2019 के लोकसभा चुनाव के बाद राजनीति से सन्‍यास ले लेंगे लालू यादव ?

क्‍या लालू यादव ने राजनीति से सन्‍यास लेने का मन बना लिया है ? क्‍या उन्‍होंने इसके लिए तारीख भी तय कर ली है ? ये सवाल बिहार की राजनीति में उठ रहे हैं।

New Delhi Nov 11 : 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की आंधी ने पूरे के पूरे विपक्ष को उड़ा दिया था। मोदी की आंधी ने कई पार्टियों के किलों को ही नेस्‍तनाबूत कर दिया था। जो जो पार्टियां 2014 में बीजेपी से बुरी तरह हारी हैं सब की सब मोदी और भारतीय जनता पार्टी से खार खाई बैठी हुई हैं। सभी को इंतजार 2019 के लोकसभा चुनावों का है। हालांकि बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी से 2019 के चुनाव को लेकर आश्‍वस्‍त नजर आ रहे हैं। लेकिन, कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों को लगता है कि 2019 में बाजी पलटी जा सकती है। आरजेडी चीफ लालू यादव को भी 2019 का इंतजार है। वो अकसर भरी सभाओं में कहते हैं कि हम मोदी और बीजेपी को अगले लोकसभा चुनाव में सबक जरूर सिखाएंगे। लेकिन, यहां पर मसला चुनाव जीतने या फिर हारने का नहीं बल्कि लालू यादव के रिटायरमेंट प्‍लान का है। जिसकी चर्चा इस वक्‍त बिहार की राजनीति में काफी जोरशोर से चल रही है।

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दरअसल, अभी हाल ही में आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने एक बयान दिया और कहा कि बिहार में 2020 में जो विधानसभा के चुनाव होंगे उसे राष्‍ट्रीय जनता दल तेजस्‍वी यादव के नेतृत्‍व में लड़ेगी। लालू यादव का कहना है कि उनके बेटे तेजस्‍वी में वो सभी गुण मौजूद हैं जो एक टीम लीडर और नेता में होने चाहिए। हालांकि ये कोई पहला मौका नहीं है जब लालू यादव ने तेजस्‍वी का नाम आगे बढ़ाया हो। इससे पहले भी वो कई मौके पर ये संकेत देते रहे हैं कि तेजस्‍वी यादव ही उनके सियासी उत्‍तराधिकारी बनेंगे। लेकिन, अब तो उन्‍होंने अपनी ओर से इसकी तारीख भी बता दी है। तारीख 2020 की है। यानी 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्‍या 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद लालू यादव राजनीति से सन्‍यास लें लेंगे। या फिर उनके दिमाग में कुछ और ही चल रहा है। क्‍या चल रहा है ये लालू यादव ही बेहतर बता सकते हैं।

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लेकिन, किसी के विचारों पर कोई लगाम नहीं है। हालांकि गांधी परिवार की तरह लालू यादव पर भी राजनीति में परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं। बहरहाल पार्टी उनकी है, बेटा उनका है, फैसला भी उनका ही होगा। लेकिन, किसी पार्टी में लोकतंत्र के लिए इस तरह के फैसलों को ठीक नहीं माना जाता है। लेकिन, हिंदुस्‍तान का दुर्भाग्‍य है कि राजनीति में परिवारवाद का खेल सालों से चला आ रहा है। हर राज्‍य में हर पार्टी में इस तरह का परिवारवाद देखने को मिलता है। ऐसे में लालू यादव अगर अपने सियासी उत्‍तराधिकारी को चुनते हैं तो भला कौन चुनौती देगा। हालांकि इस पर लालू यादव अपनी सफाई भी पेश करते हैं। उनका कहना है कि अगर मैं 2020 में तेजस्‍वी यादव के नेतृत्‍व में आरजेडी के चुनाव लड़ने की बात कर रहा हूं कि इसके पीछे ये ना माना जाए कि वो मेरा बेटा है, बल्कि वो हम लोगों से भी आगे है।

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लालू यादव जी आगे तो बहुत लोग हैं। लेकिन, हर किसी को मौके नहीं मिलते हैं। जो लोग पार्टी को अपनी जागीर समझते हैं खासतौर पर वहां तो वैसे भी दूसरों को कोई मौका नहीं मिलता है। खैर लालू का बयान ब्रह्म वाक्‍य की तरह है। बिहार में अब आरजेडी 2020 का विधानसभा चुनाव तेजस्‍वी के नेतृत्‍व में ही लड़ेगी और वो ही पार्टी की ओर से मुख्‍यमंत्री पद के दावेदार होंगे। लेकिन, सवाल फिर भी उठता है कि इसके बाद लालू यादव की आरजेडी में क्‍या भूमिका होगी। क्‍या वो भी लालकृष्‍ण आडवाणी की तरह मार्गदर्शक मंडल में बैठेंगे या फिर मुलायम सिंह यादव की तरह पार्टी के संरक्षक की भूमिका निभाएंगे। या इन सब से दूर राजनीति से सन्‍यास लेकर एकांतवास में रहेंगे। हालांकि भविष्‍य में क्‍या होगा किसी को नहीं पता। बेशक लालू यादव अपना रिटायरमेंट प्‍लान तैयार कर रहे हों लेकिन, उन्‍हें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि अभी उन पर भ्रष्‍टाचार के तमाम मुकदमें चल रहे हैं। ऐसे में एक जगह तो ओमप्रकाश चौटाला वाली भी बन सकती है।