पीयूष गोयल एक्सचेंज ऑफ एम्लॉयमेंट- रेलवे का रोज़गार और आंकड़ों का भरमजाल

पीयूष गोयल के पास किस कंपनी का कैलकुलेटर है, ये तो पता नहीं मगर उनके बयान को आंख बंद कर छापते रहने वाला मीडिया ज़रूर होगा।

New Delhi Oct 30 : तीस दिन में रेल मंत्री पीयूष गोयल के रोज़गार से संबंधित दो बयान आए हैं। 1 अक्तूबर 2017 को छपे बयान में गोयल कहते है कि रेलवे में एक साल के भीतर ही दस लाख रोज़गार पैदा हो सकते हैं। आज यानी 30 अक्तूबर को छपे बयान में अब कह रहे हैं कि रेलवे अगले पांच साल में 150 अरब के निवेश की योजना बना रहा है, इससे 10 लाख अतिरिक्त रोज़गार पैदा होंगे। 30 दिन पहले एक साल में दस लाख रोज़गार, तीन दिन में पांच साल में दस लाख रोज़गार। पीयूष गोयल के पास किस कंपनी का कैलकुलेटर है, ये तो पता नहीं मगर उनके बयान को आंख बंद कर छापते रहने वाला मीडिया ज़रूर होगा। पहला बयान विश्व आर्थिक फोरम में दिया और दसरा बयान इकोनोमिक टाइम्स के कार्यक्रम में दिया।

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पीयूष गोयल 3 सितंबर को रेलवे का पदभार ग्रहण करते हैं, एक महीने के भीतर एक अक्तूबर को एक साल में दस लाख रोज़गार पैदा करने का बयान देते हैं जो 30 अक्तूबर को कुछ और हो जाता है। लगता है कि पीयूष गोयल जी का अपना अलग एम्लॉयमेंट एक्सचेंज खुला है। पीयूष गोयल क़ाबिल कबीना मंत्री बताए जाते हैं। दफ्तर में समाचार एजेंसी एएनआई का वीडियो फीड आता रहता है। आते-जाते आए दिन देखता हूं कि पीयूष गोयल का भाषण स्क्रीन पर आ रहा है। कभी सुना तो नहीं मगर वे काफी तल्लीनता से बोलते नज़र आते हैं। इतने कम समय में रेलवे जैसे महामंत्रालय पर बोलने के लिए इतनी विश्वसनीयता हासिल करना सभी मंत्री के बस की बात नहीं है। 1 अक्तूबर को विश्व आर्थिक फोरम में बोलते हुए पीयूष गोयल ने एक सावधानी बरती थी। उन्होंने कहा था कि मेरा खुद का मानना है कि बेशक ये रेलवे में सीधी नौकरियां नहीं होंगी लेकिन लोगों को जोड़कर और पारिस्थितिकी तंत्र (ECO SYSTEM) के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर एक साल में कम से कम दस लाख रोजगार के अवसर सृजित किए जा सकते हैं।

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सरकार रेलवे ट्रैक औऱ सुरक्षा रखरखाव पर आक्रामक तरीके से आगे बढ़ रही है। इनसे अकेले दो लाख रोज़गार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं। यह बयान मैंने हिन्दुस्तान अख़बार की वेबसाइट से लिया है। रेलवे में सीधी नौकरियां नहीं होंगी। उनके बयान के इस हिस्से को याद रखिएगा। हाल ही में रेलवे ने ट्रैकमैन और इंजीनियरों की 4000 से अधिक बहाली निकाली है। नौजवानों के लिए नहीं, रिटायर लोगों के लिए। बात दस लाख की करते हैं और वैकेंसी 4000 की निकलाते हैं। मई महीने में रेलवे से संबंधित एक ख़बर छपी है हिन्दुस्तान में। आरआरबी एनटीपीसी ने 18,262 पदों की वैकेंसी निकाली। अभ्यर्थी इम्तहान भी दे चुके हैं लेकिन रिज़ल्ट निकालने से पहले पदों की संख्या में चार हज़ार की कटौती कर दी जाती है। इसके तहत पटना, रांची और मुज़फ्फरपुर की सीटें सबसे अधिक घटा दी गईं। एएसम और गुड्स गार्ड के पदों को भी कम किया गया है। इस परीक्षा में 92 लाख छात्र शामिल हुए थे। इस आंकड़े से मैं सन्न रह गया हूं। दिसबंर 2015 में इस परीक्षा का फार्म निकला था, अभी तक इसका अंतिम परिणाम नहीं आया है। आए दिन छात्र मुझे मेसेज करते रहते हैं।

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12 दिसंबर 2014 को राज्य सभा में सुरेश प्रभु ने कहा था कि रेलवे में संरक्षा से जुड़े 1 लाख 2 हज़ार पद ख़ाली हैं। इसमें पटरी की निगरानी से जुड़े कर्मचारी भी शामिल हैं। यह ख़बर वार्ता से जारी हुई थी और वेबदुनिया ने छापा था। क्या कोई बता सकता है कि तीन साल में एक लाख से अधिक इन ख़ाली पदों पर कितनी नियुक्तियां हुई हैं? अगर रेलवे की तरफ से ऐसा कोई बयान आया तो ज़रूर अपने लेख में संशोधन करूंगा या नया लेख लिखूंगा। अब आइये निवेश की बात पर। 15 जुलाई 2017 को गांव कनेक्शन में पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु का बयान छपा है कि रेलवे ने पूरा रोडमैप तैयार कर लिया है। पांच साल में पूरा रेल नेटवर्क बदल जाएगा। इसके लिए 8.2 लाख करोड़ के निवेश की ज़रूरत होगी। तीन साल रेलमंत्री बनने के बाद सुरेश प्रभु रोडमैप बनाते हैं और 8.2 लाख करोड़ के निवेश की बात करते हैं। पीयूष गोयल को रेल मंत्री बने तीन महीने भी नहीं हुए और वे 150 अरब के निवेश की योजना के ज़रिए यानी 15 हज़ार करोड़ के निवेश से दस लाख रोज़गार देने की बात करने लगते हैं।

अब यह कौन बताएगा कि यह 150 करोड़ का निवेश रोडमैप के तहत बनाए गए 8.2 लाख करोड़ का ही हिस्सा है या अलग से कोई प्लान बन गया है? क्या पुराना रोड मैप कबाड़ में फेंक दिया गया है? उसे तैयार करने में कितनी बैठके हुईं, कितना वक्त लगा और कितना पैसा ख़र्च हुआ, किसी को मालूम है? 02 मार्च 2017 में मैंने अपने ब्लॉग कस्बा पर एक लेख लिखा था। क्या रेलवे में दो लाख नौकरियां कम कर दी गईं हैं? उस दिन के टाइम्स आफ इंडिया के पेज 20 पर प्रदीप ठाकुर की रिपोर्ट छपी थी कि इस बार के बजट में सरकार ने 2 लाख 8000 नौकरियां का प्रावधान किया गया है। इसमें से 80,000 के करीब आयकर विभाग और उत्पाद व शुल्क विभाग में रखे जाएंगे। मेरे पास इसकी जानकारी नहीं है कि इनकी वैंकसी आई है या नहीं, कब आएगी और कब बहाली की प्रक्रिया पूरी होगी।

सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट में केंद्र सरकार के किस विभाग में कितने पद मंज़ूर हैं और कितने ख़ाली हैं इसे लेकर एक गहन विश्लेषण है। इससे पता चलता है कि राजस्व विभाग में आठ सालों के दौरान यानी 2006 से 2014 के बीच मात्र 25, 070 बहालियां हुई हैं। क्या कोई बता सकता है कि राजस्व विभाग ने एक साल के भीतर 80,000 भर्तियां निकाल दी हैं और नियुक्ति पत्र चले भी गए हैं। टाइम्स आफ इंडिया की इस रिपोर्ट में लिखा है कि बजट के एनेक्सचर में रेलवे के मैनपावर में 2015 से लेरक 2018 तक कोई बदलाव नहीं है। यानी सरकार ने मैनपावर बढ़ाने का कोई लक्ष्य नहीं रखा है। अखबार ने लिखा है कि 2015 से 18 तक रेलवे का मैनपावर 13, 26, 437 ही रहेगा। 1 जनवरी 2014 को यह संख्या 15 लाख 47 हज़ार थी। बताइये मंज़ूर पदों की संख्या में ही दो लाख से अधिक की कटौती है।पहले पीयूष गोयल बताएं कि क्या मोदी सरकार आने के बाद रेलवे में दो लाख नौकरियों की कटौती की गई है? यदि नहीं तो 2014-17 के बीच कितने रोज़गार दिए गए हैं?

यह जानना ज़रूरी है तभी पता चलेगा कि तीन साल में रेलवे ने कितनी नौकरियां दीं और पांच साल में कितनी नौकरिया देने की इसकी क्षमता है। इसी साल के दूसरे हिस्से में हिन्दुस्तान अखबार में पहले पन्ने पर ख़बर छपी थी। उस दिन किसी अस्पताल में था तो सामने की मेज़ पर पड़े अख़बार की इस ख़बर को क्लिक कर लिया था। ख़बर यह थी कि रेलवे इस साल कराएगा दुनिया की सबसे बड़ी आनलाइन परीक्षा। सितंबर में डेढ़ लाख भर्तियों के लिए अधिसूचना जारी होगी। इस परीक्षा में डेढ़ करोड़ अभ्यर्थी शामिल होंगे। अब इस लेख के ऊपरी हिस्से में जाइये जहां आरआरसी एनटीपीसी की वैकेंसी की बात लिखी है। 18000 पदों के लिए 92 लाख अभ्यर्थी शामिल होते हैं। डेढ़ लाख भर्तियों के लिए मात्र डेढ़ करोड़ ही शामिल होंगे? हिसाब लगाने वाले के पास कोई कैलकुलेटर नहीं है क्या ? या फिर ये सब आंकड़े लोगों की उम्मीदों से खेलने के नए स्कोर बोर्ड बन गए हैं। भारत में पहली बार, दुनिया का सबसे बड़ा, एक लाख करोड़ के निवेश, दस लाख रोज़गार, इस तरह के दावे हेडलाइन लूटने के लिए कर दिए जाते हैं और फिर ग़ायब हो जाते हैं। (वरिष्‍ठ पत्रकार रवीश कुमार के फेसबुक वॉल से साभार)