ताजमहल मोहब्बत का नहीं मुग़ल बादशाह की वासना की शिकार ‘नाबालिग़’ मुमताज़ के शोषण का प्रतीक है

शाहजहाँ के दरबारियों व जनता में हुए उत्पन्न हुए रोष को दबाने के लिए ‘मुमताज़’ के प्रति छद्म प्रेम दिखाने के किए ताजमहल बनाया गया था।

New Delhi Oct 22 : मुमताज़ महल, शाहजहाँ की आठ बेगमों में से दूसरी बेगम थी। शाहजहाँ के एक persian अमीर दरबारी अब्दुल हसन आसफ़ खान की बेटी थी जिसका जन्म 27 अप्रेल,1593 को हुआ। शाहजहाँ ने उसकी ख़ूबसूरती को देख 14 वर्ष की नाबालिग़ को पिता के विरोध के बावजूद ज़बरदस्ती अपनी हरम में ‘रखैल’ के रूप में रख लिया था। बाद में 19 वर्ष की उम्र में वर्ष 1612 में निकाह कर लिया। मुमताज़ महल ने शाहजहाँ के 14 बच्चों को जन्म दिया और 14 वीं संतान के पैदा होते समय 38 वर्ष की आयु में 16 जून, 1631 को मृत्यु हो गयी। 18 साल के विवाहित जीवन में 14 संतानों को जन्म दिया अर्थात लगभग पूरा विवाहित जीवन ‘PREGNANCY’ में ही बीता।

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शाहजहाँ ने मुमताज़ को एक बच्चा पैदा करने की मशीन के रूप में अर्थात एक वस्तु (Commodity) के रूप में इस्तेमाल कर ‘नारी शरीर’ का शोषण किया। ये कैसा प्रेम ? ये केवल ‘पशुवत’ वासना ही हो सकती है। आत्मिक कोमल प्रेम पारस्परिक होता है और उसमें नारी को कभी उपभोग की ‘बस्तु’ के रूप में नहीं देखा जा सकता। शाहजहाँ की 8 बेगमों में अकबराबादी महल, मुमताज महल, हसीना बेगम, मुति बेगम, कुदसियाँ बेगम, फतेहपुरी महल,कन्दाहरी बेग़म,व सरहिंदी बेगम प्रमुख थीं। 58 वर्ष के शाहजहाँ ने अपने एक ‘हिंदू-ब्राह्मण’ कारिंदे की 13 वर्षीय ख़ूबसूरत कन्या ‘मनभाविथी’ को भी ज़बरन छीन लिया था और फिर उसके पिता के विरोध करने पर पिता को मौत के घाट उतार कन्या का धर्म परिवर्तन कराया।

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फिर छद्म ‘निकाह’ कर जीवनपर्यंत ‘शोषण’ किया था। जब मुमताज़ की 14 वीं संतान पैदा करते समय हुई मृत्यु (During Pregnancy Death) के कारण शाहजहाँ के दरबारियों व जनता में हुए उत्पन्न हुए रोष को दबाने/शांत के लिए ‘मुमताज़’ के प्रति छद्म प्रेम दिखाने के किए ताजमहल बनाया गया था, न कि मुमताज़ के सच्चे प्रेम के वसिभूत होकर। इतिहासकारों की माने तो शाहजहाँ के हरम में सैंकड़ों हिंदू-मुस्लिम रखैल थी। मुग़लों से जुड़ा यह घिनौना सच किसी से छुपा नहीं है। अब आप ही बताओ कि क्या शाहजहाँ एक पशुजन्य वासना ग्रस्त अय्याश था या नहीं? और ‘नारी’ को बस्तु/मशीन समझने वाले घिनौने/दरिंदे शाहजहाँ द्वारा निर्मित ‘ताजमहल’ को क्या प्रेम का प्रतीक कहना उचित होगा?

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क्या इसे ‘राष्ट्रीय धरोहर’ कहना उचित होगा। या फिर ये केवल मुग़लों की वासनाग्रस्त अय्याशी का प्रतीक हो सकता है ? आप ही तय करें। पूर्व आईएएस अफसर सूर्य प्रताप सिंह ने अपने इस आर्टिकल के साथ एक नोट भी लिखा है जिसमें उन्‍होंने दावा किया है कि ये सभी तथ्‍य इतिहास की किताबों से ही लिए गए हैं। अगर इन तथ्‍यों पर किसी को किसी भी तरह की कोई का आपत्ति है या वो इसका विरोध करता है कि तो सूर्य प्रताप सिंह उसका जवाब देने को तैयार हैं। ताजमहल का विवाद इन दिनों राजनैतिक गलियारों में खूब छाया हुआ है। इस पर जमकर सियासत हो रही है। विवाद उस वक्‍त खड़ा हुआ था जब यूपी के पर्यटन की किताब से इसका नाम हटा दिया गया था। बीजेपी विधायक संगीत सोम, राज्‍यसभा सांसद सुब्रमण्‍यम स्‍वामी भी इस विवाद में कूद चुके हैं। (पूर्व आईएएस अफसर सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं।)