नोटबंदी का 1 साल, वो ‘महादांव’ जिस से पीएम मोदी लगभग अपराजेय बन गए

नोटबंदी को एक साल पूरा हो गया है, आज भी इसके फायदे और नुकसान की चर्चा होती है, इस महादांव के जरिए पीएम मोदी लगभग अपराजेय बन गए हैं

New Delhi, Nov 08: नोटबंदी को आज एक साल हो गया है, आज ही के दिन 2016 में पीएम मोदी की आवाज गूंजी थी, उस आवाज की दहशत आज तक कायम है, पता नहीं कब प्रधानमंत्री कोई ऐलान करे दें। सोशल मीडिया पर तो ऐसा हाहाकार मचा उस ऐलान का कि पूछिए मत, आज तक उस से जुड़े मीम लोग शेयर करते हैं। एक साल का वक्फा काफी बड़ा होता ये जानने के लिए कि कौन सी नीति सही है और कौन सी गलत, पिछले एख साल से विपक्ष एक सुर से कह रहा है कि नोटबंदी तानाशाही फैलला है, ये गलत है, कांग्रेस ने तो इसे संगठित लूट तक करार दे दिया था। जनता क्या सोचती है इसके बारे में और एक साल के बाद हालात कसे इस पर तो सभी चर्चा कर रहे हैं। हम बात करंगे कि कैसे नोटबंदी प्रधानमंत्री मोदी के लिए वो हथियार बन गया जिसके दम पर वो लगभग अपराजेय हो गए।

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नोटबंदी के बाद कहा गया था कि जनता मोदी सरकार को सबक सिखाएगी, राहुल गांधी ने एटीएम की लाइन में लगकर पैसे निकाले, लोगों का दर्द जाना, संसद में इसको लेकर हंगामा हुआ, सरकार की तरफ से खुद पीएम मोदी ने संसद में बयान दिया। लोगों को तकलीफ तो हुई थी, गरीब खासे परेशान हुए थ, छोटे व्यापारियों को भी काफी नुकसान हुआ था। काले धन के खिलाफ इसे एक बड़ा कदम बताया गया था। नोटबंदी पर विरोधियों ने कहा कि चुनाव में जनता सबक सिखाएगी। यूपी, उत्तराखंड चुनाव से पहले नोटबंदी का आत्मघाती फैसला बताया गया था। लेकिन हुआ उसका उल्टा, 5 राज्यों में हुए चुनाव में यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई, मणिपुर और गोवा में गठबंधन की सरकार बनाई। कांग्रेस के खाते में केवल पंजाब आया।

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नोटबंदी की पहली परीक्षा इन पांच राज्यों के चुनाव को बताया गया। जिनमें से 4 पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया। उसके बाद विपक्ष खामोश हो गया, विपक्ष को लगने लगा कि नोटबंदी के खिला बयान देकर वो मोदी सरकार की मदद कर रहे हैं। आखिर ऐसा क्या कारण था जिस से विपक्ष को ये लगने लगा था। इसका कारण ये है कि मोदी ने नोटबंदी को गरीबों के कल्याण से जोड़ दिया था। उन्होंने पहले दिन से ये कहना शुरू कर दिया कि नोटबंदी से जिसको परेशानी होगी उसके पास काला धन होगा। आम जनता ने इस बात को मना लिया, जनता को लगा कि पहली किसी सरकार के एक्शन से अमीर परेशान हो रहे हैं। साथ ही सियासी दलों को लेकर भी जनता को लगा कि ये सभी इतना हल्ला इसलिए मचा रहे हैं क्योंकि नोटबंदी से इनका नुकसान हुआ है।

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जनता को लगने लगा था कि पीएम मोदी काम करने में विश्वास करते हैं, मोदी ने भी बार बार यही कहा कि वो चुनावों की चिंता नहीं करते हैं, इसी के साथ नोटबंदी के दांव को मोदी ने इस तरह से पेश किया जिसके कारण वो बीजेपी के लिए फायदे का सौदा साबित हो गया। मोदी ने नोटबंदी की मार्केटिंग इस अंदाज में की थी जिस से ये अमीरों के खिलाफ गरीबों की लड़ाई बन गई। जो नोटबंदी का विरोध कर रहा है वो गरीबों के खिलाफ है। इसका असर भी दिखाई दिया, यही कारण है कि नोटबंदी कभी बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया। नोटबंदी के बाद से हुए विधानसभा चुनावों में केवल पंजाब मं बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। एक साल बाद ये कहा जा सकता है कि नोटबंदी के जरिए मोदी ने वो दांव चला था जिसके परिणाम और कामयाबी के बारे में शायद उनको पहले से अंदेशा था।