अपने ही नेताओं से घिरी राजस्थान सरकार, एक बिल ने बवाल मचा दिया
राजस्थान सरकार एक बिल की वजह से अपने ही विधायकों से घिरती जा रही है। इसके साथ ही वसुंधरा सरकार की मुश्किलें लगातार बढ़ता जी रही हैं।
New Delhi, Oct 23 : राजस्थान सरकार इस वक्त विपक्ष के निशाने पर तो है ही, लेकिन अपने विधायकों से भी ये सरकार लगातार घिरती जा रही है। वसुंधरा सरकार ने जिस तरह से फैसला लिया है, उसे तमाम एक्सपर्ट्स तुगलकशाही का जीता जागता उदाहरण बता रहे हैं। कड़े लविरोध के बाद भी राजस्थान की वसुंधरा सरकार अपने फैसले से टस से मस नहीं हुई। सबसे विवादित क्रिमिनल लॉ अमे़डमेंट को आखिरकार विधानसभा में पेश कर ही दिया गया है। अगर आपने अब तक इस लॉ के बारे में नहीं पढ़ा है तो जरा जान लीजिए। इस अध्यादेश के तहत राजस्थान में अब पूर्व जजों, वर्तमान जजों, सरकारी कर्मचारियों, अफसरों और बाबुओं के खिलाफ पुलिस में शिकायत करना आसाना नहीं होगा।
इसके साथ ही अदालत में इनके खिलाफ शिकायत करना मुश्किल होगा। ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले आपको सरकार से मंजूरी लेनी होगी और इसके बाद ये बात आगे बढ़ेगी। विपक्ष ने इस मुद्दे को तुरंत पकड़ लिया और इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी। लेकिन हैरानी की बात तो ये है कि इस मुद्दे को लेकर वसुंधरा सरकार अपने ही विधायकों से घिर गई है। बीजेपी के कुछ विधायक इस बिल का विरोध कर रहे हैं। बिल को जैसे ही विधानसभा में पेश किया गया, तो जबरदस्त हंगामा हो गया। इसके बाद विधानसभा की कार्यवाही स्थगित कर दी गई।
अध्यादेश के विरोध में कांग्रेस के विधायकों ने मुंह पर काली पट्टी बांधी और सदन के बाहर विरोध किया। विधायकों ने हाथ में बैनर लिए और इन बैनर्स पर लिखा था कि लोकतंत्र की हत्या बंद करो। वरिष्ठ वकील एके जैन ने वसुंधरा सरकार के इस बिल के खिलाफ राजस्थान हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी। दरअसल राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया था। इसमें दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड संहिता में संशोधन किया गया। इस संशोधन के तहत राज्य सरकार की मंजूरी के बिना शिकायत पर जांच के आदेश देने पर रोक लगा दी गई है।
इसके साथ ही जिसके खिलाफ मामला लंबित है, उसकी पहचान सार्वजनिक करने पर रोक लगाई गई। अस बिल के मुताबिक ऐसा काम करने से पहले राज्य सरकार से मंजूरी लेनी होगी। खास बात ये है कि अदालत भी राज्य सरकार से अनुमति मिलने के बाद ही जांच के आदेश देगी। पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के उपाध्यक्ष राधेकांत सक्सेना ने इसका विरोध किया है और कहा है कि इससे मीडिया के अधिकार सीमित रह जाएंगे। इसके अलावा कहा गया था कि इस अध्यादेश को राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। कुल मिलाकर कहें तो इस वक्त राजस्थान सरकार तमाम लोगों के निशाने पर है। आगे आगे देखना है कि इस मामले में क्या होता है।