दागियों पर कारगर कार्रवाई के लिए गवाहों की सुरक्षा जरूरी है

जानकार सूत्र बताते हैं कि ऐसे मामलों के गवाहों को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी शासन को उठानी ही पड़ेगी ताकि गवाह निर्भय होकर अपना काम कर सकें।

New Delhi, Nov 04: सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख से यह साफ है कि राजनीति के अपराधीकरण के खात्मे के लिए शासन को अब ठोस कदम उठाने ही पड़ेंगे। इस मामले में बिहार और उत्तर प्रदेश सरकारों की भूमिका बढ़ने वाली है।क्योंकि, इन राज्यों के शांतिप्रिय लोग दशकों से राजनीति के अपराधीकरण और अपराध के राजनीतिकरण से परेशान रहे हैं।यह समस्या पहले से घटी जरूर है,पर समाप्त नहीं हुई है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने बुधवार को केंद्र सरकार को यह आदेश दिया है कि वह नेताओं के खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन करे। इन मुकदमों का निर्णय एक साल के भीतर हो जाना चाहिए।विशेष अदालतें सिर्फ नेताओं के मुकदमे सुनें और जल्द उनका निपटारा करे। साथ ही गवाहों की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

Advertisement

याद रहे कि केंद्र सरकार ने कहा है कि विशेष अदालतों के गठन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट इस पर भी विचार कर रहा है कि सजायाफ्ता नेताओं को चुनाव लड़ने से हमेशा के लिए वंचित कर दिया जाए या नहीं।अभी यह प्रावधान है कि सजा काट लेने के छह साल बाद वे दुबारा चुनाव लड़ सकते हैं। वैसे तो केंद्र सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह इस मामले पर भी गंभीरता से विचार कर रहा है कि सजायाफ्ता को हमेशा के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए या नहीं ।

Advertisement

याद रहे कि 2014 तक के आंकड़ों के अनुसार देश के 1581 सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे थे। संभव है कि गत तीन साल में इस संख्या में अंतर आया हो। सुप्रीम कोर्ट के रुख को देखते हुए यह साफ है कि विशेष अदालतों के गठन का काम जल्द ही पूरा होगा। पर सवाल सिर्फ विशेष अदालतों के गठन का ही नहीं है। समस्या यह भी है कि प्रभावशाली आरोपित नेता गवाहों को धमका कर या खरीद कर मुकदमे को कमजोर कर देते हैं। साथ ही अनेक मामलों में वे आई.ओ.यानी अन्वेषण पदाधिकारी को भी प्रभावित कर देते हैं।

Advertisement

नतीजतन आपराधिक पृष्ठभूमि के अनेक दबंग नेता एक अपराध के मामले में छूट जाते हैं और दूसरे अपराध में लग जातेे हैं। जानकार सूत्र बताते हैं कि ऐसे मामलों के गवाहों को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी शासन को उठानी ही पड़ेगी ताकि गवाह निर्भय होकर अपना काम कर सकें। साथ ही शासन सचमुच राजनीति केे अपराधीकरण से मुक्ति चाहता है तो वह बड़े मामलों के आई.ओ.की निजी संपत्ति पर भी खास नजर रखे।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)