प्रदूषण पर कब जागेंगे केजरीवाल, कब तक चलेगी ऑड इवन की धक्‍का परेड ?

असल मसला ये नहीं है कि दिल्‍ली में प्रदूषण बढ़ रहा है दिक्‍कत ये है कि सरकारें वक्‍त रहते काम नहीं कर रही हैं। सवाल केजरीवाल से भी है।

New Delhi Nov 09 : पिछले कई दिनों से दिल्‍ली गैस चैंबर बनी हुई है। लोगों को सांस लेने में दिक्‍कत हो रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल की फटकार के बाद केजरीवाल सरकार जागी। फायर ब्रिगेड की गाडि़यों से पेड़ों पर पानी की बौछार मरवाई गई। ऑड इवन फार्मूला दोबारा से लागू करने का निर्देश दिया गया। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर दिल्‍ली की जनता कब तक ऑड इवन की धक्‍का परेड झेलती रहेगी। हम ऑड इवन के विरोधी नहीं हैं। हम बढ़ते प्रदूषण पर स्‍कूलों को बंद करने का भी विरोध नहीं करते हैं। लेकिन, एक सवाल है दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल से कि क्‍या स्‍कूलों को बंद करने से प्रदूषण की समस्‍या खत्‍म हो जाएगी। क्‍या पांच दिन ऑड इवन का फार्मूला लागू करने से प्रदूषण का स्‍तर कम हो जाएगा। मौसम विभाग पहले ही ये कह चुका है कि दिल्‍ली में हवा का दवाब कम है। इसलिए प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। जैसे ही हवा चलेगी मौसम और प्रदूषण दोनों ही साफ हो जाएगा। हालांकि इसके इंतजार में हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा जा सकता।

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मौसम विभाग के मुताबिक रविवार तक दिल्‍ली वालों को इसी तरह की स्थिति का सामना करना होगा। ये मौसम विभाग की भविष्‍यवाणी है। केजरीवाल सरकार ने सोमवार यानी 13 नवंबर से 17 नवंबर तक ऑड इवन के फार्मूले को लागू करने का फैसला लिया है। यानी उस वक्‍त अगर मौसम विभाग की भविष्‍यवाणी सच साबित हुई तो प्रदूषण अपने आप ही हवा के साथ उड़कर निकल जाएगा। केजरीवाल की सरकार ने एहतियातन ऑड इवन का फार्मूला लागू कर दिया। बहुत अच्‍छा किया। लेकिन, सवाल यही उठ रहे हैं कि क्‍या ऑड इवन का फार्मूला लागू करना या स्‍कूलों की छुट्टी करना या लोगों से कहना आप घर पर बैठे ये सब प्रदूषण के परमानेंट इलाज हैं ? आखिर केजरीवाल सरकार वक्‍त रहते प्रदूषण से क्‍यों नहीं निपटती है। पहले से प्‍लानिंग कर उस पर अमल क्‍यों नहीं किया जाता है ? दिल्‍ली के गैस चैंबर बनने के बाद ही सारे विकल्‍प क्‍यों सूझते हैं।

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अदालत या फिर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की फटकार के बाद ही सरकारों की आंखों क्‍यों खुलती हैं ? जब तक अदालतें सरकार को फटकार नहीं लगाएंगी तब तक क्‍या केजरीवाल जैसे लोग काम नहीं करेंगे ? दिल्‍ली में तीसरी बार ऑड इवन का फार्मूला अपनाया जा रहा है। कमोवेश इन महीनों में हर साल इस तरह की स्थिति देखने को मिल रही है। फिर क्‍यों दिल्‍ली सरकार इस पर ध्‍यान नहीं देती है। NGT दिल्‍ली सरकार से पूछ चुका है कि जब दिल्‍ली में इस तरह के हालात हैं तो फिर हेलीकॉप्‍टर से पानी का छिड़काव कर कृत्रिम बारिश क्‍यों नहीं कराई गई। जाहिर है इन सब पर केजरीवाल सरकार के पास कोई जवाब नहीं हैं। अब आनन फानन में औघोगिक इकाईयों को भी बंद किया जा रहा है। ट्रकों की एंट्री पर भी प्रतिबंध लगाया जा रहा है। स्‍कूल भी बंद किए जा रहे हैं। ऑड इवन भी लागू किया जा रहा है। लेकिन, ये सारे उपाय कोई जादू की छड़ी नहीं हैं।

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जाहिर है अगर दिल्‍ली को प्रदूषण मुक्‍त बनाना है तो सभी को इसमें सहयोग करना होगा। जितनी जिम्‍मेदारी केजरीवाल सरकार की बनती है उतनी हर उस नागरिक भी बनती है जो दिल्‍ली में रहता है या फिर यहां आता है। फर्क बस इतना है कि सरकार की जिम्‍मेदारी और जवाबदेही ज्‍यादा है। जनता हर स्‍तर पर सरकार का साथ देने को तैयार है। लेकिन, हाथ पर जौं उगाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। एक बात तय है कि जब तक प्रदूषण से निपटने के लिए केजरीवाल सरकार कोई फुलप्रूफ प्‍लानिंग नहीं करती इसी तरह की आपाधापी की स्थिति बनी रहेगी। मौसम सुधरेगा प्रदूषण हवा के साथ निकल जाएगा और केजरीवाल सरीखे लोग ऑड इवन की सफलता का ढिंढोरा पीटकर अपना गुणगान करेंगे। जबकि जरूरत सच्‍चे मन से प्रदूषण से लड़ने की है निपटने की है।