशयल किलिंग कहा था। उस समय कोर्ट दुखी नहीं हुआ था। या शायद हुआ भी हो तो बात सामने नहीं आ पाई थी। तो ये तो पटाखा बैन का छोटा सा मामला है।

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कहीं यही कारण तो नहीं कि अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 9 अक्टूबर से पहले खरीदे हुए पटाखों को जलाया जा सकता है। क्या ये कहकर कोर्ट ने एक खिड़की नहीं खोल दी है। आखिर कितने लोगों की पटाखों का बिल सरकार या फिर पुलिस चेक करेगी जिन लोगों को पटाखे छुड़ाने होंगे वो कहीं से ले आएंगे और कह देंगे कि हमने तो बैन होने से पहले खरीदे थे। सर्वोच्च कोर्ट के फैसले पर कोई शक नहीं है. लेकिन उसके फैसलों का विरोध करना तो लोकतंत्र में हो सकता है। सोशल मीडिया पर कई ऐसे तर्क तैर रहे हैं जो आम लोगों को बड़ी जल्दी समझ में आ जाते हैं। इसको बकरीद और मुहर्रम से जोड़कर भी तर्क पेश किए जा रहे हैं। तो सर्वोच्च न्यायालय से यही कहना है कि वो फैसला करने के बाद उसके विश्लेषण और विरोध पर ध्यान न दे। उसने अपना काम कर दिया अब जनता को अगर प्रदूषण ही पसंद है तो कोई क्या कर सकता है।